सोमवार, 13 अगस्त 2012

बीता कल : बाबा के साथ अन्ना, आज : अब नहीं, कलः पता नहीं


स्लग : तोड़-तिकड़म
(राष्ट्रीय साप्ताहिक पत्रिका इतवार में प्रकाशित)
बीता कल : बाबा के साथ अन्ना,
आज : अब नहीं, कलः पता नहीं 
इंट्रो : भ्रष्टाचार, कालाधन व जनलोकपाल पर बाबा रामदेव के साथ मिलकर साझा आंदोलन करने की घोषणा के मात्र दो दिनों बाद ही टीम सदस्यों के टांग अड़ा देने से अपनी ही बात से पलट गये हजारे
हाइलाइटर : साख का संकट झेल रहे बाबा रामदेव के साथ नहीं दिखना चाहती है टीम अन्ना
अन्ना हजारे और रामदेव ने बड़े धूम धड़ाके के साथ प्रेस कांफ्रेंस कर घोषणा की थी कि वे अब एक साथ मिलकर कालाधन व भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ेंगे। अभी इस बात को जुम्मा जुम्मा चार दिन ही हुए थे कि टीम अन्ना ने इसकी हवा निकालनी शुरू कर दी और परिणाम वही हुआ जिसका डर था। एक बार फिर जोड़ी बनते बनते रह गई। टीम अन्ना की ओर से साफ कर दिया गया कि  कालेधन, भ्रष्टाचार और जन लोकपाल के मुद्दे पर अन्ना और बाबा रामदेव का साझा आंदोलन नहीं होगा। इस बयान के आने के साथ ही योगगुरु व अन्ना की मिलकर केंद्र सरकार की बखिया उधेडऩे की सोच परवान चढऩे से पहले ही दम तोड़ गई।
दरअसल कुछ दिनों पहले ही अन्ना व रामदेव ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन कर एक साथ आंदोलन करने की कसमें खाई थीं। किन्तु दो दिन बीतते न बीतते टीम अन्ना के इसमें टांग अड़ा देने से मामला टांय टांय फिस्स हो गया। संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में दोनों ने एक मई से संयुक्त रूप से सिलसिलेवार आंदोलन चलाने पर सहमति जताई थी। इसके बाद तीन जून को दिल्ली के जंतर मंतर पर संयुक्त रूप से अनशन करने की घोषणा भी हुई थी।  यह भी बताया गया था कि एक मई से अन्ना हजारे महाराष्ट्र के शिरडी से आंदोलन की शुरुआत करेंगे और बाबा रामदेव छत्तीसगढ़ के दुर्ग से। इस पर टीम अन्ना ने बाबा की आलोचना करते हुए कहा था कि बाबा संयुक्त आंदोलन के नाम पर एकतरफा फैसले ले रहे हैं। इस मुद्दे को लेकर टीम अन्ना में गहरा मतभेद पैदा हो गया था। गुडग़ांव में हुए उक्त संवाददाता सम्मेलन पर नाखुशी जाहिर करते हुए टीम अन्ना की तरफ से कहा गया कि हजारे की जानकारी के बिना ही बाबा रामदेव ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन का आयोजन कर डाला था। दरअसल रामदेव के साथ मिलकर साझा आंदोलन करने से टीम अन्ना इसलिए बिदक रही है कि योगगुरु साख का संकट झेल रहे हैं। इसके पीछे प्रमुख कारण बताया जा रहा है कि रामलीला मैदान में कालेधन के मुद्दे को लेकर शुरू किये गये आंदोलन के दौरान जिस तरीके से मंच से कूदकर वह भागे उससे उनकी साख को जबर्दश्त बट्टा लगा। उसकी भरपाई वे आज तक नहीं कर सके हैं। ऊपर से रही सही कसर उन पर लगे आरोपों ने पूरी कर दी। क्योंकि उनके सबसे विश्वसनीय सहयोगी बालकिशन पर लगे कई गंभीर आरोपों के छींटे भी योगगुरु के दामन को दागदार कर गये।
बहरहाल गुडग़ांव में बाबा रामदेव व अन्ना हजारे के संयुक्त रूप से आंदोलन किये जाने की घोषणा के दो दिनों बाद ही अन्ना ने इससे अपना हाथ पीछे खींच लिया। नोएडा में हुई टीम अन्ना की बैठक में यह तय किया गया कि बाबा रामदेव के आंदोलन को भले ही नैतिक समर्थन दिया जाये किन्तु उनके साथ मिलकर साझा आंदोलन कतई न हो।
सूत्रों के अनुसार बाबा रामदेव व अन्ना हजारे के मिलकर आंदोलन करने की घोषणा से टीम अन्ना खुद को असहज महसूस कर रही थी। जिस दिन गुडग़ांव में बाबा रामदेव और अन्ना ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में अपनी मंशा उजागर की। उसी दिन से ही टीम अन्ना में इसके विरोध की सुगबुगाहट शुरू हो गयी थी। उसकी तरफ से कहा गया कि बगैर हजारे की जानकारी के यह संयुक्त संवाददाता सम्मेलन बाबा रामदेव ने की। नोएडा में हुई टीम अन्ना की बैठक में लिए गये फैसले ने अप्रत्यक्ष रूप से इसी बात पर मुहर लगाई। बैठक में हुए फैसले के अनुसार कालेधन, भ्रष्टाचार और जन लोकपाल के मुद्दे पर अन्ना और बाबा रामदेव संयुक्त रूप से आंदोलन नहीं करेंगे। हालांकि इसमें स्पष्ट किया गया कि साझा आंदोलन भले ही न हो किन्तु जहां जरूरत पड़ेगी वहां एक दूसरे का समर्थन किया जायेगा। सूत्रों के मुताबिक टीम अन्ना में साझा आंदोलन को लेकर गंभीर मतभेद सामने आने के बाद हुई कोर कमेटी की बैठक में ये मुद्दा जोर-शोर से उठा। कोर कमेटी की बैठक में योगगुरु बाबा रामदेव के साथ देशव्यापी साझा आंदोलन के मुद्दे पर टीम अन्ना की खुलकर चर्चा हुई। कुछ सदस्यों ने इस पर अपनी गहरी आपत्ति व्यक्त की। कालेधन के मुद्दे पर रामदेव के आंदोलन को नैतिक समर्थन देने पर तो सहमति बन गई, लेकिन उनके आंदोलन में शामिल होने पर मतभेद बरकरार रहा। अंत में तय हुआ कि रामदेव के आन्दोलन को केवल नैतिक समर्थन दिया जाएगा। हालांकि दोनों का मकसद एक ही है बावजूद इसके साझा आंदोलन की बात को सिरे से ही नकार दिया गया। हजारे की मौजूदगी में हुई इस बैठक में अन्ना के सभी प्रमुख सहयोगी मौजूद थे। मसलन अरविंद केजरीवाल, शांति भूषण, प्रशांत भूषण तथा किरण बेदी। बैठक के दौरान मौजूद सूत्रों के अनुसार अन्ना और रामदेव के साझा आंदोलन को लेकर कोर कमेटी के कुछ सदस्यों के बीच तीखी बहस भी हुई। अंत में तय हुआ कि साझा आंदोलन नहीं किया जायेगा। दोनों के आंदोलन अलग-अलग चलते रहेंगे। हालांकि जहां अन्ना को जरूरत पड़ेगी वहां पर बाबा रामदेव अन्ना के आंदोलन में शामिल होंगे और जहां पर बाबा रामदेव को जरूरत होगी वहां पर अन्ना उनके आंदोलन में हिस्सा लेंगे।
इससे साफ है कि भ्रष्टाचार और कालेधन के मुद्दे पर लड़ाई दोनों अलग-अलग बैनर तले ही लड़ेंगे। इस बीच टीम अन्ना में फूट भी साफ दिखाई दे रही है। यह फूट टीम अन्ना के मुस्लिम सदस्य  के निष्कासन को लेकर है। इससे टीम अन्ना में दिखती नई दरार के बीच अन्ना हजारे ने कहा कि सूचना के लीक होने और योग गुरु रामदेव को लेकर टीम में कोई दरार नहीं है। इसी के साथ अपने गांव रालेगण लौटने की तय तिथि से दो दिन पहले ही अन्ना  अपने गांव के लिए रवाना हो गए।
मुफ्ती शमीम काजमी के निष्कासन के बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया में हजारे ने कहा कि इस मुद्दे से फर्क नहीं पड़ता। काजमी को उत्तर प्रदेश के नोएडा में कोर समिति की बैठक को कथित तौर पर रिकॉर्ड करते पाया गया था जिसके बाद उन्हें टीम से निष्कासित कर दिया गया। काजमी ने दावा किया कि उन्होंने समूह के मुस्लिम विरोधी होने के कारण उसे छोड़ दिया। हजारे ने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में रामदेव की भागीदारी को लेकर टीम में कोई मतभेद नहीं है। उन्होंने कहा कि फिलहाल, एक महीने से ज्यादा, मैं महाराष्ट्र की यात्रा करूंगा। उन्हें काले धन के खिलाफ अभियान में हमारा समर्थन है और जन लोकपाल के मुद्दे पर हमें उनका। हम सब भ्रष्टाचार से निपटने के लिए साथ लड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि पूरे देश की यात्रा के दौरान वह और बाबा रामदेव जहां जहां मिलेंगे, मंच साझा करेंगे। हालांकि उन्होंने मानी कि उन दोनों का संयुक्त दौरा नहीं होगा। गौरतलब है कि योगगुरु बाबा रामदेव के खुद को ही सबकुछ समझने के रुख पर टीम अन्ना में बढ़ते तनाव के बीच हजारे का यह बयान आया। योग गुरु के साथ जुडऩे को लेकर टीम अन्ना में पहले भी बहस होती रही है और एक धड़े का मानना है कि रामदेव के खिलाफ आरोप लगे होने के कारण उनके सामने विश्वसनीयता का संकट है। यही कारण है कि कोर कमेटी की बैठक में उनसे दूरी बनाये रखने पर सहमति बनी।  बैठक में यह साफतौर से फैसला किया गया कि रामदेव के साथ संयुक्त अभियान नहीं किया जाएगा, लेकिन दोनों पक्ष एक दूसरे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का समर्थन करेंगे।
दरअसल बाबा और अन्ना के मिलन ने कांग्रेस की भी नींद उड़ा दी थी। एक अकेले अन्ना ने ही उसके नाक में दम कर रखा था। ऊपर से बाबा रामदेव अपने आंदोलन की विफलता से पहले से ही कांग्रेस से खार खाये हुए हैं। दोनों की जोड़ी कांग्रेस की और अधिक फजीहत कर पाती उससे पहले ही दोनों अलग हो गये। इससे निश्चय ही केंद्र सरकार ने राहत की सांस ली। कहा जा रहा है कि बाबा रामदेव के सहयोगी पर लगे कदाचार के आरोपों ने टीम अन्ना को उनसे अलग होने का बहाना दे दिया। हजारे को समझाया गया कि बाबा का साथ लेने पर उनकी छवि को नुकसान पहुंचेगा। बस क्या था अपनी छवि को लेकर सतर्क हजारे योगगुरु से दूरी बनाने पर सहमत हो गये। और इस तरह इस अध्याय का पटाक्षेप हो गया। हालांकि जनलोकपाल, भ्रष्टाचार व कालेधन के मुद्दे पर संयुक्त रूप से आंदोलन करने की पहल खुद अन्ना हजारे ने ही बाबा के हरिद्वार स्थित पतंजलि योगपीठ में आकर की थी। उस वक्त हजारे ने कहा था कि जब दो धुर विरोधी राजनीति में एक साथ आ सकते हैं तो देश हित के लिये दो अच्छे लोग भ्रष्टाचार के खि़लाफ  एक साथ क्यों नहीं आ सकते। उनकी इस घोषणा से कयास लगाया गया था कि बाबा और हजारे दोनों ही साख के संकट से गुजर रहे हैं। इसलिए मिलकर आंदोलन की रणनीति बना रहे हैं। क्योंकि जिस तरह बाबा रामदेव बालकिशन पर लगे आरोपों से बचाव की मुद्रा में ही उसी तरह खुद अन्ना टीम के कई सदस्यों पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं। कभी विवाद अरविंद केजरीवाल पर हुआ तो कभी किरण बेदी पर। प्रशांत भूषण व शांतिभूषण भी भ्रष्टाचार के आरोपों की जद में रहे। ऐसे में कहा गया कि यही कारण है कि दोनों ने मिलकर आंदोलन को आगे बढ़ाने में एक दूसरे की सहायता करने की ठानी है। इस खबर से दोनों के ही समर्थकों में सकारात्मक संदेश गया था। लेकिन यह मृगमरीचिका ही साबित हुआ। क्योंकि टीम अन्ना को यह बात हजम नहीं हुई। उसे लगा कि बाबा रामदेव उनके आंदोलन की पूंजी को डकारना चाहते हैं। बताया जाता है कि बाबा और अन्ना के बीच हुई कई दौर की बैठक के बाद ही संयुक्त आंदोलन का निर्णय लिया गया था। खैर जो हो बाबा रामदेव स्वाभिमान यात्रा के जरिये भ्रष्टाचार और कालाधन के खिलाफ महीनों पहले से पूरे देश की यात्रा कर रहे हैं।
 यहां एक बात गौर करने वाली है कि साख का संकट सिर्फ रामदेव के सामने ही नहीं है। इसी तरह के संकट से खुद टीम अन्ना भी जूझ रही है। खुद उसके कई वरिष्ठ सहयोगियों पर भी गंभीर आरोप लग चुके हैं। इसका कुपरिणाम भी टीम अन्ना देख चुकी है। टीम अन्ना पर लगे आरोपों की वजह लोगों का इससे मोहभंग होता चला गया। क्योंकि कुछ ही महीने पहले जिस आंदोलन को करोड़ों देशवासियों का जबर्दश्त समर्थन मिला था गुजरते वक्त के साथ आन्दोलन की आग ठंडी पड़ती गयी। यही कारण है कि अन्ना और बाबा ने मिलकर आंदोलन चलाने की हामी भरी थी। अन्ना से पहले बाबा रामदेव ने भी रामलीला मैदान से अपनी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की शुरुआत की थी। हालांकि सरकार की शह पर दिल्ली पुलिस ने उस आंदोलन में शामिल लोगों पर रात के अंधेरे में जमकर लाठियां भांजी। मंच व शामियाने तोड़ दिये गये। वहां से बाबा रामदेव को महिलाओं के कपड़े पहरनकर भागना पड़ा था। इससे हुई बदनामी ने योगगुरु को धुर कांग्रेस विरोधी बना दिया। खैर इस घटना ने उनके साख को जबर्दश्त चोट पहुंचाई।
 बहरहाल बाबा व अन्ना के मिलन के समाचार से केंद्र सरकार सांसत में पड़ गयी थी। उसके हाथ पांव फूले हुए थे। भला हो टीम अन्ना का जिसने अपनी जिद की वजह से सरकार को राहत प्रदान की। एक सच्चाई यह भी है इसके पूर्व अन्ना हजारे और  बाबा रामदेव में एक खास तरह की दूरी बनी रही थी। लेकिन कहा जा रहा है कि लोकपाल को लेकर दूसरे चरण में मुंबई में शुरू हुए आंदोलन की असफलता ने उन्हें बाबा का साथ लेने पर बाध्य किया था। हालांकि यह सफल नहीं हो पाया। और इस तरह संयुक्त आंदोलन करने की अपनी घोषणा के मात्र दो दिनों बाद ही अन्ना अपनी टीम के दबाव में अपनी ही कही बातों से पलट गये।
बद्रीनाथ वर्मा

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