रविवार, 28 अक्तूबर 2012

स्त्री अस्मिता से खिलवाड़


स्त्री अस्मिता से  खिलवाड़


बलात्कार की बढ़ती घटनाओं पर जिस तरह देश में सतही बयानबाजी हो रही है वह तथाकथित रहनुमाओं के दिमागी दिवालियेपन को ही उजागर करती है। बलात्कार जैसे घृणित व संगीन अपराध पर ऊलजुलूल व संवेदनहीन बयान देकर आखिर क्या संदेश देने की कोशिश हो रही है। क्या ऐसे बेहूदे बयानों से अपरोक्ष रूप से बलात्कारियों को ही बढ़ावा नहीं मिल रहा?

लगता है देश में स्त्री अस्मिता से खिलवाड़ करना कुछ लोगों का शगल बन गया है। बलात्कार की बढ़ती घटनाओं पर सभी अपने अपने हिसाब से बयान देने में लगे हुए हैं। सबके अपने-अपने तर्क हैं। एक से बढ़कर एक अजीबोगरीब कारण बताये जाने का मानो सिलसिला ही चल पड़ा है। ऐसे-ऐसे तर्क या कह सकते हैं कुतर्क दिये जा रहे हैं, जिसे पढ़-सुनकर सिर पीट लेने को जी करता है। कोई बलात्कार के लिए फॉस्टफूड को जिम्मेदार ठहरा रहा है, तो कोई इसे आजादी का परिणाम बता रहा है। लड़कियों की छोटी उम्र में ही शादी कर देने की हिमायत करने वाले तो घुमा फिराकर बलात्कार के लिए पीडि़ता को ही कसूरवार ठहरा रहे हैं। एक तरह से बलात्कारियों की पैरवी करते इन पैरोकारों के बयान खुद बलात्कार पीडि़ता को ही कठघरे में खड़े करने जैसा है। मानो बलात्कार के लिए बलात्कारी से ज्यादा खुद बलात्कार पीडि़ता ही जिम्मेदार है।
अभी तक अपने अजीबोगरीब फरमानों के लिए कुख्यात रही खाप पंचायतों के नक्शेकदम पर चलते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता मनर्जी ने भी इस मुद्दे पर एक विवादित बयान दिया है। बनर्जी ने कहा है कि आजादी के कारण ही बलात्कार की घटनाएं हो रही हैं। उनके इस बयान ने तो मानों आग में घी ही डाल दिया। सोशल साइटों पर उनके बयान को लेकर उनकी खूब थुक्का फजीहत की गयी। किसी ने उन्हें खाप पंचायतों की खोई हुई बहन कहा तो किसी ने उन्हें खाप पंचायतों का ब्रांड एंबेस्डर करार दिया। दरअसल बलात्कार के मसले पर ममता ने कहा था कि महिलाओं और पुरु षों को एक-दूसरे से बात करने की खुली छूट मिली है। इस वजह से रेप की घटनाएं बढ़ी हैं। वे यहीं नहीं रुकीं बल्कि इसका सारा दोष मीडिया पर मढ़ते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि हर दिन रेप की घटनाओं को मीडिया में बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है। ऐसा लगता है कि जैसे कि पूरा प्रदेश बलात्कारियों से भरा है। इसे जनता के बीच बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। उन्होंने मीडिया को एक तरह से नसीहत देते हुए कहा कि इस तरह की पत्रकारिता से सिर्फ विनाश ही होता है। ममता ने कहा कि दुष्प्रचार और नकारात्मक समाचारों के जरिये उनकी सरकार को निशाना बनाया जा रहा है। ऐसे समाचारों से हमारे शासन-प्रशासन की गलत छवि पेश की जा रही है। इसी तरह कटवा में हुए सामूहिक बलात्कारकांड को भी उन्होंने माकपा व मीडिया की साजिश करार दिया था। उन्होंने मीडिया पर अपनी सरकार की छवि खराब करने का आरोप लगाते हुए कहा था कि सनसनीखेज खबरें परोसने के लिए मीडिया इस तरह के कारनामों को अंजाम दे रहा है। इसी तरह अपने विभिन्न कारनामों से सुर्खियों में रहने वाली खाप पंचायत
ने हरियाणा में तेजी से बढ़ रही बलात्कार की घटनाओं के लिए फॉस्ट फूड कल्चर को दोषी ठहराया है। इससे पहले खाप ने हरियाणा में तेजी से बढ़ते दुष्कर्म के मामलों को रोकने के लिए लड़कियों की शादी की उम्र कम करने की वकालत की थी।
 खाप नेता जितेंद्र छत्तर का मानना है कि दुष्कर्म की बढ़ती घटनाओं के लिए चाउमिन, बर्गर पिज्जा और हॉट डॉग जैसे फॉस्ट फूड जिम्मेदार हैं। छत्तर ने विशेषज्ञों की तरह तर्क देते हुए कहा कि फॉस्ट फूड शरीर पर बुरा प्रभाव डालता है, क्योंकि जब लोग फास्ट फूड खाते हैं, तो गर्मी पैदा होती है जिससे शरीर में सेक्स हारमोन तेजी से बनने लगता है और खाने वाला बेकाबू हो जाता है। बकौल छत्तर, लोगों को फास्ट फूड खाने के बाद कुछ ठंडी चीजें खानी चाहिए। बलात्कार जैसी घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए छत्तर ने भारतीय खाना और जीवन-शैली अपनाने की वकालत की है। उनके अनुसार सादा जीवन अपनाकर ही इस प्रकार की घटनाओं में कमी लायी जा सकती है।
गौरतलब है कि इससे पहले दुष्कर्म की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए खाप नेताओं द्वारा लड़कियों की शादी कम उम्र में करने की वकालत की गयी थी। दिलचस्प तथ्य यह है कि इस पर इनेलो अध्यक्ष ओम प्रकाश चौटाला ने भी सहमति जतायी थी। चौटाला ने कहा कि बलात्कार की घटनाओं के बढ़ने का कारण लड़कियों को अधिक उम्र तक घर में बैठाना है, हमें चाहिए कि इस तरह के अपराध को कम करने के लिए बेटियों की शादी जल्द कर दी जाए। उनसे पहले खाप पंचायतों ने भी 15 साल की उम्र में लड़कियों की शादी करने की बात कही थी। बलात्कार सिर्फ किशोरियों से नहीं बल्कि शादीशुदा महिलाओं के साथ भी होते हैं। ऐसे में इन लोगों ने यह नहीं बताया कि शादीशुदा महिलाओं के साथ होने वाली इस तरह ही हरकतों का क्या निदान उन्होंने खोजा है। इन रहनुमाओं को कम से कम इतनी जानकारी तो होनी ही चाहिए कि  इस तरह के अपराध सिर्फ कुंवारी लड़कियों के साथ ही नहीं बल्कि विवाहित महिलाओं के साथ भी हो रहे हैं। वैसे हरियाणा में बढ़ती इन घटनाओं का कारण कहीं ना कहीं असंतुलित लिंग अनुपात भी है। प्रदेश में लड़कियों की कम संख्या भी इस तरह की घटनाओं की एक बड़ी वजह है। गौरतलब है कि स्त्री-पुरुष अनुपात हरियाणा में सबसे कम है। प्रति एक हजार लड़कों पर यहां लड़कियों की संख्या मात्र 744 ही है। बहरहाल, जब बलात्कार से बचने के एक से एक नायाब तरीके बताये जा रहे हों तो फिर भला कांग्रेस क्यों पीछे रहती। लगे हाथों हरियाणा कांग्रेस के प्रवक्ता धर्मवीर गोयल ने बलात्कार जैसे शब्द को ही नकार दिया। उन्होंने अपने अजीबोगरीब बयान में कहा था कि 90 फीसदी मामलों में बलात्कार नहीं, बल्कि लड़कियां सहमति से संबंध बनाती हैं।

ममता बनर्जी, मुख्यमंत्री पश्चिम बंगाल : लड़के-लड़कियों को माता-पिता द्वारा दी गयी आजादी से ही बलात्कार जैसी घटनाएं हो रही हैं।

ओमप्रकाश चौटाला, पूर्व मु्ख्यमंत्री हरियाणा : बलात्कार जैसी घटनाओं से बचने के लिए कम उम्र में ही लड़कियों की शादी कर देनी चाहिए।

धर्मवीर गोयल, प्रवक्ता, हरियाणा प्रदेश कांग्रेस पार्टी : नब्बे फीसदी मामलों में बलात्कार नहीं, बल्कि लड़कियां सहमति से संबंध बनाती हैं।

जीतेन्द्र छत्तर, खाप नेता : चाउमिन, बर्गर पिज्जा और हॉट डॉग जैसे फॉस्ट फूड खाने से गर्मी पैदा होती है जिससे शरीर में सेक्स हारमोन तेजी से बनने लगता है और खाने वाला बेकाबू होकर बलात्कार कर बैठता है ।

शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

भारी भतीजे


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इंट्रो : सियासत में रिश्तों का बनना बिगड़ना कोई नयी बात नहीं है लेकिन बात जब सत्ता में हिस्सेदारी की आती है तो खून के रिश्तों में भी दरार पड़ते देर नहीं लगती। इतिहास गवाह है कि जिनकी उंगली पकड़कर सियासतदानों ने अपनी पहचान बनायी वक्त आने पर उन्हीं आकाओं को आईना दिखाने से गुरेज नहीं किया। ताजा मामला अजित पवार का है। वैसे फेहरिश्त लंबी है। राज ठाकरे भी इसके उम्दा उदाहरण हैं कि भारतीय राजनीति में अक्सर भतीजे भारी पड़ते रहे हैं। इसी को रेखांकित करती ह्यलोकस्वामीह्ण की कवर स्टोरी। 
सिंचाई घोटाले में नाम आने पर महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार से काका शरद पवार ने इस्तीफा ले तो लिया किंतु इस दौरान उन्हें नाकों चने भी चबाने पड़ गये। उपमुख्यमंत्री पद से अजित के इस्तीफा देने के साथ ही राष्ट्रवादी कांग्रेस में मानो हड़कंप ही मच गया। तमाम मंत्रियों-विधायकों ने भी इस्तीफे देने की घोषणा कर दी। इससे मराठा छत्रप शरद पवार के हाथ-पांव फूल गये। बड़ी मुश्किल से उन्होंने भतीजे को मनाया तब जाकर मामला कुछ शांत हुआ। खैर, जो भी हो पर इस घटना क्रम ने यह साफ साबित कर दिया कि महाराष्ट्र की राजनीति में भतीजे अजित पवार का कद अपने काका शरद पवार से भी काफी ऊंचा हो गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अजित पवार इस्तीफे के जरिए शरद पवार को साधना चाहते हैं? या इस बहाने मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्वाण से सौदेबाजी करना चाहते हैं। दरअसल, अजित एक तीर से दो निशाने साध रहे हंै। पहला यह कि शरद पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले को जिस तरह यशवंतराव चव्हाण संस्थान का सर्वेसर्वा बनाया उससे कयास लगाये जाने लगे कि शरद पवार की सियासी विरासत की असली वारिस सुप्रिया ही हैं। ऐसे में अजित का यह शक्ति प्रदर्शन मराठा छत्रप को संदेश है कि उन्हें हल्के में लेना खतरे से खाली नहीं होगा। दरअसल, सिंचाई घोटाले में अपनी गर्दन फंसती देखकर अपने साथ 19 मंत्रियों का त्यागपत्र दिलाकर जहां उन्होंने महाराष्ट्र में खुद को एनसीपी का सबसे बड़ा नेता साबित करने में कामयाब रहे वहीं कांग्रेस को भी चेता दिया कि अगला कदम सरकार के लिए जोखिम भरा हो सकता है। यही कारण है कि अजित पवार के इस्तीफे  में बगावती तेवरों की गंध आ रही है। साफ लफ्जों में कहंे तो महाराष्ट्र सत्ता का यह संघर्ष चाचा-भतीजे के आपसी संघर्ष का नतीजा है। वैसे राजनीति में सत्ता के लिए चाचा-भतीजे के बीच आपसी संघर्ष कोई नयी बात नहीं है।
शरद पवार महाराष्ट्र की राजनीति में जिस तरह का सियासी दांव पेंच खेलते रहे हैं, कुछ उसी तरह की चाल उनके भतीजे अजित पवार भी चल रहे हैं। चाचा शरद पवार की बनायी शुगर को-ऑपरेटिव लॉबी और जिला सहकारी बैंक से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले अजित पवार पूरी तरह अपने चाचा शरद पवार के नक्शे कदम पर चलते दिख रहे हैं। शरद पवार ने 1978 में इंदिरा गांधी की ताकत को चुनौती देते हुए महाराष्ट्र कांग्रेस में दो फाड़ कर प्रोग्रेसिव डेमोक्र ेटिक फ्रंट नाम से अपना एक अलग दल बना लिया, और बाद में विपक्ष से मिलकर मुख्यमंत्री बन बैठे। कहीं ऐसा तो नहीं कि अजित पवार भी कुछ इसी तर्ज पर महाराष्ट्र की राजनीति को डगमगाकर एनसीपी की सियासत में अपनी मजबूत पकड़ साबित करना चाहते है। 
 अजित न सिर्फ राज्य के उप मुख्यमंत्री थे बल्कि वे राज्य विधानसभा में राकांपा विधायक दल के नेता भी हैं। यह वही अजित पवार हंै जिन्होंने अपने काका की खातिर एक बार बारामती लोकसभा सीट खाली कर दी थी। बहरहाल, उप मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद सहयोगी पार्टी कांग्रेस पर परोक्ष रूप से हमला करते हुए राकांपा नेता अजित पवार ने कहा कि उनके खिलाफ उठाये गये अनियमतिता के मामलों का उद्देश्य कोयला ब्लॉक घोटाले से लोगों का ध्यान भटकाना था। पवार ने कहा कि कोयला से हमारे चेहरे को काला करने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि उन्होंने कांग्रेस का नाम नहीं लिया लेकिन तथ्यों से साफ था कि उनका गुस्सा अपने गठबंधन की सहयोगी पार्टी पर ही था। पवार अहमदनगर जिले के अकोले में एक सभा में बोल रहे थे। इस्तीफा के बाद यह उनकी पहली सार्वजनिक सभा थी। उन्होंने कहा कि उनकी छवि को धूमिल करने का षड्यंत्र चल रहा है।
वैसे देखा जाए तो काका-भतीजों के संबंधों में उतार-चढ़ाव चलते ही रहे हंै। मजे की बात यह है कि  भारतीय राजनीति में ये भतीजे अक्सर भारी पडे़ हैं। इसके कई उदाहरण हैं। इनमें से कुछ तो ऐसे हैं जिनके किस्से आज भी राजनीतिक गलियारों में चटखारे लेकर सुने जाते हैं। बाल ठाकरे और राज ठाकरे के बीच के संबंध सभी जानते हैं। बाल ठाकरे ने जैसे ही अपने बेटे उद्धव ठाकरे को महत्व देना शुरू किया, वैसे ही काका के सामने राज ने मोर्चा खोल दिया। इसी तरह पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के भतीजे मनप्रीत सिंह भी राज ठाकरे के पदचिन्हों पर चलते हुए अपनी अलग पार्टी बना ली। उनकी पार्टी ने पिछले विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार भी उतारे। हालांकि कोई सफलता नहीं मिली। उधर तमिलनाडु में करु णानिधि के भतीजे मुरासोली मारन के बेटे दयानिधि मारन को टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले में इस्तीफा देना पड़ा था। इसी क्रम में स्व. राजीव गांधी के भतीजे वरु ण गांधी कांग्रेस पार्टी के खिलाफ मजबूती के साथ खड़ी भाजपा के टिकट पर पीलीभीत लोकसभा सीट पर जीत दर्ज कर सांसद हैं। भाजपा की तेज तर्रार नेत्री और मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमाभारती के भतीजे सिद्धार्थ सिंह (लोधी) भी अपनी बुआ की राजनीति को प्रभावित करते रहे हैं। जब बात भतीजों की हो रही है तो उत्तर प्रदेश भी इस मामले में पीछे नहीं है। अगर भतीजों की शृंखला में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेंद्र यादव का जिक्र न हो तो यह उनके साथ घोर नाइंसाफी होगी। नेताजी के इस भतीजे का जलवा सरकार व पार्टी में देखने लायक है। मजाल क्या कि कोई इनकी अनदेखी कर सके। नेताजी के लिए भतीजे धर्मेंद्र कितनी अहमियत रखते हैं। यह इसी से जाना जा सकता है कि धर्मेंद्र को संसद में भेजने के लिए नेताजी ने अपने एक ऐसे साथी की बलि ले ली जो लगातार बदायूं से पांच बार जीत दर्ज कर चुके थे। ये साथी थे समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता सलीम शेरवानी। समाजवादी पार्टी को खड़ा करने में शेरवानी का जो योगदान था उसे भी भतीजे के प्रेम में नेताजी ने भुला दिया था। इससे नाराज शेरवानी ने सदा सदा के लिए सपा को अलविदा कह दिया। हालांकि उन्हें सपा ने राज्यसभा में जाने का प्रस्ताव दिया किंतु अपनी जिद्द पर अटल शेरवानी ने इसे नामंजूर कर दिया।   
शेरवानी को कांग्रेस ने हाथोंहाथ लपक लिया नतीजा हुआ कि बंदायूं के आसपास की चार पांच सीटों पर समाजवादी पार्टी को जबरदश्त नुकसान उठाना पड़ा था। हालांकि मुलायम सिंह के साथ ही खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आज भी चाहते हैं कि शेरवानी सारे गिले शिकवे भूल कर पार्टी में वापस आ जायें पर अपनी सीट काटे जाने से नाराज शेरवानी किसी भी कीमत पर पार्टी में वापस नहीं लौटना चाहते।
राजनीति के बारे में हमेशा कहा जाता रहा है कि यहां रिश्ते नाते मायने नहीं रखते हैं। लेकिन चूंकि यहां चर्चा काका-भतीजे की चल रही है, तो भारतीय राजनीति में अक्सर भतीजे भारी पड़ते नजर आये हैं।
बहरहाल, महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री पद से अजित पवार ने इस्तीफा देकर अपने काका शरद पवार की हालत पतली कर दी है। ऊपरी तौर पर भले ही शरद पवार यह कहते फिरे कि अजित ने इस्तीफा देकर बहुत हिम्मत का काम किया है, परंतु अजित ने जिस तरह पार्टी में अपने समर्थकों की फौज तैयार कर ली है उसने शरद पवार को हिला कर रख दिया है। दरअसल, अजित पवार के समर्थन में जिस ढंग से राकंापा के कार्यकर्ताओं और जनप्रतिनिधियों ने सामूहिक इस्तीफा देने की बात कही, उसने शरद पवार को बेचैन कर दिया। जैसे-तैसे इन सभी को मनाया गया। पवार ने उन्हें अपनी राजनीतिक मजबूरी बतायी कि उनके पास अजित से  इस्तीफा देने को कहने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। उनके इस अनुनय विनय से यह भी झलकता है कि वे भतीजे के बढ़ते कद से डरे हुए हैं। एक समय था कि काका के हर कदम का समर्थन करने वाले अजित पवार ने लोकसभा सीट तक खाली कर दी थी। पर अब अजित की पहचान सिर्फ शरद पवार के भतीजे की नहीं रह गयी है। खुद राकांपा में उनके समर्थकों की संख्या शरद पवार से कहीं अधिक है।


चाचा शरद पवार की छत्रछाया में अजित पवार ने शुगर को-आपरेटिव मंडली से अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की थी। इसके बाद वह पूना जिला को-आपरेटिव बैंक का चेयरमैन बन गये। बारामती लोकसभा सीट से चुनाव लड़कर अजित वहां के सांसद भी रह चुके हैं। नरसिंह राव के प्रधानमंत्रीत्व काल में शरद पवार को राज्य से केंद्र में बुलाकर रक्षामंत्री बनाया गया था। ऐसे में पवार के लिए संसद सदस्य बनना  बेहद जरूरी था। तब अजित ने इस्तीफा देकर अपने काका के लिए सीट खाली की थी, जिससे शरद पवार बारामती सीट जीत कर संसद में पहुंचे। बारामती विधानसभा सीट पर अजित पवार ने चुनाव लड़ा और वे विधायक बन गये। धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए वे महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंच गये। इस बीच शरद पवार की पुत्री सुप्रिया सुले ने राजनीति में प्रवेश किया। ऐसी परिस्थिति में मराठा छत्रप शरद पवार भतीजे की अपेक्षा अपनी बेटी का राजनीतिक कैरियर बनाने पर ज्यादा ध्यान देने लगे। यह बात भतीजे को खटक गयी। अजित का कैरियर सरपट दौड़ लगा रहा था परंतु तभी इस घोटाले ने जैसे ब्रेक लगा दिया। यहां एक बात विशेष रूप से गौर करने वाली है कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अलावा महाराष्ट्र की राजनीति में अजित पवार का कद काफी ऊंचा है। वह अकेले ऐसे नेता हैं जिन्हें महाराष्ट्र में एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार से भी बड़ा नेता माना जाता है। अगर यह कहें कि महाराष्ट्र में एनसीपी की राजनीति अजित पवार  की बदौलत चलती है तो यह गलत नहीं होगा। जिस तरह से पहले बाल ठाकरे की पार्टी शिव सेना में राज ठाकरे का दबदबा था, वही दबदबा आज एनसीपी में अजित पवार का है।
बहरहाल जनवरी से अगस्त 2009 के बीच अजित पवार महाराष्ट्र के सिंचाई मंत्री थे। इस दौरान जून से अगस्त 2009 अर्थात मात्र तीन महीने के अंदर ही उन्होंने 20 हजार करोड़ रु पये वाले 32 प्रोजेक्टों को अंधाधुंध पास कर दिया। इस आपाधापी में जमकर जरूरी कानूनी प्रक्रि या का उल्लंघन किया गया।  इस योजना के तहत महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में एक हजार से भी अधिक सिंचाई परियोजनाओं का काम शुरू हुआ। इसमें से 930 योजनाओं का काम तो पूरा हो गया, लेकिन 340 परियोजनाओं पर काम अभी भी चल रहा है। इस मद में अब तक 39490 करोड़ रु पये खर्च हो चुके हैं। मूलरूप से घोटाला यह हुआ है कि जहां दो पाइप लाइनों की जरूरत थी वहां तीन-तीन पाइप लाइनों के जरिये नदियों पर अलग-अलग बांध बना दिये गये। मसलन अजित पवार ने कांक्ट्रेक्टरों को फायदा पहुंचाने के लिए 2006 से 2009 के दौरान 13,500  करोड़ रु पये के टेंडरों को आसमानी रेट पर पास कर दिया। इस गैरकानूनी तरीके के कारण अजित पवार को इस्तीफा देना पड़ा। महाराष्ट्र के इस कद्दावर नेता ने सिंचाई के सबसे बड़े घोटालों को जिस समय अंजाम दिया उसी समय महाराष्ट्र के विदर्भ में सबसे ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की।
भतीजे अजित पवार का यह कारनामा काका शरद पवार के लिए आगामी चुनाव में मुश्किलें खड़ी कर सकता है। भतीजे की हरकत काका के लिए टेंशन बन गयी है। काका-भतीजे के इस विवाद ने दुनिया में अब तक हुए कई काका-भतीजों की जंग की याद ताजा कर दी है। महाराष्ट्र का ही सबसे बड़ा मामला शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे और उनके भतीजे राज ठाकरे को लेकर है। एक समय था जब शिवसेना ही नहीं बल्कि आम लोगों का भी मानना था कि भतीजा राज ठाकरे ही बाल ठाकरे का उत्तराधिकारी है, लेकिन जैसे ही बाल ठाकरे ने अपने बेटे उद्धव ठाकरे को आगे बढ़ाया वैसे ही राज ठाकरे ने काका से किनारा कर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन कर लिया। राज की नवगठित पार्टी ने न सिर्फ बाल ठाकरे को बल्कि शिवसेना को भी जबरदस्त नुकसान पहुंचाया।
पंजाब में भी एक काका भतीजे का दंगल चल रहा है। प्रकाश सिंह बादल पंजाब के मुख्यमंत्री हैं और उनके बेटे सुखवीर सिंह बादल उपमुख्यमंत्री होने के साथ ही साथ शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष भी हैं। एक समय था जब मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के भतीजे मनप्रीत सिंह बादल काका के बहुत करीबी हुआ करते थे। परंतु जैसे ही प्रकाश सिंह बादल ने अपने बेटे सुखबीर को आगे बढ़ाना शुरू किया भतीजे का मन खट्टा होने लगा। मनप्रीत को यह बात हजम नहीं हुई और उन्होंने शिरोमणि आकाली दल छोड़कर नयी पार्टी पीपीपी अर्थात पिपल्स पार्टी ऑफ पंजाब बना ली। इस तरह मनप्रीत ने काका के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। हालांकि सुखवीर सिंह ने मनप्रीत से शिरोमणी अकाली दल में वापस लौट आने की अपील की लेकिन अपनी उपेक्षा से आहत मनप्रीत किसी भी हालत में वापसी के लिए तैयार नहीं हुए।
तमिलनाडु में डीएमके पार्टी के सर्वेसर्वा करु णानिधि का सितारा फिलहाल गर्दिश में है। टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले ने करु णानिधि को मुश्किल में डाल दिया है। करु णानिधि की बेटी कनीमोझी जेल का सफर कर आयीं। यह वह घोटाला है जिसके कारण ए राजा को मंत्री पद छोड़ना पड़ा तथा दयानिधि मारन को भी सत्ता गंवानी पड़ी। दयानिधि मारन करु णानिधि के भतीजे नहीं हैं लेकिन भतीजे के पुत्र जरूर हैं। करुणानिधि के भतीजे थे स्व. मुरासोली मारन जो वी.पी. सिंह, देवेगौड़ा, आई. के. गुजराल और वाजपेयी सरकार में केंद्रीयमंत्री रह चुके हैं। करु णानिधि के भतीजे के बेटे दयानिधि और कलानिधि हमेशा साथ रहे हैं। कलानिधि सन टी.वी. के 20 चैनल तथा 45 एफ.एम. रेडियो स्टेशन चलाते हैं। जाहिर है दयानिधि मारन की राजनीतिक सक्रि यता में ये टी.वी. चैनल तथा रेडियो स्टेशन काफी मददगार हैं। संबंध भले ही अच्छे रहे हों लेकिन दयानिधि मारन के कारण करु णानिधि को काफी जिल्लत झेलनी पड़ी है। यहां भी वही कहानी है करु णानिधि अपनी बेटी कनीमोझी को दयानिधि से ज्यादा महत्व दे रहे हैं, जो विवाद का कारण बनता जा रहा है। 

यदि बात गांधी परिवार की की जाये तो वरु ण गांधी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। भाजपा का यह तेज तर्रार नेता स्व. राजीव गांधी का भतीजा है। पिता संजय गांधी का जब विमान दुर्घटना में निधन हो गया था उस वक्त वरु ण मात्र तीन महीने के थे। संजय गांधी की मृत्यु के बाद गांधी परिवार में फूट पड़ गयी। परिणाम हुआ मेनका गांधी अपने बेटे वरु ण को लेकर अलग हो गयीं। जिस वक्त इंदिरा गांधी की हत्या हुई,उस वक्त वरु ण गांधी मात्र चार साल के थे। जैसे-जैसे वरुण बड़े होते गये काका परिवार से दूरियां भी उतनी ही बढ़ती चली गयी। भाजपा के टिकट पर वरु ण ने पीलीभीत लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीता भी। बहरहाल वरु ण भाजपा में अपने तीखे तेवरों व उग्र भाषणों के लिए जाने जाते हैं।
भतीजों की चर्चा के बीच एक और भतीजे के बारे में यहां बताना समीचीन होगा। यह है पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भतीजा आकाश बनर्जी।  पिछले दिनों अपने मित्रो के साथ कार में जा रहा था। खिदिरपुर क्रासिंग पर तैनात एक ट्रैफिक पुलिस का जवान ट्रैफिक नियमों को भंग करने पर कार रोककर जब पूछताछ करने लगा तो आकाश को यह बात नागवार गुजरी। चूंकि बुआ राज्य की मुख्यमंत्री बन चुकी थी सो सत्ता के नशे में उसने खुद को मुख्यमंत्री का भतीजा बताते हुए पुलिस वाले को  जोरदार तमाचा जड़ दिया। किसी तरह इस मामले की खबर मीडिया को लग गयी। बस क्या था खबर मीडिया में प्रसारित होते ही मामले ने तूल पकड़ लिया। अंत में खुद ममता बनर्जी को अपने इस भतीजे की गिरफ्तारी का आदेश देकर अपनी इज्जत बचानी पड़ी।
इसी तरह भाजपा की तेज-तर्रार नेत्री, मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और फिलहाल गंगा बचाओ अभियान की प्रभारी साध्वी उमा भारती के भतीजे सिद्धार्थ सिंह (लोधी) भले ही कोई बड़ा नाम नहीं हों लेकिन भतीजे होने का रौब तो वे गालिब करते ही रहे है। भाजपा छोड़कर उमा भारती ने जब भारतीय जनशक्ति पार्टी का गठन किया था तभी से भतीजे सिद्धार्थ का राजनैतिक हस्तक्षेप इतना बढ़ता चला गया कि कई बार खुद साध्वी भी मुश्किल में पड़ती नजर आयीं।

  अजित पवार : राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की राजनीति में अजित पवार का कद कितना बड़ा है,यह इसी से समझा जा सकता है कि सिंचाई घोटाले के आरोप में उपमुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद उनकी पार्टी के तमाम विधायकों व मंत्रियों ने सामूहिक इस्तीफा देने का निर्णय कर लिया था। वह अकेले ऐसे नेता हैं जिन्हें महाराष्ट्र में एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार से भी बड़ा नेता माना जाता है। अगर यह कहें कि महाराष्ट्र में एनसीपी की राजनीति अजित पवार  की बदौलत चलती है तो यह गलत नहीं होगा। महाराष्ट्र के सिंचाई मंत्री रहते हुए उन्होंने जून से अगस्त 2009 अर्थात मात्र तीन महीने के अंदर ही 20 हजार करोड़ रु पये वाले 32 प्रोजेक्टों को अंधाधुंध पास कर दिया। इस आपाधापी में जमकर जरूरी कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ। सबसे दुखद तो यह है कि महाराष्ट्र के इस कद्दावर नेता ने सिंचाई के सबसे बड़े घोटालों को जिस समय अंजाम दिया उसी समय महाराष्ट्र के विदर्भ में सबसे ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की।

 राज ठाकरे : सामान्यतया बाल ठाकरे का स्वाभाविक उत्तराधिकारी भतीजे राज ठाकरे को माना जाता था, पर जैसे ही शिवसेना सुप्रीमो ने अपने पुत्र उद्धव ठाकरे को तरजीह देनी शुरू की राज ठाकरे ने बगावती तेवर अपना लिए। शिवसेना से अलग होकर उन्होंने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन कर लिया। चाचा बाल ठाकरे ने दक्षिण भारतीयों का विरोध कर अपनी राजनीति चमकायी थी, तो राज ठाकरे के निशाने पर उत्तर भारतीय हैं। आये दिन मनसे के कार्यकर्ता उत्तर भारतीयों पर कहर बरपाते रहते हैं। दरअसल, राज ठाकरे घृणा की इस राजनीति की बदौलत मराठी वोटों पर अपना दावा पेश करते हुए शिवसेना की जड़ों में मट्ठा डालने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं।


आकाश बनर्जी : सत्ता का नशा जब सिर चढ़कर बोलता है, तो कोई किसी को नहीं गुनता फिर, भला पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे इसके अपवाद कैसे हो सकते हैं? कार चला रहे आकाश को ट्रैफिक नियम भंग करने पर ट्रैफिक पुलिस द्वारा रोका जाना नागवार गुजरा और उसने जड़ दिया ट्रैफिक कर्मी को तमाचा। चूंकि बुआ राज्य की मुख्यमंत्री बन चुकी थी सो बेचारा ट्रैफिक कर्मी मन मसोस कर रह गया, पर किसी तरह इस मामले की खबर मीडिया को लग गयी। बस क्या था मामले ने तूल पकड़ लिया। अंत में खुद ममता बनर्जी को अपने इस भतीजे की गिरफ्तारी का आदेश देकर अपनी इज्जत बचानी पड़ी।  


धर्मेंद्र यादव : भतीजों की शृंखला में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेंद्र यादव का जिक्र न हो, तो यह उनके साथ घोर नाइंसाफी होगी। नेताजी के इस भतीजे का जलवा सरकार व पार्टी में देखने लायक है। मजाल क्या कि कोई इनके सामने चूं कर सके। नेताजी के लिए भतीजे धर्मेंद्र कितनी अहमियत रखते हैं। यह इसी से जाना जा सकता है कि धर्मेंद्र को बदायूं लोकसभा सीट से संसद में भेजने के लिए नेताजी ने अपने एक ऐसे साथी की बलि ले ली जो लगातार यहां से पांच बार जीत दर्ज कर चुके थे। ये साथी थे समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता सलीम शेरवानी। समाजवादी पार्टी को खड़ा करने में शेरवानी का जो योगदान था उसे भी भतीजे के प्रेम में पड़े नेताजी ने भुला दिया था। इससे नाराज शेरवानी ने सदा सदा के लिए सपा को अलविदा कह दिया। 


वरुण गांधी : पीलीभीत लोकसभा सीट से चुने गये भाजपाई गांधी स्व. प्रधानमंत्री राजीव गांधी के भतीजे हैं। उग्र हिंदुत्व के हिमायती वरुण गांधी अपने तीखे तेवरों व भाषणों के लिए जाने जाते हैं। अपने इन्हीं तेवरों की वजह से वे युवाओं में खासा लोकप्रिय हैं। हालांकि एक समुदाय विशेष के खिलाफ दिये गये उनके उग्र भाषण ने उन्हें जेल तक पहुंचा दिया था। पिता संजय गांधी की प्लेन दुर्घटना में जिस वक्त मौत हुई थी उस समय वरुण महज तीन महीने के थे और दादी की हत्या के समय उनकी उम्र चार साल थी। बहरहाल, अपने चचेरे भाई राहुल गांधी की बनिस्बत संसद में भी उन्होंने कई मुद्दों पर खुलकर अपने विचार व्यक्त किये हैं।

मनप्रीत सिंह बादल : प्रकाश सिंह बादल पंजाब के मुख्यमंत्री हैं और उनके बेटे सुखवीर सिंह बादल उपमुख्यमंत्री होने के साथ ही साथ शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष भी हैं। एक समय था जब मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के भतीजे मनप्रीत सिंह बादल अपने काका के बहुत करीबी हुआ करते थे, परंतु जैसे ही प्रकाश सिंह बादल ने अपने बेटे सुखबीर को आगे बढ़ाना शुरू किया भतीजे का मन खट्टा होने लगा। मनप्रीत को यह बात हजम नहीं हुई और उन्होंने शिरोमणि अकाली दल छोड़कर नयी पार्टी पीपीपी अर्थात पिपल्स पार्टी ऑफ पंजाब बना ली और काका के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। हालांकि सुखवीर सिंह ने मनप्रीत से शिरोमणि अकाली दल में वापस लौट आने की अपील की लेकिन अपनी उपेक्षा से आहत मनप्रीत किसी भी हालत में वापसी के लिए तैयार नहीं हुए। बहरहाल, गत विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपना उम्मीदवार भी उतारा पर कुछ खास कमाल नहीं कर पाये। बावजूद इसके कि कांग्रेस का भी उन्हें अपरोक्ष समर्थन हासिल था।

दयानिधि मारन : टू जी घोटाले में नाम आने के बाद तत्कालीन कपड़ा मंत्री दयानिधि मारन को पिछले साल जुलाई में मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। उन पर आरोप था कि टेलिकॉम मंत्री रहते हुए उन्होंने एयरसेल के सी शिवशंकरन पर मलेशिया के मैक्सिम ग्रुप को कंपनी का हिस्सा बेचने के लिए दबाव बनाया। इसी के साथ मारन ने एयरसेल की कई सर्कलों का लाइसेंस देने का फैसला लटका रखा था।
दयानिधि मारन करु णानिधि के भतीजे नहीं हैं लेकिन भतीजे के पुत्र जरूर हैं। करुणानिधि के भतीजे थे स्व. मुरासोली मारन जो वी.पी. सिंह, देवेगौड़ा, आई. के. गुजराल और वाजपेयी सरकार में केंद्रीयमंत्री रह चुके हैं। उन्हीं मरासोली के बेटे दयानिधि और कलानिधि हैं। कलानिधि सन टी.वी. के 20 चैनल तथा 45 एफ.एम. रेडियो स्टेशन चलाते हैं। जाहिर है दयानिधि मारन की राजनीतिक सक्रि यता में ये टी.वी. चैनल तथा रेडियो स्टेशन काफी मददगार हैं। करु णानिधि का अपनी बेटी कनीमोझी को दयानिधि से ज्यादा महत्व दिया जाना पारिवारिक फूट का कारण बनता जा रहा है

 सिद्धार्थ सिंह (लोधी) : मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और फिलहाल गंगा बचाओ अभियान की प्रभारी साध्वी उमा भारती के भतीजे सिद्धार्थ सिंह (लोधी) भले ही कोई बड़ा नाम नहीं हों लेकिन भतीजे होने का रौब तो वे गालिब करते ही रहे हैं। वे उमा भारती के दूसरे भाई हर्बल सिंह के बेटे हैं। भारती के केंद्रीय खेलमंत्री रहते समय बनी एक संस्था को केंद्रीय अनुदान मिला। उस वक्त आरोप लगा कि सिद्धार्थ ने संस्था के करीब 45 लाख रुपये गलत ढंग से निकाल लिए। इस संबंध में एक व्यक्ति की गिरफ्तारी भी हुई हालांकि सिद्धार्थ के खिलाफ मामला दर्ज नहीं हुआ। इस मामले की गूंज मध्य प्रदेश विधानसभा में भी सुनायी दी थी। भाजपा छोड़कर उमा भारती ने जब भारतीय जनशक्ति पार्टी का गठन किया उस समय भतीजे सिद्धार्थ का राजनैतिक हस्तक्षेप इतना बढ़ता चला गया कि कई बार खुद साध्वी भी मुश्किल में पड़ती नजर आयीं। एक बार तो खुद उमा भारती के बड़े भाई स्वामी प्रसाद लोधी ने सिद्धार्थ पर आरोप लगाया था कि वह अपने पिता को टिकट देने के लिए उमा पर बेजा दबाव बढ़ा रहे हैं।