शुक्रवार, 17 अगस्त 2012


राष्ट्रीय साप्ताहिक इतवार में प्रकाशित

इंट्रो- राष्ट्रपति उम्मीदवार चुनने के मामले पर अलग-थलग पड़ीं ममता दीदी के साथ प्रदेश कांग्रेस अपना रही उन्हीं का पैंतरा। विधानसभा में अपनी ही गठबंधन सरकार के फैसलों के  खिलाफ। सवाल है कि क्या इससे ममता दीदी पर लगाम लगा पाएगी प्रदेश कांग्रेस या केंद्र की शह पर हो रही दबाव की राजनीति

हाईलाईटर- बंगाल पर 205368.13 करोड़ का कर्ज है जिसके ब्याज के रूप में रिजर्व बैंक 25000 करोड़ रूपये काटता है



उल्टी पड़ी दीदी की छड़ी

एक बड़ी पुरानी कहावत है, 'जैसी करनी, वैसी भरनीÓ। इन दिनों यह कहावत पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर बिल्कुल फिट बैठ रही है। कल तक जो धौंस वह केंद्र की कांग्रेसनीत यूपीए सरकार पर जमाती रहती थीं, अब उसका सामना खुद उन्हें करना पड़ रहा है। प्रदेश कांग्रेस अब उन्हीं का तरीका उन्हीं पर पूरे दमखम से आजमा रही है। वह उनकी परवाह किए बिना नहले पर दहला दिए जा रही हैं। यही नहीं, प्रदेश कांग्रेस का एक गुट तो ममता बनर्जी के खुल्लमखुल्ला विरोध पर उतारू है। यह गुट बहरमपुर के रॉबिनहुड छवि वाले सांसद अधीररंजन चौधरी व गीता दासमुंशी का है। गीता दासमुंशी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे प्रियरंजन दासमुंशी की पत्नी हैं। प्रिय दा के नाम से ख्यात प्रियरंजन दास मुंशी पिछले कई वर्षों से कोमा में हैं। इस गुट को शंकर सिंह आदि जैसे प्रदेश के अन्य वरिष्ठ नेताओं का भी समर्थन हासिल है। पिछले दिनों अधीररंजन चौधरी ने तो साफ-साफ कह दिया था कि यदि ममता को यूपीए से इतनी ही परेशानी है तो क्यों वह यूपीए में बनी हुई हैं। क्यों नहीं वह यूपीए से बाहर चली आती हैं। दरअसल, राष्ट्रपति चुनाव को लेकर शुरू हुई खटास दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। प्रदेश कांग्रेस ममता के विरोध का एक भी मौका चूकना नहीं चाहती। हालत यह है कि राज्य का हित भी राजनीति पर भारी पडऩे लगा है। इसी का नमूना दिखा पिछले दिनों राज्य विधानसभा में। केंद्र से आर्थिक मदद व आगामी तीन वर्षों के लिए ऋण स्थगन की मांग के लिए एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजे जाने के लिए पेश प्रस्ताव को मुख्य विपक्षी दल के साथ ही कांग्रेस ने भी नकार दिया। जबकि कांग्रेस राज्य मंत्रिमंडल में शामिल है। कांग्रेस के इस कदम को उसकी राजनीतिक खुंदक के रूप में देखा जा रहा है। गौरतलब है कि प्रणव मुखर्जी के बदले राष्ट्रपति पद के लिए प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम आजाद व पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी का नाम प्रस्तावित कर अलग-थलग पड़ीं ममता बनर्जी को प्रदेश कांग्रेस भी आंख तरेरने लगी है। हालांकि यह प्रस्ताव उन्होंने मुलायम सिंह यादव के साथ मिलकर रखा था। पर नेताजी ने उन्हें गच्चा दे दिया। वह खुद तो कांग्रेस के सुर में सुर मिलाते हुए प्रणव मुखर्जी के पक्ष में आ डटे। पर ममता बनर्जी अकेली पड़ गईं। राज्य विधानसभा में पेश प्रस्ताव के लिए प्रणव मुखर्जी का समर्थन न करना ममता बनर्जी के लिए भारी पडऩे लगा है। जो काम पहले केंद्र सरकार के साथ दीदी करती थीं, वही अब प्रदेश कांग्रेस उनके साथ करने लगी है। राज्य सरकार में शामिल कांग्रेस अब उनको आंखें तरेरने लगी है। केंद्र से आर्थिक मदद व तीन वर्षों के लिए ऋण स्थगन की मांग पर सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के दिल्ली जाने के प्रस्ताव पर सहमति नहीं बन पाई। इसमें सबसे पहला फच्चर फंसाया कांग्रेस ने।
सरकार में शामिल कांग्रेस के विधायकों ने नियम 169 के तहत संसदीय मंत्री पार्थ चटर्जी द्वारा पेश प्रस्ताव में संशोधन की मांग अस्वीकार किए जाने पर विधानसभा की कार्यवाही से वॉकआउट कर दिया। विपक्षी सदस्य भी सदन के नियम का उल्लंघन कर प्रस्ताव पेश करने व बिना पूर्व सूचना का आरोप लगाते हुए बाहर चले गए। ममता के साथ इस मुद्दे पर एसयूसीआइ का एकमात्र सदस्य ही है। कांग्रेस के साथ ही पूरे विपक्ष के वाकआउट कर जाने के बावजूद 5 जुलाई को विधानसभा में बिना विपक्ष व कांग्रेस की सहमति के सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल दिल्ली भेजने का प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित हो गया।

बाद में संसदीय मामलों के मंत्री पार्थ चटर्जी ने संवाददाताओं से कहा कि उन्होंने नियम 169 के तहत विधानसभा में प्रस्ताव पेश किया था। प्रस्ताव में बताया गया था कि 20 फरवरी, 2012 तक बंगाल पर 205368.13 करोड़ रुपये का कर्ज है। प्रत्येक वर्ष रिजर्व बैंक इसके ब्याज पर 25,000 करोड़ रुपये काट लेता है। चटर्जी ने कहा कि केंद्र से बैकवर्ड रिजन ग्रांट फंड के तहत 2011-12 के दौरान दिए गए 8750 करोड़ की मदद फिर से मांगी जाएगी। इसके अलावा बंगाल को कोयले की रॉयल्टी राशि भी दिए जाने की मांग की गई है। विपक्ष पर तुच्छ राजनीति करने का आरोप लगाते हुए
पार्थ चटर्जी ने कहा कि विपक्ष नियमों का हवाला देकर जानबूझ कर प्रस्ताव में शामिल नहीं हुआ। उन्होंने कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष को ही राज्य विरोधी करार दिया। उन्होंने कांग्रेस व विपक्ष से आह्वान किया कि वे क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठ कर बंगाल के हित में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल हों, क्योंकि राज्य का हित सर्वोपरि है। उन्होंने विपक्ष के उस बयान को भी खारिज कर दिया कि धारा 355 या 356 लगाए जाने के बाद ही ऋण स्थगन की मांग की जा सकती है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री के प्रस्ताव पर वह चाहते थे कि सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकनी छोड़ कर केंद्र पर राज्य को आर्थिक मदद देने का दबाव बनाएं। पर विपक्ष राज्य के किसानों की तरफ से हृदयहीन हो घटिया राजनीति कर रहा है।
दूसरी तरफ वाम मोर्चा ने भी सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल नहीं होने का निर्णय लिया है। विपक्ष के नेता डॉ सूर्यकांत मिश्र ने इस मुद्दे पर पार्टी लाइन साफ करते हुए कहा कि वाम मोर्चा के विधायक सर्वदलीय प्रधिनिधिमंडल में शामिल नहीं होंगे। कांग्रेस के विधायक दल के नेता मोहम्मद सोहराब ने कहा कि उन्होंने प्रस्ताव के पैरा छ: में संशोधन करने का प्रस्ताव दिया था। संशोधन प्रस्ताव में कहा गया था कि आर्थिक मदद के मुद्दे पर केंद्र सरकार से बातचीत जारी है, लेकिन उसे अस्वीकार कर दिया गया। इसलिए वे विधानसभा की कार्यवाही से वॉकआउट कर गए। उन्होंने कहा कि विधानसभा में जो प्रस्ताव पारित हुआ है, उसमें संशोधन के बिना वे सरकार के प्रतिनिधिमंडल के साथ दिल्ली नहीं जाएंगे। यदि उसमें संशोधन किया जाता है, तभी दिल्ली जाने पर विचार करेंगे।
फिलहाल विपक्ष के इस रवैये से दीदी मुसीबत में घीरी नजर आ रही हैं। प्रदेश में कांग्रेस का तृणमूल से इस प्रकार खुंदक निकाले जाने को लेकर चर्चा गर्म है और माना जा रहा है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो प्रदेश में यह गठबंधन ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाएगा। दूसरी तरफ विपक्ष और प्रदेश कांग्रेस पर भी सवाल उठने लगे हैं कि क्या दीदी द्वारा जनता के पक्ष में किए जाने वाले कार्यों का भी विरोध वे यूं ही करते रहेंगे? प्रदेश कांग्रेस को इसके लिए केंद्र से निर्देश मिल रहे हैं या स्थानीय नेता स्वयं ऐसे निर्णय ले रहे हैं?

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