शुक्रवार, 9 जनवरी 2015

कइयों को टीस दे गया 2014


बद्रीनाथ वर्मा
साल 2014 यूं तो पूरी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ही नाम रहा क्योंकि जिस तेजी से गुजरात से निकलकर वे विश्व फलक पर छा गये उससे उनके घोर आलोचक भी हैरान रह गये। किसी को भी यह गुमान नहीं था कि नरेंद्र मोदी नाम का यह तूफान देखते ही देखते सुनामी में बदल जाएगा जिसमें बड़े बड़े शुरवीरों की वर्षों की बनाई जमीन तबाह हो जाएगी। मोदी नाम की यह सुनामी लोकसभा चुनाव के दौरान इतनी ताकतवर साबित हुई कि कांग्रेस, सपा से लेकर जदयू और बसपा तक सब डूब गये। 130 साल पुरानी कांग्रेस को अब तक की सबसे बड़ी हार मिली। लोकसभा में उसके सदस्यों की संख्या महज 44 तक सिमट कर रह गई। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में तो कांग्रेस पार्टी सोनिया व राहुल से आगे ही नहीं बढ़ सकी। सोनिया व राहुल ने अपनी परंपरागत सीट जीत तो ली लेकिन यह जीत भी आसान नहीं रही। यही हाल अन्य दलों का भी रहा। प्रधानमंत्री बनने की आकांक्षा पाले मुस्लिम वोटों की चाहत में भाजपा से 17 साल पुराना अपना नाता तोड़ बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जिस थोथी धर्मनिरपेक्षता का नारा बुलंद किया था उसकी भी हवा निकल गई। बिहार की कुल 40 सीटों में से बमुश्किल चार सीटें ही उनके खाते में आई। यही नहीं जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव को भी मधेपुरा से मुंह की खानी पड़ी। यही दुर्गति प्रधानमंत्री पद के दो अन्य दावेदारों सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव व बसपा मुखिया मायावती का भी हुआ। विधानसभा चुनाव में तीन चौथाई बहुमत से यूपी की सत्ता पर काबिज होने वाली समाजवादी पार्टी लोकसभा चुनाव में परिवार वादी पार्टी बन कर रह गई। इस चुनाव में सपा मुलायम सिंह यादव, उनकी बहू यानी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव व भतीजे धर्मेंन्द्र यादव से आगे बढ़ नहीं पाई। सबसे बुरी गत हुई बसपा मुखिया मायावती की। उनकी पार्टी का तो लोकसभा में खाता ही नहीं खुल सका। वैसे साल 2014 में एक और व्यक्ति जिसने मीडिया की जबर्दस्त सुर्खियां बटोरी वह थे आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल। आम आदमी की ताकत के बल पर दिल्ली के मुख्यमंत्री बन जाने वाले अरविंद केजरीवाल ने हड़बड़ी में आकर अपनी भद पिटा ली। लोकपाल के नाम पर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे को आम जनता ने पसंद नहीं किया और उनके प्रधानमंत्री बनने की चाहत पर पानी फेर दिया। दरअसल, दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने के बाद उन्हें लगा कि जनसमर्थन उनके साथ है और संभवत: वे देश के अगले प्रधानमंत्री बन सकते हैं। इसी गलतफहमी में लोकसभा चुनाव में सैकड़ा पार करने की चाहत लिए आनन फानन में नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी में ताल ठोंकने पहुंच गये। लेकिन खुद को महाबली जान चुनावी अखाड़े में कूदे अरविंद केजरीवाल पिलपिले ही साबित हुए। वाराणसी में वे खुद तो हारे ही उनके अन्य कई  स्वनाम धन्य उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। हालांकि थोड़ी सी पंजाब में उनकी लाज बच गई। वहां से उनकी पार्टी के चार उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल रहे। बहरहाल, लोकसभा चुनाव से शुरू हुआ भाजपा का विजय रथ साल की समाप्ति तक लगातार एक के बाद दूसरे राज्यों तक अपनी विजय पताका फहराता रहा। मोदी नाम का ब्रांड दिनों दिन लोकप्रिय होता गया। लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा, महाराष्ट्र में जीत का परचम लहराने के बाद झारखंड व ज मू कश्मीर में भी मोदी नाम का सिक्का खूब चला। हरियाणा में जहां अकेले भाजपा ने अपने दम पर सरकार बनाई वहीं महाराष्ट्र में अकेले दम पर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। बिन मांगे मिले एनसीपी के समर्थन ने आखिरकार पूर्व सहयोगी शिवसेना को फडणवीस सरकार को समर्थन देने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद हुए चुनाव में झारखंड में भाजपा के रघुबर दास के नेतृत्व में पहली बार पूर्ण बहुमत की स्थाई सरकार बनी तो ज मू कश्मीर में भी पहली बार भाजपा दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। इस जीत का महत्व इसलिए और भी बढ़ जाता है कि बगैर उसकी सहायता के घाटी में स्थाई सरकार बन पाना नामुमकिन है। हालांकि घाटी में भाजपा का सबसे बड़ा मुस्लिम चेहरा रहीं हिना भट्ट की जमानत तक जब्त हो गई। बहरहाल, बात हो रही है 2014 के खिलाड़ियों की तो भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का जिक्र न करना नाइंसाफी होगी। मोदी के बाद अगर यह साल किसी के नाम रहा तो वह हैं अमित शाह। राजनीतिक पंडित भी अमित शाह की रणनीति का लोहा मानने को मजबूर हो गये। अमित शाह की रणनीति का ही कमाल था यूपी में भाजपा की महाविजय। इसी के साथ अपने अनुलोम विलोम से दुनिया भर में छा जाने वाले बाबा रामदेव  ने भी खुद को चाणक्य के रूप में पेश कर पाने में सफल रहे। मोदी को प्रधानमंत्री बनवाने तथा कांग्रेस के कुशासन से देश को मुक्त कराने का बीड़ा लेकर उन्होंने पूरे देश की लगातार यात्रा की। उनकी मेहनत रंग लाई। रामलीला मैदान में अनशन के दौरान हुए अपने अपमान का बदला उन्होंने कांग्रेस को गर्त में धकेलने के साथ ले लिया। कांग्रेस के खिलाफ देश में माहौल बनाने में उनकी प्रमुख भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। बहरहाल, अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार मोदी की महाविजय व कांग्रेस के पतन के बाद ही वे हरिद्वार स्थित अपने पतंजलि योगपीठ पहुंचे। साल 2014 ने जिस एक और महाबली को गहरा घाव दिया वह हैं लालू प्रसाद यादव। बिहार में कभी एकछत्र शासन कर चुके लालू प्रसाद को उनके ही एक सिपहसालार ने जबर्दस्त पटखनी दी। लालू के हनुमान कहे जाने वाले रामकृपाल यादव के परिवारवाद के खिलाफ उनसे बगावत कर पाटलिपुत्र सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और यादवों का एकमात्र नेता होने का दंभ पाले लालू प्रसाद की बेटी मीसा भारती को धूल चटा दिया। यही हाल बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री व लालू की पत्नी राबड़ी देवी का भी हुआ। वह भी सारण सीट से चुनाव हार गई। कुल मिलाकर देखा जाए तो इस साल ने कईयों को ऐसा घाव दिया जिसकी टीस हमेशा बनी रहेगी। ( समाचार संपादक, अर्ली मॉर्निंग, दिल्ली, मो. 9718389836)