शनिवार, 26 मई 2012

किस्मत के धनी


किस्मत के धनी

बड़ी पुरानी कहावत है कि देने वाला जब देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है। कुछ ऐसा ही हुआ है राज्यसभा में भाजपा संसदीय दल के उपनेता रहे एस एस अहलुवालिया के साथ। इसे संयोग कह लीजिए, उनकी किस्मत कह लीजिए या फिर जो चाहे नाम दे लीजिए। लेकिन यह किसी चमत्कार से कम नहीं है। झारखंड में राज्यसभा के चुनाव रद्द क्या हुए उनकी तो मानो लॉटरी ही निकल आई। झारखंड से ही राज्यसभा के लिए चुने गये भारतीय जनता पाटीज़् के इस तेज तराज़्र सांसद का कायज़्काल गत दो अप्रैल को खत्म होने वाला था। लेकिन माचज़् में हुए राज्यसभा चुनाव में पाटीज़् ने उन्हें अपना उम्मीदवार नहीं बनाया। इससे बेचारे मन मसोस कर रह गये थे। परंतु चमत्कार को नमस्कार कहना ही होगा। पाटीज़् ने उनका पत्ता काटने की कोशिश की जरूर लेकिन उनकी किस्मत को यह मंजूर नहीं था। जिस भारतीय जनता पाटीज़् ने उन्हें दोबारा राज्यसभा में भेजने के योग्य नहीं समझा वही पाटीज़् महीना बीतते न बीतते उन्हें राज्यसभा चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाने के लिए उनके चौखट पर पहुंच गयी। खैर किस्मत ने जोर मारा और वे एक बार फिर झारखंड से ही राज्यसभा उम्मीदवार घोषित हो गये।
दरअसल हुआ यूं कि गत 30 माचज़् को झारखंड से दो सीटों के लिए हुए चुनाव में पैसे के लेनदेन का मामला सामने आने के बाद चुनाव आयोग की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने चुनाव रद्द कर दिया। बस क्या था। जैसे ही नयी तिथि घोषित हुई वैसे ही अहलुवालिया की किस्मत भी चमक गई। गत बार अंशुमान मिश्रा के चक्कर में अपनी छीछालेदर करा चुकी पाटीज़् इस बार ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहती थी जिससे उसका दामन और दागदार हो। इसी थुक्का फजीहत से बचने के लिए जैसे ही दोबारा राज्यसभा चुनाव की तिथि घोषित हुई, उसने एस एस अहलुवालिया को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। यह बिल्कुल बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने जैसी स्थिति है। स्वयं अहलुवालिया ने भी कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिस भारतीय जनता पाटीज़् ने पिछली बार उन्हें राज्यसभा के लायक न समझते हुए उनका टिकट काट दिया था वही उनकी किस्मत के आगे नतमस्तक हो जायेगी। यहां तक कि उन्हें राज्यसभा में भेजने के लिए राज्य में अपने सहयोगी दल झारखंड मुक्ति मोचाज़् से लोहा लेने में भी नहीं झिझकेगी। राज्यसभा की जिन दो सीटों के लिए चुनाव हुए हैं वे एस एस अहुलवालिया व माबेल रिबेलो के रिटायर होने के कारण खाली हुए थे। पिछली बार यहां से भाजपा ने अपना अधिकृत उम्मीदवार नहीं उतारा था। पाटीज़् की ओर से शुरुआती दौर में निदज़्लीय उम्मीदवार अंशुमान मिश्रा को समथज़्न देने की घोषणा की गयी थी। मगर इसे लेकर पाटीज़् में बवाल मचना शुरू हो गया। वरिष्ठ भाजपा नेता यशवंत सिन्हा ने भी इस निणज़्य की खुलेआम आलोचना की। मिश्रा को समथज़्न के मुद्दे पर आला नेताओं के चौतरफा विरोध से बचाव की मुद्रा में आयी भाजपा ने न केवल निदज़्लीय उम्मीदवार अंशुमान मिश्रा से पल्ला झाड़ लिया बल्कि अपने विधायकों को किसी को भी वोट न देने की हिदायत दे दी। हालांकि वह अपने इस नये स्टैंड पर भी ज्यादा देर तक कायम नहीं रह सकी इसे विधायकों का दबाव कहें या कुछ और, जो भी हो उसने ऐन चुनाव के एक दिन पहले पलटी मारते हुए अपने विधायकों को चुनाव में भाग लेने की छूट दे दी। उसकी इस घोषणा ने सबको अचंभित कर दिया। साथ ही अचानक लिए गये इस निणज़्य ने राज्य की राजनीति में एक जबदज़्श्त भूचाल जरूर ला दिया। पहले निदज़्लीय उम्मीदवार अंशुमान मिश्रा को समथज़्न उसके बाद चुनाव में भाग न लेने की घोषणा और फिर यू टनज़् लेते हुए वोटिंग में भाग लेने के फैसले से राज्य का राजनीतिक पारा यकायक चढ़ गया। इस राजनीतिक कलाबाजी ने भाजपा की नीयत पर कई सवाल खड़े कर दिये। राज्य के राजनीतिक गलियारे में चटखारे लेकर पूछा जाने लगा कि आखिर भाजपा के सामने ऐसी क्या मजबूरी आन पड़ी जिसकी वजह से उसे अपना स्टैंड बदलते हुए चुनाव में भाग लेने की घोषणा करनी पड़ी। विपक्षी दलों की ओर से आरोप लगाया गया कि इसके पीछे हासज़्ट्रेडिंग है। विपक्ष के आरोप को बल इससे भी मिला कि चुनाव के दिन ही अथाज़्त 30 माचज़् की सुबह आयकर विभाग ने एक इनोवा गाड़ी से 2.15 करोड़ रुपये नकद बरामद किये। बरामद रुपये निदज़्लीय उम्मीदवार आर के अग्रवाल के बताये गये। इतनी बड़ी रकम की बरामदगी और वह भी ठीक मतदान के दिन ने तो जैसे हासज़्ट्रेडिंग की चचाज़् को पर लगा दिये। झारखंड की राजधानी रांची से लेकर नई दिल्ली तक का राजनीतिक तापमान अपने उच्च स्तर पर पहुंच गया। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री व झारखंड विकास मोचाज़् सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी तथा भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिनेशानंद गोस्वामी के बीच वाक् युद्ध शुरू हो गया। मरांडी ने आरोप लगाया कि गोस्वामी और आर के अग्रवाल के बीच मधुर संबंध हैं। इस पर पलटवार करते हुए गोस्वामी ने भी मरांडी पर आरोप मढ़ा। दोनों तरफ से एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगते रहे। दूसरी तरफ  राज्य में चचाज़् का बाजार गमज़् रहा कि छ: विधायकों को कोलकाता में पैसे दिये गये हैं। अग्रवाल की ओर से अपने पक्ष में वोट देने के बदले प्रत्येक विधायक को 1.50 करोड़ रुपये तथा एक गाड़ी देने की चचाज़् भी सुखिज़्यों में रही। बहरहाल चुनाव में पैसे के लेनदेन की आशंका के बीच चुनाव आयोग की सलाह पर राष्ट्रपति ने मतों की गिनती होने से पहले ही चुनाव को रद्द कर दिया ।
वैसे राज्यसभा चुनाव में पैसे के लेनदेन का मामला झारखंड के लिए कोई नया नहीं है। इसके पूवज़् भी इस तरह के मामले सामने आ चुके हैं। साल 2010 के राज्यसभा चुनाव में पैसों के लेन-देन का स्टिंग ऑपरेशन झारखंड अगेंस्ट कॉरप्शन के अध्यक्ष दुगाज़् उरांव ने किया था। स्टिंग में छ: विधायकों को पैसा लेते हुए दिखाया गया था। इसमें कांगे्रस के विधायक सावना लकड़ा, राजेश रंजन एवं योगेंद्र बैठा को वोट देने की एवज में एक करोड़ रुपये मांगते हुए कैद किया गया था। इसी स्टिंग में झामुमो के विधायक टेकलाल महतो (अब मृत) और साइमन मरांडी को 2 करोड़ रुपये तथा भाजपा विधायक उमाशंकर अकेला द्वारा 50 लाख रुपये और एक गाड़ी की मांग की गई थी। इस मामले की जांच चल रही है।
बहरहाल झारखंड की खाली सीटों को भरने के लिए चुनाव आयोग ने नई तिथि घोषित कर दी। इसी के साथ एस एस अहलुवालिया की किस्मत भी चमक गई। क्या यह संयोगमात्र है या उनकी तगड़ी किस्मत का करिश्मा। वैसे देखा जाये तो यह अहलुवालिया की किस्मत का ही करिश्मा कहा जायेगा क्योंकि पाटीज़् ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो झारखंड का चुनाव ही रद्द हो गया। अब ऐसे चमत्कार को तो नमस्कार कहना ही होगा।
                                                                                                बद्रीनाथ वर्मा