शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

एक और झटका


राष्ट्रीय साप्ताहिक इतवार में प्रकाशित

दीदी की हिटलरशाही को एक नया झटका दिया है कलकत्ता हाईकोर्ट ने। इस झटके को राजनीतिक गलियारे में काफी अहम माना जा रहा है। दरअसल सिंगूर भूमि पुनर्वास और विकास अधिनियम को कलकत्ता हाईकोर्ट की ओर से असंवैधानिक करार देने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बचाव की मुद्रा में आ गई हैं। हालांकि उन्होंने दोहराया है कि सरकार किसानों की जमीनें उन्हें लौटाने को प्रतिबद्ध है। मुख्यमंत्री ने पत्रकारों से कहा कि सिंगूर के जो किसान अपनी जमीन नहीं देना चाहते उन्हें उनकी जमीन हरहाल में वापस की जाएगी। सरकार इसके लिए कटिबद्ध है।
सिंगूर की जिस जमीन को लेकर हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है उसे टाटा कंपनी को नैनो कार बनाने के लिए तत्कालीन वामपंथी सरकार की ओर से ही लीज पर दी गई थी। भूमि अधिग्रहण के खिलाफ कुछ किसानों ने आंदोलन किया था जिसे ममता बनर्जी का परोक्ष समर्थन हासिल था। विरोध प्रदर्शनों से तंग आखिरकार टाटा की ओर से अपनी इस महत्वाकांक्षी परियोजना को गुजरात ले जाने का फैसला लिया गया था।
इसके बाद सत्ता में आई ममता बनर्जी सरकार ने पिछले वर्ष जून में एक अधिनियम के जरिए सिंगूर में टाटा के साथ हुए समझौते को रद्द करते हुए जमीन किसानों को वापस देने का प्रावधान किया था। लेकिन मामला कोर्ट में चला गया। आखिरकार हाईकोर्ट ने इस अधिनियम को यह कहकर खारिज कर दिया कि इस अधिनियम के लिए राष्ट्रपति से अनुमति नहीं ली गई थी। दूसरी तरफ राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी माकपा ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले से यह साबित हो गया कि उनकी सरकार का निर्णय सही था।
राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता सूर्यकांत मिश्रा ने कहा कि हम शुरू से कहते रहे हैं कि ममता सरकार का यह तुगलकी अधिनियम असंवैधानिक है। हमने सरकार को कई सुझाव भी दिए थे कि इस मामले से किस तरह से निपटा जाना चाहिए परन्तु सरकार ने हमारी एक नहीं सुनी। बहरहाल कोर्ट के इस फैसले से अनिच्छुक किसानों में हताशा है। उन्हें उम्मीद थी कि जल्द ही उनकी जमीने उन्हें वापस मिल जाएगी। परंतु अब इसकी आशा क्षीण ही नजर आ रही है। हालांकि ममता बनर्जी ने कहा है कि वह किसानों के साथ हैं। और आगे भी रहेंगी। भले ही फिलहाल कोर्ट के फैसले से इसमें थोड़ी देर हो गयी लेकिन आखिर में जीत उनकी ही होगी।
गौरतलब है कि टाटा ने इस मामले में कलकत्ता हाई कोर्ट के ही एक सदस्यीय बेंच के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसने पिछले वर्ष इस अधिनियम को सही ठहराया था। फैसला आने के बाद तृणमूल के सांसद व इस मामले को देख रहे वकील कल्याण बंद्योपाध्याय ने कहा कि फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और सीपीएम के नेता सूर्याकांत मिश्रा ने हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि इससे उनकी पार्टी की बात सही साबित हुई है। उनका कहना था, हम कहते रहे हैं कि ये अधिनियम असंवैधानिक है और हमने सरकार को कई सुझाव भी दिए थे कि इस मामले से किस तरह से निपटा जाना चाहिए पर सरकार ने हमारी एक न सुनी। फिलहाल सिंगूर की जमीन टाटा के पास ही है और कंपनी ने इसे वापस लौटाने से इनकार कर दिया है। सिंगूर का विकास खंड कार्यालय, जहाँ पिछ्ले कई दिनों से ज़मीन वापस पाने की आस रखे किसान अपने ज़मीन के कागज जमा करा रहे थे वहां हाईकोर्ट का स्थगन आदेश आते ही मायूसी छा गई। कई किसान जो बरसते पानी और कीचड़ के बीच अपने जमीन के कागजों को प्लास्टिक के लिफाफों में संभाल कर लाए थे वो इस आदेश के बाद हतप्रभ खड़े रह गए। यूं तो कार्यालय में किसानों के कागज स्वीकार किया जाना बदस्तूर जारी है, लेकिन किसान परेशान हैं और वो ये जानना चाहते हैं कि अब इस आदेश के बाद उन्हें उनकी जमीन कब वापस मिलेगी। मिलेगी भी या नहीं।

बहरहाल यह तो तय है कि यह आदेश किसानों के खिलाफ गया है। इस पर टिप्पणी करते हुए स्थानीय तृणमूल कांग्रेस नेता महादेव दास ने कहा कि हमें लगा था कि अदालत किसानों की परेशानी ध्यान में रखेगी पर ऐसा नहीं हुआ। लेकिन जमीन हमारी है और हम उसे हर हाल में लेकर रहेंगे।
दास पार्टी की तरफ से अनिच्छुक किसानों को जमीन लौटाने के काम की देख रेख कर रहे हैं।
सिंगूर थाना क्षेत्र में कई गांवों की जमीन टाटा कंपनी के नैनो कार के कारखाने और उसके सहायक कारखानों के लिए अधिग्रहित की गई थी। इस क्षेत्र को बंगाल में धान और आलू उत्पादन के केंद्र के रूप में जाना जाता है। प्रभावित किसानों और ऐसे भूमिहीन मजदूरों जिनकी आजीविका अधिग्रहित जमीन से ही चलती थी, उनकी तादाद हजारों में है।
गोपाल नगर के एक किसान मधुसूदन कोले कहते हैं कि स्थगन ही तो आया है। यह कोई हमारे खिलाफ आदेश थोड़े ही है। जैसे पांच साल इंतजार किया वैसे कुछ दिन और कर लेंगे। लेकिन अपनी जमीन किसी भी कीमत पर टाटा कंपनी को नहीं देंगे। चाहे इसके लिए हमें जो भी करना पड़े सब मंजूर है। यूं तो एक हजार एकड़ जमीन अधिग्रहण से करीब तेरह हजार किसानों की जमीनें गई थीं, लेकिन इनमें से अधिकतर ने जमीन का मुआवजा ले लिया था। करीब तीन हजार किसानों ने अपनी जमीन के बदले में कुछ भी लेने से इनकार कर दिया था और ऐसे किसानों ने ही ममता बनर्जी के आंदोलन को जीवित रखा था। इन तीन हजार किसानों में से अब तक 900 किसान अपनी अधिगृहीत जमीन के कागजात लाकर विकास खंड में जमा करा चुके हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें