शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

पहाड़ के नए नायक


राष्ट्रीय साप्ताहिक इतवार में प्रकाशित

इंट्रो- पश्चिम बंगाल के सुदूर उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र दार्जिलिंग से अलग गोरखालैंड की मांग करने वाले विमल गुरुंग बने जीटीए अध्यक्ष। पहाड़ी लोगों में जगी आस

हाईलाईटर- गुरुंग की पार्टी गोजमुमो ने जीटीए के चुनाव में सभी सीटों पर जीत दर्ज की

जिनकी एक हुंकार से पहाड़ जल उठता था। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ हुए समझौते के बाद पहाड़ पर खुशहाली लाने के वायदे के साथ संवैधानिक तौर पर जीटीए की बागडोर संभालने वाले विमल गुरुंग पहाड़ के नए नायक बन गए हैं। गोरखालैंड के अलग राज्य न बनने की दशा में खुद को गोली मार लेने का दावा करने वाले गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष विमल गुरुंग पर पहाड़ की जनता अपार विश्वास करती है। इसका नजारा उनके शपथ ग्रहण के दौरान दिखा। अपने इस नायक के नए अवतार के स्वागत के लिए पहाड़ की जनता पूरे जोश-खरोश के साथ उपस्थित थी। जीटीए प्रमुख का पदभार संभालने वाले गुरुंग भी अपनी नई भूमिका को लेकर खासे उत्साहित हैं।
गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन(जीटीए) के लिए पिछले महीने हुए चुनाव में सभी 45 सीटों पर गोजमुमो प्रत्याशियों की जीत हुई थी। बहरहाल, राज्यपाल एमके नारायणन ने विमल गुरुंग को जीटीए के मुख्य कार्यपालक पद की शपथ दिलाई। इस अवसर पर केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने विकास कार्यों के लिए अगले तीन वर्षों तक प्रत्येक वर्ष जीटीए को 200 करोड़ रुपये देने का वादा किया।  मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी दार्जिलिंग में एक यूनिवर्सिटी खोलने का एलान किया। उन्होंने रेलमंत्री मुकुल राय की मौजूदगी में कहा कि जल्द ही यहां एक यूनिवर्सिटी, दो पोलिटेक्नीक कॉलेज व तीन आइआइटी कॉलेज खोले जाएंगे।
नवगठित गोरखालैंड टेरिटोरिएल एडमिनिस्ट्रेशन के चीफ विमल गुरुंग ने वादा किया कि जीटीए के तहत शिक्षा, स्वास्थ्य व पर्यटन उन लोगों की प्राथमिकता होगी। इसके पूर्व गोजमुमो के महासचिव व विधायक हरक बहादुर छेत्री ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने वृहत्तर उद्देश्य के लिए अपने सभी उम्मीदवारों का नाम वापस ले लिया था। इस चुनाव परिणाम से साबित हो गया है कि पहाड़ की जनता विमल गुरुंग को पसंद करती है। जीटीए का चेयरमैन प्रदीप उर्फ भूपेंद्र प्रधान को बनाया गया है। पांदाम समष्टि से निर्विरोध निर्वाचित होने वाले प्रदीप केंद्रीय उपाध्यक्ष भी हैं। इसके अतिरिक्त लोपसांग यल्मो को वाइस चेयरमैन बनाया गया है। वह कालिंपोंग के रोंगो-तोदे-जलडका समष्टि से निर्वाचित हुए हैं। नवगठित जीटीए में पांच निर्वाचित सदस्य भी रखे गए हैं। इसमें गोजमुमो के विर्खू भूसाल व सावित्री राई के अलावा तृणमूल कांग्रेस के मिलन डुक्पा, सतीश थिंग व दुर्गा खरेल शामिल हैं। दूसरी तरफ गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) का विरोध भी होने लगा है। बांग्ला व बांग्ला भाषा बचाओ कमेटी के अध्यक्ष डॉ. मुकुंद मजुमदार ने इसे बंगाल के विभाजन की ओर बढ़ाया गया कदम करार देते हुए कहा कि यह शपथ ग्रहण समारोह बंगाल के इतिहास में काले दिवस के रूप में याद किया जाएगा।
अरसे बाद दार्जिलिंग में लौटी शांति से लोगों ने राहत की सांस ली है। पहाड़ के साथ ही राज्य के मैदानी इलाकों में भी आंदोलन की राह छोड़ कर राजनीति की मुख्यधारा में लौटने को अच्छी पहल के रूप में देखा जा रहा है। बावजूद इसके कुछ लोग गुरुंग के बयानों को लेकर उनकी खिल्ली भी उड़ा रहे हैं। दबी जुबान से ही सही पर लोग उनके इस बयान की याद दिलाते हुए पूछ रहे हैं कि क्या हुआ गोरखालैंड के प्रति लोगों से किया गया उनका वादा। सुभाष घीसिंग की बखिया उधेड़ते हुए उन्होंने कहा था कि घीसिंग ने गोरखालैंड का सौदा कर लिया। इसी के साथ वह कहते फिरते थे कि यदि गोरखालैंड अलग राज्य नहीं बनवा सके तो खुद को गोली मार लेंगे। पर, ममता बनर्जी का जादू कुछ ऐसा चला कि गोरखालैंड की मांग भूलकर जीटीए पर उन्हें राजी होना पड़ा।
कुछ ऐसा ही बयान सुभाष घीषिंग ने भी दिया था। उन्होंने कहा था कि 'मेरी पहचान गोरखालैंड हैÓ। गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट बनाकर सुभाष घीसिंग ने भारतीय राजनीति में बहुत बड़ा धमाका किया था। पहाड़ी इलाकों में निवास करने वाले गोरखाओं में गोरखालैंड के नाम पर घीसींग ने ऐसी आग भर दी कि लगता ही नहीं था कि यह आग कभी थमेगी। लगभग 1200 लोग अलग गोरखालैंड की मांग करने वाले आंदोलन की भेंट चढ़ गए। आखिरकार तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ हुए समझौते में घीसिंग माने। दार्जिलिंग पर्वतीय विकास परिषद बनाकर उन्हें उसकी कमान सौंप दी गई। दार्जिलिंग पर्वतीय विकास परिषद 20 वर्षों तक ठीकठाक काम करता रहा। इस दौरान पृथक गोरखालैंड का मुद्दा राजनीतिक हाशिए पर धकेल दिया गया। जनता को लगने लगा कि सत्ता लोभ के कारण ही घीसिंग ने गोरखालैंड की मांग छोड़ दी। इसके बाद पहाड़ की जनता विमल गुरुंग के नेतृत्व में एक बार फिर गोरखालैंड की मांग में घीसिंग के खिलाफ उठ खड़ी हुई। विमल गुरुंग का आरोप था कि सत्ता के लोभ में घीसिंग गोरखालैंड की मांग ही भुला बैठा। दूसरी तरफ 2005 में इस इलाके को छठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने पर अपनी मुहर लगाकर घीसिंग विवादों में घिर गए थे। घीसिंग के साथी रहे विमल गुरुंग ने उनके खिलाफ बगावती झंडा लहराते हुए गोजमुमो का गठन किया। उसके बाद तो जैसे गोरखालैंड आंदोलन में भूचाल ही आ गया। इसी के साथ सुभाष घीसिंग का दौर खत्म होने लगा। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा इतना प्रभावशाली साबित हुआ कि उसके समर्थन से भाजपा टिकट पर राजस्थान के जसवंत सिंह दार्जिलिंग से लोकसभा चुनाव जीतने में सफल हुए।
बहरहाल, पहाड़ की जनता को गोरखालैंड का सपना दिखाकर एकाएक धूमकेतु की तरह चमके सुभाष घीसिंग अब पूरी तरह से अदृश्य हो चुके हैं। लोग उनकी खिल्ली उड़ाने से भी बाज नहीं आते। बदले हालात में उनके नए नायक गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष और अब जीटीए प्रमुख विमल गुरुंग हैं। लोगों ने अपने इस नए नायक को पलकों पर बिठा कर रखा है। दार्जिलिंग के पहाडिय़ों की सारी उम्मीदें अब गुरुंग पर टिकी हुई हैं।

1 टिप्पणी:

  1. ऐसी स्टोरी अब देखने सुनने को नहीं मिलती। गजब की लेखनी। बहुत बहुत धन्यवाद

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