सोमवार, 13 अगस्त 2012

नंदीग्राम के रावण

नंदीग्राम के रावण (राष्ट्रीय साप्ताहिक इतवार में प्रकाशित)

लखन सेठ। पश्चिम बंगाल के राजनीतिक गलियारे में एक जाना पहचाना नाम। दबंग माकपा नेता। काफी हद तक कुख्यात। खौफ का दूसरा नाम कहा जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। एक समय इलाके में तूती बोलती थी, किन्तु नंदीग्राम में किसानों के आंदोलन को कुचलने के फेर में ऐसे पड़े कि जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गये। जिस मामले को लेकर लखन सेठ सलाखों के पीछे पहुंचे हैं वह पांच साल पूर्व का है। प्रदेश की तत्कालीन वाममोर्चा सरकार द्वारा औद्योगीकरण के लिए नंदीग्राम में शुरू किये गये भूमि अधिग्रहण के खिलाफ  शुरू किसानों के आंदोलन को कुचलने में सेठ ने सारी मर्यादायें पार कर ली थीं। नंदीग्राम में प्रस्तावित केमिकल सेज के लिए अधिग्रहण की जाने वाली जमीन को लेकर भूमि उच्छेद प्रतिरोध समिति के बैनर तले स्थानीय किसानों ने जोरदार आंदोलन चलाया था। आरोप है कि लखन सेठ के इशारे पर किसानों में दहशत फैलाने के लिए आंदोलन के क्रम में 10 नवंबर, 2007 को निकली एक रैली पर अंधाधुंध फायरिंग की गयी। इसी के साथ रैली में शामिल सात आंदोलनकारियों का अपहरण कर लिया गया था। उन लोगों का आज तक पता नहीं चला। मामले में अब तक 18 गिरफ्तारियां हो चुकी हैं। लापता ग्रामीणों में नारायण दास, सुबल मांझी, आदित्य बेरा, भागीरथ माईती, सत्येन गोल, बाबू दास व बलराम सिंह का नाम शामिल है। उस भयावह दिन को भले पांच साल बीत गये हों किन्तु नंदीग्राम के घाव अब तक हरे हैं।  
 यह कार्रवाई तमलुक के तत्कालीन सांसद लखन सेठ के इशारे पर हुई थी। उन सात लोगों का आज तक पता नहीं चला। उन्हें जमीन निगल गयी या आसमान खा गया, इसकी सटीक जानकारी किसी के भी पास नहीं है। इसकी सही जानकारी अगर किसी के पास है तो वह हैं लखन सेठ व उनके साथी। सूत्रों के अनुसार सीआईडी के सामने पूर्व सांसद ने इस घटना से पर्दा हटा दिया है। पूछताछ में उनसे सीआईडी अधिकारियों को कई सनसनीखेज जानकारियां मिली। सीआईडी की ओर से इस बात की पुष्टि भी की गयी है कि सेठ ने नंदीग्राम प्रकरण पर अपनी समस्त भूमिका स्वीकार कर ली है। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि नंदीग्राम में घटी उक्त घटना और उसके बाद एक के बाद एक घटी घटनाएं माकपा सरकार के अवसान का कारण बन गयीं। राज्य में लगातार 34 वर्षों तक एकछत्र शासन करने वाली माकपा की इज्जत विधानसभा चुनाव में तार तार हो गयी। उसे ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के हाथों मुंह की खानी पड़ी।
बहरहाल नंदीग्राम में वर्ष 2007 में हुई हिंसा के मामले में सीपीएम के पूर्व सांसद लखन सेठ और उनके दो सहयोगी हल्दिया के एडिशनल चीफ जुडिशियल मजिस्ट्रेट की अदालत के आदेश पर जेल में हैं। सूत्रों के अनुसार जांच के क्रम में आरोपियों की निशानदेही पर सीआईडी के अधिकारियों ने खेजुरी स्थित जननी ईंट-भ_े का मुआयना किया जहां आंदोलन के दौरान सीपीएम कार्यकर्ताओं ने कथित रूप से भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद एकत्र कर रखे थे।
कंकाल कांड में फंसे माकपा के धाकड़ नेता सुशांत घोष के बाद लखन सेठ के कानून के लपेटे में आ जाने से माकपा के हाथ पांव फूले हुए हैं। माकपा के इस बहुचर्चित पूर्व सांसद को अपराध जांच विभाग (सीआईडी) ने पिछले दिनों उनके दो अन्य साथियों अशोक गुडिय़ा और अमिय साहू के साथ मुंबई के एक गेस्ट हाउस से गिरफ्तार किया था। साहू पांशकुड़ा के पूर्व विधायक हैं तथा गुडिय़ा पार्टी की पूर्व मेदिनीपुर जिला सचिव मंडली समिति के सदस्य हैं। उनकी गिरफ्तारी नंदीग्राम कांड के मुख्य षड्यंत्रकारी के आरोप में की गयी। लखन सेठ तमलुक संसदीय क्षेत्र से पूर्व सांसद हैं। नंदीग्राम इसी संसदीय क्षेत्र का एक हिस्सा है। नंदीग्राम कांड में उनका नाम आने के बाद से ही वे फरार चल रहे थे। सेठ का प्रताप हल्दिया के बच्चे -बच्चे की जुबान पर है। इलाके में उनकी तूती बोलती थी। वाममोर्चा के शासनकाल में वे वहां के बेताज बादशाह माने जाते थे। दबदबा इतना था कि उनकी इच्छा के विरुद्ध वहां एक पत्ता भी नहीं हिलता था, किन्तु पिछला लोकसभा चुनाव हारने के बाद से उनका आभामंडल ध्वस्त होता चला गया। सीआईडी का दावा है कि लखन सेठ की गिरफ्तारी के साथ ही नंदीग्राम कांड का मुख्य मास्टर माइंड जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गया है।

आपरेशन सूर्योदय के पीछे का अंधेरा
सूत्रों के अनुसार किसानों के आंदोलन से घबराई माकपा की स्थानीय इकाई ने आंदोलन को तोडऩे के लिए आपरेशन सूर्योदय शुरू किया था।  इसी आपरेशन के तहत आंदोलनकारियों को निपटाने की योजना बनायी गयी। स्थानीय माकपा कार्यालय में लखन सेठ, अशोक गुडिय़ा व अमिय साहू के नेतृत्व में इसकी रूपरेखा तैयार की गयी। सीआईडी के एक अधिकारी के अनुसार 10 नवम्बर 2007 को भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी की शांति रैली पर माकपा के कथित हथियार बंद लोगों ने तीन तरफ से घेर कर गोलियां चलाई थीं। गोली से दो लोगों की घटनास्थल पर ही मौत हो गयी थी। दो की रास्ते में मौत हो गयी थी। तीन को पास स्थित र्इंट भट्टा के पास ले जाकर मार दिया गया था। इसके बाद सभी लाशों को समुद्र में बहा दिया गया था। उक्त अधिकारी के अनुसार इस वारदात को अंजाम देने के लिए पश्चिम मिदनापुर और दक्षिण 24 परगना जिले से भी लोग बुलाये गये थे। उस गोलीकांड ने नंदीग्राम को देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में सुर्खियों में ला दिया था। कहा जाता है कि समय सबसे बड़ा मरहम है लेकिन उस घटना के पांच साल बीतने के बावजूद इलाके के लोगों के घाव अभी भी नहीं भरे हैं। इलाके में ऊपर से देखने पर तो जीवन सामान्य नजर आता है लेकिन उस दिन की घटना का जिक्र करते ही लोगों की आंखें बहने लगती हैं।
 सब हेडिंग -नरसंहार के बाद भी जस का तस नंदीग्राम
नंदीग्राम यानी पश्चिम बंगाल के पूर्व मेदिनीपुर जिले का एक छोटा सा कस्बा। विश्व मानचित्र पर आये नंदीग्राम इलाके में इन पांच वर्षों में कुछ भी नहीं बदला है। यहां लगता है समय मानो ठहर-सा गया है। सड़कें वैसी ही टूटी-फूटी हैं। इलाके से शहर तक जाने के पर्याप्त साधन नहीं हैं। बीमारी की हालत में दूरदराज जिला मुख्यालय स्थित अस्पताल तक जाने के लिए अब भी रिक्शा वैन का ही सहारा है। इन पांच वर्षों के दौरान सीपीएम से लेकर तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने वादे तो थोक में किये, लेकिन उनको हकीकत में नहीं बदला। स्थानीय लोगों का आरोप है कि चुनाव के समय तमाम दलों के नेता वोट मांगने आते हैं। बड़े बड़े वादे भी करते हैं, किन्तु जीतने के बाद एक बार भी झांकने नहीं आते हैं। नंदीग्राम से सटे सोनाचूड़ा और आस-पास के गांवों में भी हालात ऐसे ही हैं। लखन सेठ की गिरफ्तारी पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए तृणमूल कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष परश दत्त ने कहा कि माकपा की गुंडावाहिनी के कमांडर लखन सेठ जैसे लोगों की असली जगह जेल ही है। जिस निर्मम तरीके से उन्होंने निर्दोष ग्रामीणों का कत्लेआम कराया है उसकी सजा तो उन्हें भुगतनी ही पड़ेगी।

प्रसंगवश यहां यह उल्लेख समीचीन होगा कि नंदीग्राम प्रकरण पर एडीपीआर, पीबीकेएमएस आदि संगठनों की एक जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। इसमें उल्लेख किया गया था कि नंदीग्राम नरसंहार की पूरी तैयारी पहले से चल रही थी और सरकार में बैठे उच्चाधिकारियों के स्तर पर इसकी पूरी योजना बनायी गयी थी। इस लोमहर्षक घटना के कुछ छींटे तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य पर भी पड़े थे। आरोप था कि उनकी भी इसमें मूक सहमति थी। ऐसा इस आधार पर कहा गया कि जब घटना घटित हुई थी उस समय गृह मंत्रालय स्वयं मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के ही अधीन था। रिपोर्ट के अनुसार जिस तरह की घटनाएं घटीं और उसके बाद जो हुआ उसको देखें तो सीपीएम और पुलिस की मिलीभगत साफ दिखती है। जांच टीम ने प्रत्यक्षदर्शियों व लापता लोगों के परिजनों से बातचीत के आधार पर घटना के बारे में विस्तार से  उल्लेख किया था कि किस तरह की कयामत टूट पड़ी थी नंदीग्राम पर। इन संगठनों ने कोलकाता उच्च न्यायालय में इस मामले में एक याचिका भी दाखिल की थी।        
सब हेडिंग- माकपा की बेचैनी
माकपा नेता इस सारे घटनाक्रम पर बयान देने से बचने की कोशिश करते नजर आते हैं। एक के बाद एक माकपा नेताओं के कानून के शिकंजे में फंसते जाने से पार्टी में बेचैनी बढ़ती जा रही है। रक्षात्मक मुद्रा में आई माकपा को समझ नहीं आ रहा है कि वह इस झंझावात से कैसे निकले।  पार्टी के सभी नेता सकते में हंै। माकपा हर बयान नाप तौल कर दे रही है। सूत्रों के अनुसार लखन सेठ मामले पर नेताओं को मीडिया में संभल कर बयान देने को कहा गया है। हालत यह है कि सुशांत घोष के पक्ष में डटकर खड़ी रही माकपा सेठ से दूरी बनाये रखने में ही अपनी भलाई समझ रही है। माकपा नेता रवीनदेव इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई करार देते हुए आरोप लगाते हैं कि सरकार विरोधियों को झूठे मामले में फंसा कर जेल भिजवा रही है। देव ने नंदीग्राम पर पुनर्दखल में पार्टी के पूर्व सांसद लखन सेठ की सक्रिय भूमिका संबंधी सीआईडी के दावे पर भी सवाल खड़ा किया। उन्होंने कहा कि जिस तरह से पूर्व मेदिनीपुर जिले के अतिरिक्त पुलिस सुपर नीलाद्री चक्रवर्ती का तबादला हुआ है, उससे साबित होता है कि सीआईडी निष्पक्ष होकर काम नहीं कर रही है। उल्लेखनीय है कि सेठ को फायदा पहुंचाने के आरोप में राज्य सरकार ने हाल ही में जिले के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक का तबादला कर दिया था। रवीनदेव ने कहा कि यदि सेठ ने अपनी संलिप्तता कबूल भी कर ली है तो इसकी जानकारी सीआईडी को अदालत को देनी चाहिए न कि मीडिया को।
बहरहाल वाममोर्चा सरकार के दौरान सुशांत घोष व लखन सेठ जैसे नेताओं को माकपा का वरदहस्त हासिल था। दबदबा इतना था कि कोई चूं तक नहीं कर सकता था। लेकिन विगत लोकसभा चुनाव में पासा पलट गया था। सेठ को उन्हीं के गढ़ में तृणमूल कांग्रेस ने पटखनी दे दी थी। इस चुनाव में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था। बाहुबली लखन सेठ को तृणमूल के टिकट पर  कोंताल के विधायक शुभेन्दु अधिकारी ने शिकस्त दी थी। शुभेन्दु के पिता शिशिर अधिकारी भी तृणमूल सांसद व केन्द्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री हैं।
कंकाल कांड में फंसने के बाद महीनों जेल की सलाखों के पीछे गुजारने के बाद सुशांत घोष इन दिनों जमानत पर हैं। वे कंकाल कांड के मुख्य अभियुक्त हैं। अभी हाल ही में इस मामले की गूंज संसद में भी सुनाई दी थी। कहना गलत नहीं होगा कि अपनी व पार्टी की दुर्दशा के लिए सुशांत व लखन सेठ जैसे नेता स्वयं ही जिम्मेदार हैं। मजेदार बात यह है कि कंकाल कांड में सीआईडी के हत्थे चढ़े सुशांत घोष का माकपा ने जबरदस्त बचाव किया था । पार्टी पूरे दमखम के साथ उनके साथ डटी रही। यहां तक कि जिस दिन वे जमानत पर छूटे हीरो की तरह उनका स्वागत किया गया। यही नहीं, जेल से छूटने के बाद उन्हें पार्टी में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गयी। इसके विपरीत कभी माकपा के धाकड़ नेता रहे लखन सेठ से पार्टी किनारा करती नजर आ रही है। इसे लेकर माकपा के एक वर्ग में असंतोष भी दिख रहा है।
खैर, जो भी हो अब देखना यह है कि सेठ, गुडिय़ा और साहू को सीआईडी उनके अंजाम तक पहुंचा पाती है या नहीं।
बद्रीनाथ वर्मा


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