शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

खट्टे नहीं थे अंगूर


राष्ट्रीय साप्ताहिक इतवार में प्रकाशित

झेंप मिटाने के लिए अक्सर एक मुहावरा प्रयोग किया जाता है कि 'गिर पड़े तो हर गंगेÓ। कुछ ऐसा ही सोनिया गांधी के लिए भाजपा कहती रही है। साल 2004 में प्रधानमंत्री पद को स्वीकार न करने को कांग्रेसी उनका अभूतपूर्व त्याग बताते रहे हैं। वहीं, भाजपा कहती रही है कि विदेशी मूल का होने के कारण तब के राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम आजाद ने उन पर फच्चर फंसा दिया था, इसलिए मजबूरी में उन्होंने 'अंगूर खट्टे हैंÓ कहकर मनमोहन सिंह का नाम आगे कर दिया था। पर यह सच नहीं है। सचमुच ही सोनिया गांधी ने त्याग किया था। उन्होंने प्रधानमंत्री पद न स्वीकारने का निर्णय स्वेच्छा से लिया था।
बहरहाल, अब तक अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग अलाप रहे दोनों दलों को इसका जवाब मिल गया है। और यह जवाब मिला है पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर अब्दुल कलाम की अप्रकाशित पुस्तक 'टर्निंग प्वाइंट्स, ए जर्नी थ्रू चैलेंज्सÓ से। सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने की राह में तब के राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने रोड़ा अटकाया था। इस आम धारणा के विपरीत डॉ. कलाम ने इस बात को मिथ्या करार देेते हुए कह दिया है कि वह तो उन्हें प्रधानमंत्री बनाने को तैयार थे लेकिन खुद सोनिया गांधी पीछे हट गईं। यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी यदि चाहतीं तो साल 2004 में प्रधानमंत्री बन सकती थीं। उनका इस देश में पैदा न होना इसके आड़े नहीं आता। लेकिन खुद सोनिया गांधी ने ही अपनी जगह मनमोहन सिंह का नाम प्रस्तावित कर दिया था। कलाम के इस  रहस्योद्घाटन से जहां कांग्रेस के दावों पर मुहर लगी है, वहीं भाजपा के झूठ का पर्दाफाश भी हुआ है। कलाम ने अपनी पुस्तक में उक्त बात का खुलासा करते हुए कहा है कि मनमोहन सिंह का नाम सामने आने के बाद वह खुद भी आश्चर्यचकित रह गए थे। उनके अनुसार सोनिया के नाम की चिट्ठी भी तैयार कर ली गई थी। पर उनके द्वारा मनमोहन सिंह का नाम प्रस्तावित किए जाने के बाद दुबारा चिट्ठी तैयार की गई।
खैर, जो भी हो लेकिन इस राजनीतिक रहस्य पर से पर्दा उठाने के समय को लेकर सवालों का बाजार गर्म हो गया है। पूछा जा रहा है कि आठ साल तक चुप रहने के बाद आखिर इसी समय क्यों डा. कलाम ने इसका खुलासा किया। कहीं इसके पीछे खुद को पाक साफ दिखाने की कोशिश या फिर सोनिया गांधी की नाराजगी दूर करने का प्रयास तो नहीं है। यह सवाल इसलिए क्योंकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा डॉ. कलाम का नाम राष्ट्रपति पद के लिए प्रस्तावित किए जाने के बाद अंदरखाने एनडीए का भी उन्हें समर्थन था। बावजूद इसके उन्होंने चुनाव लडऩे से इंकार कर दिया। जाहिर सी बात है कि उन्हें कांग्रेस का समर्थन नहीं मिलने वाला था। क्योंकि माना जाता रहा है कि उन्होंने ही सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया था। इसलिए सोनिया उनके नाम पर कभी भी सहमत नहीं होगी। ऐसे में अपनी भद पिटवाने से बेहतर उन्हें चुनाव मैदान से हट जाना ही लगा। हालांकि कांग्रेस पहले से ही सोनिया के प्रधानमंत्री नहीं बनने की वजह उनके त्याग को कहती रही है बावजूद इसके भाजपा यही दावा करती रही है कि विदेशी मूल का होने के कारण राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आजाद ने उनके नाम पर फच्चर फंसा दिया था। इसलिए मजबूरी में उन्होंने मनमोहन सिंह का नाम आगे बढ़ाया था। लेकिन अब खुद कलाम की पुस्तक ने इस बात को निराधार ठहरा दिया है। इस तरह दूध का दूध और पानी का पानी हो गया है। कलाम ने उस राजनीतिक रहस्य पर से पर्दा उठाते हुए कहा है कि वह सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाए जाने के खिलाफ नहीं थे। उन्होंने इस बात का खुलासा किया है कि अगर सोनिया पीएम बनना चाहतीं तो उनके पास कोई और विकल्प नहीं होता सिवा उनकी नियुक्ति के।
गौरतलब है कि 13 मई 2004 को आए चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस संसदीय दल व यूपीए गठबंधन का अध्यक्ष बनने के बावजूद सोनिया ने पीएम नहीं बनने का निर्णय किया था। कांग्रेस नीत सरकार का बाहर से समर्थन करने का निर्णय करने वाले वामदलों ने भी सोनिया का नाम पीएम पद के लिए प्रस्तावित किया था लेकिन कई दक्षिणपंथी पार्टियों ने सोनिया के विदेशी होने का मुद्दा उठाकर उनके पीएम बनने का विरोध किया था।
कलाम ने लिखा है कि कई नेता उनसे मिले और किसी तरह के दबाव में न आकर सोनिया को पीएम नियुक्त करने का आग्रह किया था। हालांकि यह निवेदन संवैधानिक रूप से तर्कसंगत नहीं था। अगर सोनिया ने अपने लिए कोई दावा किया होता तो उनके पास उन्हें नियुक्त करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। उन्होंने दावा किया है कि वह उस वक्त हैरान रह गये थे जब 18 मई 2004 को सोनिया गांधी उनसे मिलने आईं और प्रधानमंत्री पद के लिए मनमोहन सिंह के नाम का प्रस्ताव किया। क्योंकि उस वक्त तक सोनिया के नाम की चिट्ठी तैयार हो गई थी।
बहरहाल, कलाम के खुलासे ने राजनीतिक सरगर्मियां तेज कर दी है। खुलासे के समय को लेकर उन पर आरोपों के तीर छोड़े जा रहे हैं। जनता दल अध्यक्ष शरद यादव ने खुलासे के समय पर सवाल उठाते हुए कहा है कि कलाम का जमीर इतने अर्से बाद क्यों जागा। क्यों वह आठ साल तक चुप रहे। दूसरी तरफ जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कलाम के इस दावे को झूठा करार दिया है। उन्होंने मांग की है कि कलाम को 17 मई 2004 की वह चि_ी सार्वजनिक करनी चाहिए, जो उन्होंने सोनिया गांधी को 17 मई 2004 को शाम साढ़े तीन बजे लिखी थी। स्वामी के मुताबिक, कलाम ने ही सोनिया गांधी के पीएम बनने पर ऐतराज जताया था। सुब्रह्मण्यम स्वामी का दावा है कि उस दिन सोनिया शाम पांच बजे सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए उनसे मिलने वाली थीं। जबकि वह कलाम से करीब सवा 12 बजे मिले थे और बताया था कि सोनिया के पीएम बनने में कानूनी अड़चनें हैं। इसके बाद कलाम ने सोनिया को साढ़े तीन बजे चि_ी लिखी, जिसमें शाम पांच बजे की मुलाकात रद्द करने की जानकारी दी गई थी। उन्होंने सोनिया को लिखा था कि वह इस मुद्दे पर चर्चा के लिए अगले दिन उनसे मिल सकती हैं। स्वामी का दावा है कि जब यह चि_ी सोनिया को मिली, तो मनमोहन सिंह और नटवर सिंह वहां मौजूद थे और खुद मनमोहन सिंह ने चि_ी का एक पैरा सबके सामने पढ़ा था। स्वामी ने कहा कि अगर कलाम चि_ी सबके सामने नहीं लाते हैं, तो मैं मानूंगा कि वह इतिहास के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं। स्वामी ने कलाम द्वारा देर से मुद्दा उठाने पर भी सवाल किया है। स्वामी पहले भी कई बार यह दावा कर चुके हैं कि सोनिया ने पीएम पद ठुकराया नहीं, बल्कि उनके कहने पर कलाम ने उन्हें पीएम नहीं बनने दिया। स्वामी के मुताबिक, सोनिया से मिलने से पहले वे कलाम से मिले थे और उन्हें उन संवैधानिक उल्लेखों की जानकारी दी थी, जिनके मुताबिक, विदेशी मूल का कोई व्यक्ति देश के सर्वोच्च पदों पर आसीन नहीं हो सकता। स्वामी के दावों को ही भाजपा सहित अन्य विपक्षी पार्टियों ने प्रचारित किया था।
ज्ञातव्य है कि सोनिया गांधी के मिलने से पहले कलाम-स्वामी की मुलाकात का जिक्र राष्ट्रपति भवन के दस्तावेजों में भी मौजूद है। यह मुलाकात तकरीबन 30 मिनट की थी और समय था करीब सवा 12 बजे का। इसके उलट कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा है कि कलाम की पुस्तक में सच उजागर होने से जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी और भाजपा के नेताओं का झूठ सामने आ गया है।
                                                                                             बद्रीनाथ वर्मा  9718389836

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