शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

एकला चलो की राह पर दीदी


राष्ट्रीय साप्ताहिक इतवार में प्रकाशित

इंट्रो- अंतिम समय में प्रणव को समर्थन देने वाली दीदी ने चुनाव के तुरंत बाद कांग्रेस को दी पटखनी। पश्चिम बंगाल में आगामी पंचायत चुनावों में ममता का अकेले दम चुनाव लडऩे का एलान

हाईलाईटर- हाल ही में संपन्न नगर निकाय चुनावों में छ: में से चार पर तृड़मूल ने जीत दर्ज की थी

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भले ही अंतिम समय में प्रणव मुखर्जी का समर्थन कर दिया। पर इस दौरान उनके व कांग्रेस के बीच जो खटास पैदा हुई वह दूर नहीं हो पाई है। सूत्रों के अनुसार राज्य में वह जल्द ही कांग्रेस का हाथ झटककर एकला चलो की तैयारी कर रही हैं। राज्य कांग्रेस के नेताओं ने जिस तरह उनके खिलाफ बयानबाजी की उससे वह काफी आहत हैं। उन्होंने तय कर लिया है कि राज्य में अब और कांग्रेस का हाथ नहीं पकड़ेंगी। ममता बनर्जी इस तथ्य से भलीभांति वाकिफ हैं कि राज्य में उन्हें कांग्रेस के सहारे की जरूरत नहीं है। बल्कि स्वयं कांग्रेस को उनकी जरूरत है। उनके समर्थन के बिना कांग्रेस दर्जन भर सीट जीत पाने की भी ताकत नहीं रखती। गत दिनों संपन्न नगर निकाय के चुनाव परिणाम भी इसी तथ्य की ओर इशारा करते हैं। कुल छ: नगर निकायों में से अकेले तृणमूल ने चार पर कब्जा कर बता दिया कि राज्य में तृणमूल प्रमुख का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। प्रदेश कांग्रेस के साथ ही केंद्रीय नेतृत्व को औकात दिखाने के लिए तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि आगामी पंचायत चुनाव में उनकी पार्टी का कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं रहेगा। उन्होंने कहा कि तृणमूल राज्य में अकेले ही सरकार चलाने में सक्षम है क्योंकि उसके पास पर्याप्त बहुमत है।
शहीद दिवस पर आयोजित रैली को संबोधित करते हुए   ममता बनर्जी ने कहा कि हम राज्य में अकेले सरकार चलाने में सक्षम हैं। हमारे पास पर्याप्त बहुमत है। हम किसी पर निर्भर नहीं हैं। हम बंगाल में अकेले ही चुनाव लड़ेंगे। हम किसी की दया पर टिके हुए नहीं हैं। यह हमारा अपना संघर्ष है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि केंद्र में हालांकि उनकी पार्टी का कांग्रेस के साथ गठबंधन कायम रहेगा, बशर्ते उनके साथ आदर और गरिमापूर्ण व्यवहार हो। गौरतलब है कि कांग्रेस और तृणमूल का राज्य और केंद्र में गठबंधन है, फिर भी विभिन्न मुद्दों पर दोनों में तकरार होती रही है। चाहे वह राष्ट्रपति चुनाव हो या लोकपाल विधेयक अथवा खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश(एफडीआई) का मुद्दा हो। दूसरी तरफ प्रदेश कांग्रेस तृणमूल प्रमुख पर विभिन्न मुद्दों को लेकर हमले करता रहा है। तृणमूल मुखिया की घोर विरोधी मानी जाने वाली दीपा दासमुंशी व अधीररंजन चौधरी तो उन पर हमला करने का एक भी मौका नहीं चूके। बहरहाल, ममता ने रैली में कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि राज्य के कुछ कांग्रेस नेता माकपा समर्थित टेलीविजन चैनलों के स्टूडियो में बैठते हैं और हमारी सरकार की आलोचना करते हुए व्याख्यान देते हैं, जैसे हम उनकी दया पर सरकार चला रहे हों। उन्हें पता होना चाहिए कि हम उनकी वजह से नहीं बल्कि वे हमारी वजह से यहां हैं। उनका(राज्य कांग्रेस) काम केवल हमें गाली देना है। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को पंचायत चुनावों के लिए तैयार रहने की हिदायत देते हुए कहा कि पार्टी अकेले दम पर ही पंचायत चुनाव लड़ेगी।
पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव दुर्गापूजा के बाद होने हैं। इससे पहले कई मौकों पर तृणमूल नेतृत्व राज्य कांग्रेस को विपक्षी माकपा की टीम-बी बताता रहा है और आरोप लगाता रहा है कि कांग्रेस, माक्र्सवादियों के साथ मिलकर राज्य में चल रहे विभिन्न विकास कार्यों में अड़ंगा लगाती रही है।
दुर्गा पूजा के बाद पंचायत चुनाव कराने की घोषणा के साथ ही राज्य में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। मुख्य विपक्षी पार्टी माकपा समेत भाजपा ने ममता के इस निर्णय को घोर आपत्तिजनक करार दिया। गौरतलब है कि पंचायत चुनाव अगले साल मई में होना प्रस्तावित था। समय पूर्व चुनाव कराने को लेकर ममता के बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए माकपा ने कहा कि ममता का यह तानाशाही फरमान है। दूसरी तरफ राज्य के पंचायत मंत्री सुब्रत मुखर्जी की मानें तो पंचायत चुनाव दिसंबर में होंगे। उन्होंने विरोधी दलों के आरोप को खारिज करते हुए कहा कि समय से पूर्व पंचायत चुनाव कराने में कोई कानूनी अड़चन नहीं है। कांग्रेस से अलग पंचायत चुनाव लडऩे के सवाल पर तृणमूल नेता मदन मित्रा ने कहा कि कांग्रेस हमारी मोहताज है, हम नहीं। विधानसभा चुनाव के बाद तृणमूल कांग्रेस लोकप्रियता के पहले बड़े परीक्षण पूरे अंकों के साथ पास हो चुकी है। गौरतलब है कि अकेले चुनाव लड़कर तृणमूल कांग्रेस ने विरोधियों को करारा जवाब देते हुए छ: स्थानीय निकायों के चुनाव में से चार स्थानों पर जीत हासिल की।
तृणमूल ने उत्तर में जलपाईगुड़ी जिले की धूपगुड़ी नगरपालिका में वामपंथी पार्टियों को हराकर जीत हासिल की थी। इसे तृणमूल की बड़ी जीत के रूप में देखा गया था, क्योंकि पिछले साल राज्य विधानसभा चुनाव में हार के बावजूद वाम दल यहां अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे थे। तृणमूल ने दुर्गापुर नगर निगम पर भी अपना परचम लहराया। यहां वाममोर्चे की पिछले 15 साल में पहली बार हार हुई। तृणमूल पूर्वी मिदनापुर जिले में पांसकुड़ा नगरपालिका भी बचाने में कामयाब रही। लेकिन उसकी सबसे महत्वपूर्ण जीत बीरभूम जिले में नालहटी नगरपालिका में रही, जहां केंद्रीय वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी के बेटे और नालहटी से कांग्रेस के विधायक अभिजीत स्वयं पार्टी के पक्ष में चुनाव प्रचार की कमान संभाले हुए थे। वाममोर्चा हालांकि हल्दिया नगरपालिका पर अपना कब्जा बरकरार रखने में सफल रहा। नंदीग्राम से सटे इस इलाके से तृणमूल ने विधानसभा चुनाव में जबर्दस्त सफलता पाई थी। कांग्रेस के लिए एकमात्र सांत्वना की बात यह रही कि वह नदिया जिले में कूपर्स कैंप नगरपालिका में अपना कब्जा बरकरार रखने में सफल रही। विधानसभा चुनाव के बाद पहली बार कांग्रेस की सहायता के बिना अकेले दम पर चार निकायों पर कब्जा जमा कर तृणमूल ने जता दिया है कि वह राज्य में कांग्रेस की मुखापेक्षी नहीं है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें