सोमवार, 27 मई 2013

चार साल, सौ सवाल


                                                         बद्रीनाथ वर्मा

घोटाले, महंगाई, सियासी मजबूरियां, लकवाग्रस्त नीतियां, दागी मंत्री और परेशान जनता। यूपीए सरकार की दूसरी पारी पर नज़र दौड़ाएं तो चंद ऐसे ही लफ्ज़ ज़हन से गुज़रते हैं। कहने को तो मनमोहन सरकार अपनी दूसरी पारी के चार साल काट चुकी है लेकिन इस दौरान अपना अस्तित्व बचाकर रखना ही इस सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि रही। 'कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ' का नारा गूंजता रहा लेकिन आम आदमी कांग्रेस के उस हाथ में सुखद स्पर्श के बजाए तमाचे की छवि महसूस करता रहा। अरुण जेटली कहते हैं कि इस सरकार की केवल एक उपलब्धि है और वो यह कि उसने सीबीआई के दुरुपयोग से चार साल का कार्यकाल पूरा किया है। मनमोहन सरकार ने अपनी चौथी वर्षगांठ मनायी। मनाना भी चाहिए, पर इससे हासिल क्या हुआ। सबसे बड़ा सवाल यही है।  यह तो अपने ही हाथों अपनी पीठ थपथपाने वाली बात हुई। सरकार में सहभागी रही कई पार्टियां उसका साथ छोड़ कर जा चुकी है। जो बची हैं वह भी उसके साथ तनकर खड़ा होने का साहस नहीं दिखा पा रही हैं। उत्तर प्रदेश की दो धुर विरोधी पार्टी मानी जाने वाली समाजवादी पार्टी और बहुजन पार्टी सरकार को समर्थन दे रही हैं पर चौथी वर्षगांठ पर आयोजित रात्रिभोज से समाजवादी पार्टी नदारद रही। दरअसल, सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे हिंदी पट्टी के चारो दल- समाजवादी पार्टी, बीएसपी, आरजेडी और एलजेपी अपनी-अपनी वजहों से सरकार के साथ हैं तो जरूर पर दूरी भी बनाकर रखना चाहते हैं। डर है कि कहीं कांग्रेस के मंत्रियों के किये भ्रष्टाचार का खामियाजा उन्हें न भुगतना पड़े। पिछले एक साल में कुल छह पार्टियों ने यूपीए का साथ छोड़ा है। इनमें ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और एम. करुणानिधि की डीएमके जैसे दूसरे और तीसरे नंबर के घटक भी शामिल हैं। यह भी दिलचस्प है कि यूपीए के साथ सबसे लंबी दूरी शरद पवार की एनसीपी ने तय की, जिसे सन 2004 में गठबंधन बनाते वक्त सबसे अविश्वसनीय सहयोगी माना जा रहा था। जहां तक सवाल इस सरकार की राजनीतिक जमीन का है तो इस बारे में कहने को ज्यादा कुछ बचा नहीं है। समुद्र की लहरों की तरह एक के बाद एक आती भ्रष्टाचार की खबरों के कारण बीते चार साल न सिर्फ सरकार, बल्कि देश के लिए भी दु:स्वप्न सरीखे गुजरे हैं। इन सभी मामलों में एक साझा बात यह थी कि इनसे जुड़ी सूचनाएं सरकार के ही किसी अंग, सीएजी या सीबीआई के जरिए सामने आईं। हालांकि कुछ मामलों में सूचना के अधिकार की भूमिका महत्वपूर्ण रही, और जब-तब न्यायपालिका को भी इसके लिए पूरी ताकत लगानी पड़ी। भारतीय राज्य मशीनरी और इसे चलाने वाले मंत्रियों को लेकर देश में पहले भी कोई अच्छी राय नहीं रही है। लेकिन पिछले चार सालों में भ्रष्टाचार का जो ज्वालामुखी सा फूट पड़ा है। उसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि प्रधानमंत्री तथा कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में सत्ता के दो केंद्रों की मौजूदगी ने भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है। आम लोगों में यह धारणा घर कर गई है कि इस सरकार में शामिल सारे के सारे लोग भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। हाल में आये सर्वेक्षणों में एक बात कॉमन दिखी कि देश की जनता अब इस सरकार को और झेलने के मूड में नहीं है। अगर आज चुनाव हो जाएं तो यूपीए की सीटों की संख्या घटकर आधी रह जाएगी। सिर्फ एक बात आज भी सरकार के पक्ष में जाती है कि जो ताकतें यूपीए का विकल्प बन सकती हैं- एनडीए या संभावित तीसरा मोर्चा- वे स्थिरता, शुचिता और नीतिगत समझ का कोई खाका अभी नहीं पेश कर पा रही हैं। यूपीए और उसके समर्थक दल अपने लिए मौजूद इस संकरी जगह का इस्तेमाल दोबारा खड़ा होने में कर पाते हैं या नहीं, अगले कुछ महीनों में उनका इतना ही कौशल देखने को रह गया है। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान  206 सीटें लाकर 22 मई 2009 को देश की सत्ता पर काबिज़ हुई कांग्रेस ने सबको चौंका दिया था। लेकिन मौजूदा हालत के मद्देनज़र साफ है कि कांग्रेस लोगों की आकांक्षाओं पर खरी नहीं उतरी। यूपीए-2 में आए दिन न सिर्फ घोटालों की खबरें सुर्खियां बटोरती रहीं बल्कि कैग रिपोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां सरकार को बेनकाब करती रहीं। यही वजह है कि विपक्ष मनमोहन सरकार को आज़ाद भारत की सबसे भ्रष्ट सरकार बताने से भी नहीं चूकता। विपक्ष के आरोपों की जड़ में दरअसल वो सिलसिलेवार घोटाले हैं जिन्होंने सरकार की नैतिक सूरत ही बिगाड़ कर रख दी। कई मंत्रियों के दामन दागदार हुए तो कइयों को जेल की हवा खानी पड़ी। घोटालों ने सरकार को बदनाम किया तो महंगाई और आर्थिक नीतियों ने आम लोगों की कमर तोड़ दी। डीज़ल के लगातार बढ़ते दाम, रसोई गैस सब्सिडी में कटौती, ब्याज़ दरों में राहत का ना मिलना और फल- सब्ज़ी-दूध जैसी रोज़मर्रा की चीजों के बढ़ते दामों ने आम आदमी की जेब नोंच ली।
 बहरहाल, एक तरफ यूपीए टू की तरफ से चौथी वर्षगांठ मनाई जा रही थी तो दूसरी तरफ मनमोहन सरकार को अब तक की सबसे भ्रष्टतम सरकार का तमगा देते हुए मनमोहन सिंह को सबसे कमजोर प्रधानमंत्री बताया। 

गये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास



                                बद्गीनाथ वर्मा

गये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास। यह कहावत इन दिनों पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ पर पूरी तरह फिट बैठ रही है। 15 साल पहले परवेज़ मुशर्रफ ने सेना की बंदूक के दम पर सियासत को बेचारा, बेबस और बुद्धू बनाया था लेकिन आज मुशर्रफ की मुट्ठी में अपील, इंतज़ार और अंधकार के सिवा कुछ भी नहीं। पाकिस्‍तान की सियासत में फिर से पांव  जमाने की ललक लिए लंदन से वापस लौटे मुशर्रफ की मुश्किलें दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही हैं। कहां तो बेचारे स्व निर्वासन खत्म कर आये थे चुनाव लड़कर पाकिस्तानी जनता पर हूकूमत करने का ख्वाब लिए और यहां आकर किस मकड़जाल में फंस गये। यह तो वही बात हुई कि रोजा बख्शाने गये थे पर नमाज गले पड़ गई। बेचारे महज कुछ दिनों पहले तक इस्लामाबाद के चक शहजादस्थित अपने आलीशान फॉर्महाउस में बैठकर शाही रोमियो-जूलियट सिगार पीते हुए सुनहरे भविष्य का ख्वाब देख रहे थे। कहते थे, कि पाकिस्तान को बचाने आये हैं। लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाकर नवाज शरीफ को अपदस्थ करने वाले मुशर्रफ चुनावी लोकतंत्र के जरिए फिर से शासन की बागडोर हथियाना चाहते थे। चुनाव लड़ने के मंसूबों के साथ वे गाजे-बाजे के साथ पाकिस्‍तान पहुंचे थे। उन्होंने चार जगहों कराची, इस्‍लामाबाद, कसूर और चित्राल से नामांकन भरा। पर सारा गुड़ गोबर हो गया। चुनाव आयोग ने उनके खिलाफ चल रही अदालती कार्रवाई को आधार बनाकर उनके चारों के चारों नामांकन रद्द कर दिये। चुनाव आयोग की इस कार्रवाई से नाराज मुशर्रफ ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। पर यहां तो और भी बुरा हुआ। चुनाव आयोग की कार्रवाई को जायज ठहराते हुए पेशावर हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दोस्त मोहम्मद खान ने मुशर्रफ पर आजीवन चुनाव लड़ने या संसद सदस्य बनने पर पाबंदी लगाते हुए सत्ता हासिल करने के उनके सपनों को चकनाचूर कर दिया। यह पहला मौका है जब पाकिस्तान की किसी अदालत ने अपने किसी नागरिक पर आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाया है। दरअसल, चुनाव आयोग ने उन्हें यह कहकर अयोग्य ठहरा दिया था कि उनके खिलाफ अदालत में मामले लंबित हैं। इसी मामले के खिलाफ उन्होंने पेशावर हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। वह चार साल के स्व निर्वासन के बाद चुनाव में भाग लेने के लिए कुछ दिनों पूर्व ही पूरे बाजे गाजे के साथ पाकिस्तान लौटे थे। चार जगहों से नामांकन भी भरा लेकिन पहले चुनाव आयोग ने और बाद में पेशावर हाईकोर्ट ने उनके मंसूबों को पलीता लगा दिया। चुनाव आयोग की कार्रवाई को सही ठहराते हुए न्यायाधीश खान अपने आदेश में यह कहना नहीं भूले कि अपने शासन काल में इस पूर्व तानाशाह ने दो बार देश का संविधान रद्द किया था।
यहां मुशर्रफ शायद इस बात को भूल गये थे कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश इफ्तेखार चौधरी समेत साठ जजों को निलंबित करते हुए उन्हें नजरबंद कर दिया था। बहरहाल, चुनाव आयोग के निर्णय पर पेशावर हाई कोर्ट की मुहर ने एक बात तो साफ कर दी है कि मुशर्रफ के लिए मुश्किलों का दौर शुरू हो गया है। न खुदा ही मिला न विसाले सनम की तर्ज पर कहा जा सकता है कि सत्ता हासिल करने के उनके मंसूबे ध्वस्त हो जाने के बाद कैदी के रूप में वह जरूर सोच रहे होंगे कि क्यों वे लंदन से वापस लौटे। बहरहाल, उन्होंने कभी सपने में भी यह नहीं सोचा होगा कि जिस फार्म हाउस को उन्होंने बड़े जतन से सजाया संवारा था वही उनके लिए जेल बन जाएगा। और सत्ता सुख मिलने के बजाय वह इसी फार्म हाउस में बंदी का जीवन बीताने को मजबूर कर दिए जाएंगे। इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने 2009 में 60 जजों को नजरबंद बनाने के मामले में उनकी गिरफ्तारी के आदेश दिए थे ।इस फैसले की जानकारी मिलते ही मुशर्रफ अदालत से भाग खड़े हुए थे।
गिरफ्तारी का आदेश होने के बाद भागकर फार्म हाउस में जाकर छिप जाने को लेकर भी उनकी खूब जग हंसाई हुई । अगले दिन जब उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया तो वकीलों ने नारा लगाया था कि गीदड़ भागा रे। पाकिस्तान को अपनी ऊंगली पर नचाने वाला 70 साल का 'पूर्व तानाशाह' 'जनरल' सत्ता का स्वाद चखने आया था, लेकिन समय के घूमते चक्र ने उसे विश्व सैन्य इतिहास के सबसे कायर जनरलों की कतार में खड़ा कर दिया ।
 अपनी हनक व हेकड़ी के आगे किसी को भी कुछ न समझने वाले मुशर्रफ भगोड़ा व कायर का ठप्पा लगाए अपने फार्म हाउस पर बंदी का जीवन बिताते हुए उस पल को जरूर कोस रहे होंगे, जब उन्होंने पाकिस्तान लौटने का फैसला किया। उस पर तुर्रा यह कि उनकी हिरासत अवधि हनुमान की पूंछ की तरह लंबी ही होती जा रही है। इस्लामाबाद के चीफ कमिश्रनर तारिक पीरजादा ने मुशर्रफ के घर को जेल में तब्दील कर दिया है।
बेचारे मुशर्रफ। गौरतलब है कि पाकिस्तान की आतंकवाद रोधी कोर्ट ने पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की न्यायिक हिरासत की अवधि 14 दिन बढ़ा दी है। कोर्ट 2007 में आपातकाल के दौरान न्यायाधीशों को हिरासत में लेने के मामले की सुनवाई कर रही है। कोर्ट के जज सैयद कौसर अब्बास जैदी ने हालांकि 18 मई को मुशर्रफ की व्यक्तिगत रूप से पेश नहीं होने की छूट देने के अनुरोध को स्वीकार कर लिया। अधिकारियों के अनुसार 69 वर्षीय मुशर्रफ को सुरक्षा कारणों से कोर्ट में पेश नहीं किया गया। बाद में जज ने मामले की सुनवाई एक जून तक स्थगित कर दी। मुशर्रफ को 2007 में पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो और 2006 में सैन्य अभियान के दौरान बलूचिस्तान के नेता अकबर बुगती की हत्या के मामले में भी गिरफ्तार किया गया है। हालांकि ऐंटि-करप्शन कोर्ट ने बेनजीर भुट्टो हत्या मामले में मुशर्रफ को जमानत दे दी है लेकिन पूर्व राष्ट्रपति को अब भी नजरबंदी में ही रहना होगा।
मुशर्रफ की उम्मीदें पाकिस्तान की सेना से थी कि वह उनके आड़े वक्त काम आएगी पर सेना ने भी उनका साथ छोड़ दिया है। पाकिस्तानी सेना के कमांडो दस्ते ने उनका साथ उसी वक्त छोड़ दिया था जब वे गिरफ्तारी से बचने के लिए भागकर अपने फार्म हाउस पहुंचे। भला ऐसे भगोड़े व कायर जनरल का सेना क्यों साथ देगी। नवाज शरीफ का यह तर्क कि परवेज मुशर्रफ अब एक रजिस्टर्ड राजनीतिक दल ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग  के मुखिया हैं, इसलिए सेना को अपने पूर्व जनरल के मामलों में नहीं पड़ना चाहिए। नवाज शरीफ का कहना बिल्सुल ठीक है। जनरल मुशर्रफ ने जैसा बोया, वैसा काट रहे हैं। जिस नवाज शरीफ ने उन्हें सेनाध्यक्ष बनाया  उन्हीं की पीठ में छूरा घोंपकर मुशर्रफ पाकिस्तान के शासक बन बैठे। यही नहीं जब 1999 में भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तुम आओ लाहौर से लेकर चमन बरदौश, हम आएं सुबहे बनारस की रौशनी लेकरकविता की पंक्तियां गुनगुनाते दोस्ती का हाथ बढ़ाये बस पे सवार ऐतिहासिक लाहौर यात्रा कर रहे थे, तब यही जनरल भारत के खिलाफ करगिल से घुसपैठ की योजना बना रहे थे। ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं को वेदवाक्य मानने वाले मुशर्रफ अपना बोया ही काट रहे हैं। यही विधि का विधान है। जो जैसा करता है उसे वैसा ही फल मिलता है। बहरहाल मुशर्रफ के भाग्य में क्या बदा है, यह तो वक्त ही बताएगा। वैसे इतना तय है कि अगर मुशर्रफ को इमरजेंसी लागू करने के लिए देशद्रोह का दोषी पाया गया, तो उन्हें उम्रकैद या फांसी की सजा भी हो सकती है। 

शुक्रवार, 24 मई 2013

जाते-जाते भी चिकोटी काट गये विनोद राय



                            बद्रीनाथ वर्मा

कैग के टीएन शेषन माने जाने वाले विनोद राय इसी 22 मई को रिटायर हो गये। पूर्वी उत्तर प्रदेश के सर्वाधिक पिछड़े जिले गाजीपुर के परसा के मूल निवासी विनोद राय जाते-जाते भी सरकार के मंत्रियों को चिकोटी काटना नहीं भूले। यह चिकोटी इतनी जबरदस्त थी कि सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी तिलमिला गये। दरअसल, अपने कार्यकाल के दौरान 2 जी और कोयला घोटालों का खुलासा कर यूपीए सरकार की नींव हिलाने वाले नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक कैग विनोद राय ने अपने रिटायरमेंट से एक दिन पहले दिए गये एक इंटरव्यू में सरकार के मंत्रियों पर जमकर ताना कसा । 2जी घोटाले में कोई नुकसान न होने की सरकार की दलील पर राय ने कहा कि उन्हें कपिल सिब्बल ऐंड कंपनी पर दया आती है। 2जी घोटाले पर कपिल सिब्बल की जीरो लॉस थिअरी पर उन्होंने कहा कि मैंने इससे पहले यह कभी नहीं कहा, लेकिन मुझे असल में उन पर तरस आता है। मैंने जेपीसी में कहा था कि इसमें भारी नुकसान हुआ है, जिससे इनकार नहीं किया जा सकता। नुकसान के आंकड़े पर बहस हो सकती है। मैंने कहा था कि आपकी अपनी एजेंसी सीबीआई ने भी कहा है कि इसमें 30 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। सीबीआई ने अपनी एफआईआर में भी यह बात कही है। मैंने उनसे पूछा था कि क्या आप 30 हजार करोड़ रुपये की बात को वापस लेने जा रहे हैं? अगर ऐसा है तो मैं भी 1,76, 000 करोड़ के आंकड़े को वापस लेने के लिए तैयार हूं। यही वजह है कि मुझे सिब्बल एंड कंपनी पर अफसोस होता है। क्या वाकई कोई यकीन करेगा कि नुकसान नहीं हुआ है?'
इसी के साथ 2जी की ऑडिट रिपोर्ट में 'अनुमानित घाटा' टर्म इस्तेमाल करने पर उठे सवालों पर जवाब देते हुए विनोद राय ने साफ कहा कि 'अनुमानित घाटा' या 'अनुमानित लाभ' टर्म का इस्तेमाल सरकार भी करती रही है। मैं आपको डायरेक्ट टैक्स कोड (डीटीसी) बिल की कॉपी दे सकता हूं। यह सरकार का बिल है, जिसमें इस टर्म का इस्तेमाल है। मैंने जेपीसी में भी यह बात रखी थी। खासकर मनीष तिवारी को बताया था कि आपके अपने बिल में 'अनुमानित इनकम' का कॉन्सेप्ट है। यह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से लिया गया है। दुनियाभर की ऑडिटिंग एजेंसियां इसका इस्तेमाल करती हैं। उन्होंने तब कहा था,'हां, लेकिन यह अनुमानित घाटे की बात नहीं करता है।' यह सही है कि घाटे पर टैक्स नहीं लगाया जा सकता। यह डायरेक्ट टैक्स कोड बिल है।' कैग की इन बातों से तिलमिलाए मनीष तिवारी ने विनोद राय को आमने सामने बहस की चुनौती दी। उन्होंने ट्वीट किया कि विनोद राय अपनी बात मीडिया में कहने के बजाय आमने सामने बैठ कर बहस करें।
पी. चिदंबरम पर सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ाने (विनोद राय की नियुक्ति करके) के आरोप पर विनोद राय ने हंसते हुए चुटकी ली। उन्होंने कहा, 'आप यह कैसे कह सकते हैं कि मैं चिदंबरम की पंसद था? महज इसलिए क्योंकि मैंने उनके साथ काम किया था? अगर सिंधुश्री खुल्लर की कैग के तौर पर नियुक्ति होती है तो क्या आप उन्हें मोंटेक सिंह अहलूवालिया की पंसद कहेंगे? इसी तरह एसके शर्मा की नियुक्ति पर क्या उन्हें एंटनी का आदमी का जाएगा। प्रक्रिया यह है कि जिसमें कैबिनेट सेक्रेटरी कुछ नाम रखते हैं, जिस पर बाद में पीएम और वित्त मंत्री विचार करते हैं। मेरा इंटरव्यू भी पीएम ने लिया था।' अपने पूर्व सहयोगी आरपी सिंह के दबाव में 'अनुमानित घाटे' का आकलन करने के आरोपों की टीस विनोद राय के दिल में अभी भी है। हालांकि उन्होंने आरपी सिंह को अच्छा साथी बताया। उन्होंने कहा, 'मैने आरपी सिंह के फेयरवेल में उनकी तारीफ की थी। 2जी का ऑडिट उन्होंने ही किया था। जेपीसी में जाने से पहले वह मुझसे मिले थे और मैंने उनसे कहा था, 'आरपी बस एक बात याद रखो, तथ्य की गलती मत करना। राय इधर-उधर हो सकती है, लेकिन फैक्ट्स पर टिके रहना।' लेकिन उन्होंने वहां कुछ गलतियां कीं। उदाहरण के तौर पर उन्होंने कहा कि हम घाटे का हिसाब नहीं लगाते, जबकि मैंने जेपीसी में उनकी एक रिपोर्ट रखी थी, जिसमें घाटे का हिसाब लगाया गया था। उन्होंने कहा कि वह आरपी सिंह के बयान से ठगा हुआ महसूस नहीं करते। आप ऐसा तब महसूस करते हैं, जब आप एक शख्स पर ही पूरा यकीन करते हैं। मैंने उनकी तारीफ की क्योंकि उन्होंने अच्छा ऑडिट किया था। मैंने उन्हें कभी अनमोल कलीग नहीं कहा।' अक्सर विनोद राय पर बीजेपी के हाथ में खेलने का आरोप कांग्रेस पार्टी की ओर से लगाया जाता रहा है। इस संबंध में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि पीएसी का चेयरमैन हमेशा विपक्षी पार्टी से होता है। संविधान में है कि कैग को पीएसी के साथ काम करना है। मीटिंग के बाद मुझे पीएसी चेयरमैन को ब्रीफ करना होता है। मेरे उनसे मुलाकातें होती हैं। यह घर पर भी होती हैं। सिर्फ मुरली मनोहर जोशी ही नहीं, वह कोई भी हो सकता है। यह मेरी ड्यूटी है कि चेयरमैन को ब्रीफ करूं। दरअसल जब लोग खुद को फंसा पाते हैं तो इस तरह के आरोप लगाते हैं। इसी के साथ राय ने कभी भी राजनीति में नहीं जाने की बात से साफ इनकार करते हुए विनोद राय ने कहा कि मैं आज साफ कर देना चाहता हूं कि मेरा जीवनभर राजनीति से लेना-देना नहीं रहा है। 65 साल बाद मैं क्यों बदलूंगा? मुझे इससे क्या फायदा होगा?  जब भी मुझसे राजनीति में जाने का सवाल किया जाता है मैं न हां कहता हूं न ना। यदि मैं कहूंगा कि मैं पॉलिटिक्स में नहीं जाऊंगा आप यकीन नहीं करेंगे। अगर मैं कहूंगा कि पॉलिटिक्स जॉइन करूंगा तो आप कहेंगे 'बोला था ना।' इसलिए मैं दोबारा स्पष्ट कर देता हूं कि मैं कभी भी राजनीति में नहीं जाऊंगा। इन सब बातों से इतर भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) रहे विनोद राय का मानना है कि सरकारी धन प्राप्त करने वाली सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) की सभी परियोजनाओं, पंचायती राज संस्थाओं तथा समितियों के बही खातों की लेखापरीक्षा का काम इस शीर्ष राष्ट्रीय अंकेक्षण संस्था के अधिकार क्षेत्र में लाया जाना चाहिए। अपना कार्यकाल पूरा कर सेवानिवृत्त होने से एक दिन पहले उन्होंने कहा कि मैंने अपनी जिम्मेदारी पूरी निष्ठा के साथ निभाई। हालांकि इस बीच कई बार आलोचनाएं भी हुईं। बावजूद इसके कभी भी मन में यह ख्याल नहीं आया कि अपने पद से इस्तीफा दे दूं। मैं अपने कार्यकाल में किये गये कार्यों से पूरी तरह संतुष्ट हूं। विनोद राय ने कैग के ऑडिट अधिकार को और व्यापक बनाने पर जोर देते हुए कहा कि सरकारी धन प्राप्त करने वाली सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) की सभी परियोजनाओं, पंचायती राज संस्थाओं तथा समितियों के बही खातों की लेखापरीक्षा का काम इस शीर्ष राष्ट्रीय अंकेक्षण संस्था के अधिकार क्षेत्र में लाया जाना चाहिए।
गौरतलब है कि कैग के रूप में एक अति घटना प्रधान संवैधानिक दायित्व पूरा कर अपनी पारी समाप्त करने वाले राय के कार्यकाल में खास कर 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन और 'कोलगेट' पर कैग की रिपोर्ट को लेकर संसद से सड़क तक अभूतपूर्व हंगामा हुआ और सरकारी हलकों से भी कैग को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। इन रिपोर्ट में उन्होंने ऑडिट में पहली बार 'संभाव्य हानि' की अवधारणा को शामिल किया। राय ने कैग की रिपोर्ट  को सही बताया और कहा कि विभिन्न दिशाओं से उनकी भले ही आलोचना हुई हो पर हंगामा भरे उन दिनों में कभी भी उनके मन में इस्तीफा देने का विचार नहीं आया। राय साढ़े पांच साल इस पद पर रहे।
राय ने भी कैग के चयन में कॉलेजियम जैसी व्यवस्था का पक्ष लिया है पर जहां तक कैग को निर्वाचन आयोग की तरह बहु सदस्यीय बनाने का सुझाव है, वह ऐसे बदलाव के अधिक प्रभावी होने या न होने के बारे में ज्यादा सुनिश्चित नहीं है। सरकार ने आलोचना की थी कि राय के कार्यकाल में कैग ने अपनी सीमाएं तोड़ कर नीति निर्माण पर सवाल खड़े किए। इसके जवाब में राय कहते हैं कि स्वाभाविक रूप से कैग का काम ही है कि वह सरकार के कामकाज की नुक्ताचीनी करे। कैग सरकार की नीतियों का गुणगान नहीं कर सकता।'

गुरुवार, 23 मई 2013

लेफ्ट राइट, जय हिंद और ब्रेक के बाद वाइफ स्वैपिंग


लेफ्ट राइट, जय हिंद और ब्रेक के बाद वाइफ स्वैपिंग
बद्रीनाथ वर्मा
सेना जो सर्दी, गर्मी, बरसात 24 घंटे अपने घर परिवार से दूर रहकर देश की रखवाली करती है। जब देश सोता है तो खुद जाग कर भारत मां की तरफ कोई नजर टेढ़ी ना कर सके इसलिए अपनी संगीनों को धार देते रहते हैं।उनकी हरी वर्दी पर लगी लाल रिवन की फीतियां हमारी मां और बहनों को भरोसा देतीं हैं कि ये फीतियां राखी की तरह तुम्हारी लाज की रक्षा करेंगी। लेकिन अब हर महीने सेना के अंदर हो रही बीबियों के अदला बदली के खुलासे ने देश को सन्न कर दिया है। देश चिंतित है। रक्षा मंत्री बयान दे रहे हैं। सेना की साख पर पूरी तौर से कालिख पुत रही है। जो मामले प्रकाश में आ रहे हैं उससे पता चलता है कि सेना में सड़ांध ने अपनी पैठ बना ली है। वाइफ स्वैपिंग जैसे घिनौने कृत्य कर रहे ये सैनिक अपनी खुद की पत्नियों की लाज सरे राह नीलाम कर रहे हैं।
नौसेना में कार्यरत एक अफसर की बीवी ने अपने पति पर आरोप लगाया है कि उसका पति चंद फायदों के लिए उसे अपने दोस्तों व सीनियर अफसरों के साथ हम बिस्तर होने को मजबूर करता था। एमबीए पास इस महिला ने रक्षामंत्री से मिलकर अपने पति के खिलाफ कार्रवाई की गुहार लगाई है। रक्षामंत्री ने कार्रवाई का भरोसा भी दिया है। हो सकता है उस नराधम पति के खिलाफ कार्रवाई हो भी लेकिन क्या इतने भर से मामला खत्म हो जाएगा। क्या औरत सिर्फ एक देह है, या कोई वस्तु है जिसके बदले कुछ भी हासिल किया जा सकता है। आखिर हम किस दिशा में जा रहे हैं। 
अभी ज्यादा वक्त नहीं गुजरा है जब एक महिला ने नौसेना में कार्यरत अपने पति पर आरोप लगाया था कि वह अपने प्रमोशन के लिए उसे अपने अफसरों के साथ सेक्स करने को मजबूर करता था। पीडि़त महिला ने नौसेना अध्यक्ष को भी पत्र लिखकर शिकायत दर्ज कराई थी। हालांकि नौसेना ने आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए इसे पारिवारिक मामला कहकर अपने अफसरों को बचाने की नाकाम कोशिश की थी। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता रॉय फ्रांसिस ने भी नौसेना के सुर में सुर मिलाते हुए कहा था कि मामला पारिवारिक विवाद का है। जिन अधिकारियों ने विवाद सुलझाने की कोशिश की महिला ने उन्हीं लोगों को आरोपी बना दिया।
 बहरहाल नए मामले में नौसेना के ही एक अन्य अधिकारी की पत्नी ने अपने पति पर अपने दोस्तों के साथ सेक्स संबंध बनाने के लिए जोर जबरदस्ती करने का आरोप लगाकर एक बार फिर नौसेना को शर्मसार कर दिया है। महिला के अनुसार उसका पति ऐसा नहीं करने पर उसकी नंगी तस्वीरें सोशल वेबसाइट पर डाल देने की धमकी भी देता था।
बहरहाल रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने मामले को बेहद गंभीरता से लेते हुए कहा है कि सेक्स स्कैंडल के दोषियों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा।
एमबीए तक पढ़ी पीड़िता की कारवार स्थित नेवल शिप रिपेयर यार्ड में कार्यरत लेफ्टिनेंट कमांडर रैंक के अफसर के साथ पिछले साल फरवरी में शादी हुई थी. शादी के बाद से ही महिला का पति उसे शराब पीने के लिये बाध्य करने लगा। इसके बाद उसने अपने अफसरों के साथ सेक्स करने के लिये उसे बाध्य किया।
महिला ने जब इसका विरोध किया तो पति ने उसे धमकी दी कि वह उसकी तस्वीरें और वीडियो इंटरनेट पर डाल कर उसे बदनाम कर देगा। इसके बाद से पीड़ित महिला चुपचाप रहने लगी, लेकिन जब पति का अत्याचार बढ़ा तो उसने विरोध किया और अंततः तंग आकर महिला अपने पिता के घर आ गई। फिलहाल वह अपने मायके में ही रह रही है।
नेवल शिप रिपेयर यार्ड कारवार कर्नाटक में तैनात महिला का पति नेवी विमानवाहक पोत गोर्शकोव के महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट के लिए काम कर रहा है जो रूस के शिपयार्ड में तैयार हो रहा है। रक्षा मंत्री को 30 अप्रैल को भेजे गए शिकायती पत्र में उसने अपने पति के खिलाफ जांच और कार्रवाई की मांग की थी।
दुखद तथ्य यह है कि हमारी सेनाओं में इस तरह के सेक्स स्कैंडल का यह कोई पहला या दूसरा मामला नहीं है। पिछले कुछ सालों में सामने आए सेक्स स्कैंडलों ने देश की तीनों सेनाओं थल सेना, वायु सेना और नौसेना की छवि दागदार की है। वैसे सिर्फ सेना में ही सेक्स स्कैंडल के मामले सामने नहीं आए हैं बल्कि सेना की तरफ से चलाए जाने वाले प्रतिष्ठित आर्मी पब्लिक स्कूलों में भी सेक्स स्कैंडलों ने सेना को शर्मसार किया है।
 गौरतलब है कि कोच्चि में तैनात नेवी अफसर के खिलाफ उसकी पत्नी ने अभी पिछले महीने ही जबरन वाइफ स्वैपिंग के लिए मजबूर करने का सनसनीखेज आरोप लगाते हुए एफआईआर तक दर्ज करवा दी थी। पत्नी का आरोप था कि उसका पति अपने सीनियर अफसरों के साथ उसे सोने को विवश करता था। मूल रूप से ओडिशा की रहने वाली महिला आईआईटी ग्रेजुएट है । झारखंड के रहने वाले नेवी अफसर रविकिरण से 9 मार्च 2011 को मुंबई में शादी हुई थी। इस साल जनवरी में रवि की पोस्टिंग कोच्चि में हुई।
ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या हम वास्तव में सभ्य कहलाने के काबिल हैं। यह कार्य तो कोई पशु भी नहीं करता। वह भी अपनी मादा को दूसरे के सामने नहीं परोसता। भले ही वह अफसर तरक्की पाने के लिए ऐसा कर रहा था लेकिन क्या तरक्की के लिए कुछ भी किया जा सकता है। अपनी पत्नी जिसे अग्नि के सामने साक्षी मानकर सात फेरों व सात जन्मों के बंधन को निभाने के वादे के साथ अंगीकार किया उसे सीनियर अफसरों के साथ सोने के लिए भेजा जा सकता है?  केरल के शहर कोच्चि में घटी यह घटना वाकई हमें सोचने के लिए मजबूर करती है कि आखिरकार हम जा कहां रहे हैं। क्या हमने यही प्रगति की है। कोच्चि के हार्बर पुलिस स्टेशन में 4 अप्रैल को दर्ज कराई गई शिकायत में महिला ने आरोप लगाया कि पिछले 2 महीने से उसके पति रवि किरण ने प्रमोशन और कुछ अन्य फायदों के लिए उसे सीनियर अफसरों के साथ सोने के लिए मजबूर किया। महिला का कहना था कि जब मैंने इन सबका विरोध किया तो मरे पति ने जमकर पिटाई की और घंटों कमरे में बंद रखा। महिला की शिकायत पर पुलिस ने उसके पति सहित नौसेना के 6 अफसरों के खिलाफ मामला दर्ज किया । 
महिला के ही शब्दों में उसके पति के अफसर उसे खिलौना समझते थे। कोई मेरे बालों को हाथ लगाता तो कोई मुझे छूना चाहता था। कोई मेरे कपड़े उतारना चाहता था। मैं चिल्‍लाने और रोने के सिवाय और कर भी क्या सकती थी क्योंकि यह सब कुछ उसके पति की रजामंदी से होता था। नौसेना की दक्षिणी कमान में बतौर लेफ्टिनेंट तैनात इस अफसर की बीवी ने जिन लोगों पर यौन उत्‍पीड़न के आरोप लगाए हैं,  उनमें एक डाइविंग स्कूल आईएनएस वैंडुरूथी के प्रमुख कमोडोर, एक कैप्टन और उसके पति समेत चार लेफ्टिनेंट हैं।  हालांकि नौसेना ने इन आरोपों को पूरी तरह निराधार बताया। सेना की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया कि जिन ऑफिसरों पर आरोप लगाए गए हैं उन्होंने अपनी-अपनी पत्नियों के साथ मिलकर इस दंपति के निजी जीवन के मतभेद सुलझाने की कोशिश की थी, जो नाकाम रही। दुर्भाग्यवश महिला ने मदद करने वालों पर ही आरोप लगा दिए। नौसैनिक अधिकारियों ने ये भी कहा कि ये सब पति और पत्नी के बीच झगड़े का नतीजा है। इसके लिए आरोप लगाने वाली महिला और उसके पति को काउंसलिंग के लिए भी भेजा गया था। महिला ने एक टीवी चैनल से बातचीत में उसे जान से मार देने की धमकी का भी आरोप लगाया। उसके अनुसार 'मेरे पति और उनके साथी यह केस वापस लेने के लिए मेरे ऊपर दबाव डाल रहे थे। उन्होंने धमकी दी थी कि मैं उनके कहे मुताबिक कदम नहीं उठाती हूं तो वो मेरी हत्या कर समंदर में फेंक देंगे।' महिला के मुताबिक नौसेना के कुछ अधिकारियों ने उसके पति के सामने ही उसका यौन उत्पीड़न किया।
 बाक्स...........
आरोपी अफसर
 1. बी. आनंद - कमोडोर , 2. अशोक आंखे - कैप्टन ,3. अजय कृष्णन - लेफ्टिनेंट,4. दीपक कुमार - लेफ्टिनेंट,5. ईश्वर चंद्रा - लेफ्टिनेंट,6. रवि किरण - लेफ्टिनेंट
.और भी हैं मामले
अप्रैल, 2012 में सेना में तब हड़कंप मच गया था जब देहरादून स्थित सैन्य अस्पताल में एक महिला अधिकारी ने सेना के ही एक अन्य अधिकारी पर उसके साथ शारीरिक शोषण करने और धोखाधडी का आरोप लगा दिया था। थाने में दर्ज शिकायत में तलाकशुदा महिला सैन्य अफसर ने एक अन्य अधिकारी पर आरोप लगाया कि उसने शादी का आश्वासन देकर उसका शारीरिक शोषण किया और बाद में शादी करने से इनकार कर दिया। महिला सैन्य अधिकारी ने यह आरोप भी लगाया था कि उसने आरोपी सैन्य अफसर के साथ मंदिर में शादी भी की थी और जब शादी को रजिस्ट्री करवाने के लिए कहा तो सैन्य अफसर ने इनकार कर दिया, क्योंकि वह पहले से ही शादीशुदा था। 

सेक्स स्कैंडल में गई नौकरी 
 2010 में सेना के इंजीनियर जनरल इन चीफ ए के नंदा पर विदेश यात्रा के दौरान अपने तकनीकी सचिव की पत्नी के साथ छेड़छाड़ करने का आरोप लगा था। इजराइल दौरे पर नंदा और उनके तकनीकी सचिव का परिवार गया था। इस घटना के सामने आने के बाद जनरल वी के सिंह ने नंदा से इस्तीफा देने को कहा था। नंदा सेना के ऐसे पहले लेफ्टिनेंट जनरल रहे जिन्हें सेक्स स्कैंडल के चलते अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी।  
अंजलि हुई थी यौन शोषण का शिकार !
 सितंबर, 2011 में देश की पहली महिला फ्लाइंग अफसर अंजलि गुप्ता की खुदकुशी ने एयरफोर्स में महिला अफसरों की सुरक्षा और उनके सम्मान के सवाल को देश के सामने खड़ा किया था। अंजलि ने अपने वरिष्ठ अधिकारीयों पर यौन शोषण का आरोप लगाया। एयरफोर्स ने अंजलि के आरोपों को बेबुनियाद पाया। उलटे अंजलि पर दर्जन भर आरोप लगाये गए। अंजलि ने इन आरोपों का खंडन भी किया। लेकिन देश की पहली महिला फ्लाइंग अफसर अंजलि का 8 दिसंबर, 2008 को कोर्ट मार्शल हुआ और उसे बर्खास्त कर दिया गया।
अंजलि अपने सहयोगी ग्रुप कैप्टेन 52 वर्षीय अमित गुप्ता के साथ रहने लगीं। अमित पहले से शादीशुदा था फिर भी वह यही कहता रहा कि वह अपनी पत्नी से तलाक ले लेगा। लेकिन अंजलि ने उस दिन के इंतजार में ही मौत को गले लगा लिया। 
 हालांकि, अंजलि की मौत के कुछ दिनों बाद उसके परिवार परिवार वालों ने बयान दिया कि अमित गुप्ता के ही कहने पर अंजलि ने अपने वरिष्ठ अफसरों पर यौन उत्पीड़न का झूठा आरोप लगाया था। 
आर्मी स्कूल की प्रिंसिपल ने कर्नल पर लगाए थे यौन शोषण के आरोप 
 उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में मौजूद जनरल बीसी जोशी आर्मी पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल पद पर रहीं विम्मी जोशी ने सेना के कर्नल और स्कूल चलाने वाली समिति के उपाध्यक्ष कर्नल हितेंद्र बहादुर पर यौन शोषण के आरोप लगाए थे। विम्मी जोशी का कहना था कि कर्नल बहादुर ने उन्हें चिट्ठी लिखी थी जिसमें उन्होंने बेहद आपत्तिजनक अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया। चिट्ठी में विम्मी जोशी की बुद्धिमत्ता, उनकी समझदारी से लेकर उनके फैशनबेल और छरहरे शरीर तक की तारीफ की थी। चिट्ठी के अंत में कर्नल बहादुर ने लिखा था, लॉट्स ऑफ लव (ढेर सारा प्यार)। विम्मी जोशी को कर्नल बहादुर की चिट्ठी नागवार गुजरी और उन्होंने इसकी शिकायत स्कूल प्रबंधन से कर दी। लेकिन स्कूल मैनेजमेंट ने उलटे विम्मी जोशी को ही बर्खास्त कर दिया।
बाक्स....
कांगो सेक्स स्कैंडल 
 कांगो में सेक्स स्कैंडल में भारतीय सेना के एक मेजर सहित चार सैनिकों को कोर्ट ऑफ इंक्वायरी में 2012 में दोषी पाया गया था। संयुक्त राष्ट्र ने भारत सरकार को सूचना दी थी कि 6 सिख रेजीमेंट के सैनिक 2007-08 में कांगो में पदस्थापना के दौरान महिलाओं के यौन शोषण में शामिल थे। इस मामले में मई 2011 में जांच के आदेश दिए गए थे।
आस्ट्रेलियन नेवी में सेक्स आम
ऑस्ट्रेलिया की नौसेना में सन 2009 में सामने आए सेक्स स्केंडल मामले में एक सनसनीखेज खुलासा हुआ। कोर्ट में सुनवाई के दौरान इस बहुचर्चित मामले में आरोपी बनाए गए आस्ट्रेलियाई नौसैनिक कीथ एरिक कालवर्ट ने यह खुलासा कर हड़कंप मचा दिया था कि देश की नौसेना में सेक्स करना और इसे फिल्माना कोई नई बात नहीं है। ऐसा पहले भी होता आया है। ऑस्ट्रेलिया की रक्षा बल अकादमी के दो कैडेटों पर गुप्त रुप से एक महिला कैडेट को सेक्स करते हुए फिल्माने और फिर उसको इंटरनेट पर पोस्ट करने के आरोप लगे थे।