शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

फतवे : हंसी भी कोफ्त भी


राष्ट्रीय साप्ताहिक इतवार में प्रकाशित

दिल्ली के आसपास के इलाके पश्चिमी उत्तर प्रदेश व हरियाणा तथा राजस्थान में खाप पंचायतें अक्सर सरकार के समानांतर अपनी सत्ता का एहसास कराती रहती हैं। कभी किसी को मौत की सजा सुनाकर तो कभी पति पत्नी को भाई बहन बताकर। इस पर हो हल्ला भी मचता है पर वह अपनी मदमस्त चाल चलती रहती हैं। इन दिनों इन पंचायतों के दो फैसले या फतवे जो भी कह लें चर्चा में हैं। एक समाज को अंधी सुरंग की ओर ले जाने वाला है तो दूसरा है समाज को सही दिशा देने वाला। बागपत जिले में जहां 40 वर्ष तक की महिलाओं के बाजार जाने व मोबाइल के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, वहीं अक्सर तालिबानी फैसलों के लिए बदनाम रही खाप पंचायतों का एक निर्णय भोर की पहली किरण सी सुखद प्रतीत हो रही है। कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ खाप पंचायतों का सामूहिक निर्णय सचमुच समाज को सही दिशा में ले जाने वाला साबित हो सकता है। बशर्ते इस पर अमल हो।
हममें से अधिकतर लोगों ने 'फतवा शब्द पहली बार लगभग बीस साल पहले सुना होगा। तब बहुतों को इसका मतलब भी नहीं पता था कि आखिर फतवा होता क्या है। दरअसल, यह फतवा जारी हुआ था 'द सैटेनिक वर्सेस के लेखक सलमान रुश्दी के खिलाफ। जारी किया था ईरान के अयातुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी ने। 14 फरवरी 1989 को जारी फतवे के अनुसार रुश्दी की हत्या करने वाले को इनाम देने की घोषणा की गई थी। बहरहाल उस फतवे के खिलाफ उठी विरोध की आंधी अब पूरी तरह से थम चुकी है, पर अफसोस कि दुनिया को आज भी इस शब्द से जूझना पड़ रहा है।
जब खुमैनी ने फतवा जारी किया था तो आम भारतीय को यह तक नहीं पता था कि फतवा लिखित रूप से जारी होता है या मौखिक होता है। यहां तक कि उस वक्त तक डिक्शनरी तक में इस शब्द का उल्लेख नहीं था। हालांकि आज की आक्सफोर्ड डिक्शनरी में फतवा शब्द को इस्लामी कानून के मुताबिक एक अधिकारिक आदेश के रूप में परिभाषित किया गया है।
जिस तरह से यह व्याख्या चुस्त दिखाई देती है, उस हिसाब से हर किसी मुद्दे पर फतवा जारी करने की प्रकिया चुस्त नहीं लगती। मौलानाओं द्वारा जारी किए जाने वाले कुछ फतवे जहां समाज का मार्गदर्शन करते हैं वहीं कुछ बेहद हास्यास्पद व उलजुलूल होते हैं। अभी हाल ही में देवबंद ने एक फतवा जारी किया कि नशे में भी फोन पर तीन बार तलाक कहने से तलाक मुकम्मल माना जाएगा और उस हालात में शौहर के लिये उसकी बीवी हराम हो जाती है। ऐसे में यदि पति पत्नी दोबारा एक साथ रहना चाहें तो पत्नी को इद्दत के दिन पूरे करने के बाद किसी दूसरे मर्द से शादी करनी होगी और फिर उससे तलाक लेकर दोबारा इद्दत पूरी करने के बाद ही वह अपने पहले शौहर से निकाह कर सकती है। दारुल उलूम देवबंद के इस फतवे के बाद मुस्लिम समुदाय में हड़कंप मच गया। कुछ संगठनों ने इसे गलत करार दिया लेकिन देवबंद के प्रमुख इसे सही मानते हैं। फतवे के अनुसार यहां तक तो फिर भी ठीक है लेकिन कुछ ऐसे भी फतवे जारी हुए। जिन्हें पढ़ सुनकर फतवा जारी करने वालों की सोच पर या तो हंसी आती है या फिर कोफ्त होती है।
हमारे ही देश में नहीं बल्कि दुनिया के अन्य मुल्कों में भी आए दिन कोई न कोई फतवा जारी होता रहता है। इनमें से कुछ ऐसे होते हैं जो शरीर में सिहरन पैदा कर देते हैं तो कुछ ऐसे जिन पर हंसी आती है या फिर कोफ्त होता है। फतवे जारी करने का अपना एक नियम है। इसे कौन जारी कर सकता है इसका बाकायदा दिशा निर्देश है। बावजूद इसके अजीबोगरीब फतवे देने का सिलसिला चलता रहता है। इन फतवों को पढ़ सुनकर सर पीट लेने को जी करता है। अभी हाल ही में मिश्र में एक मौलवी ने फतवा जारी किया कि जो मुस्लिम महिलाएं नौकरी पेशा हैं वे अपने युवा सहकर्मियों को अपना स्तनपान कराए। उक्त मौलवी का तर्क था कि ऐसा करने से व्यभिचार पर रोक लगेगा। स्तनपान कराने से पुरुष सहकर्मी व महिला में मां-बेटे का भाव पैदा होगा। शारीरिक आकर्षण में कमी आएगी और अवैध रिश्ते नहीं पनपेंगे। जबकि सच तो यह है कि ऐसे फतवे व्यभिचार को ही बढ़ाएंगे।
जब एक औरत गैर मर्द को अपने स्तन का स्पर्श कराएगी तो उसमें केवल कामुक भावनाएं ही पनपेगी। इसे महिला अस्मिता पर चोट ही माना गया। इस फतवे पर सवालों की बौछार होने लगी कि क्या मुस्लिम महिलाएं अन्य धर्मों के सहकर्मियों को भी अपना दूध पिलायेंगी? इसी तरह का एक उलजूलूल फतवा ब्रिटेन के एक मौलवी ने भी जारी कर दिया। इस फतवे के अनुसार मुस्लिम महिलाओं को केले व खीरे, मूली, गाजर तथा अन्य इस तरह के फलों व सब्जियों का सेवन करने से बचने को कहा गया। फतवे में कहा गया कि महिलाएं न तो इसे खरीदें और ना ही इनका सेवन करें। यदि खाना ही हो तो घर का कोई पुरुष सदस्य इन्हें छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर औरतों को दे। इसके पीछे वजह यह बताई गई कि ये सारे फल व सब्जियां पुरुष जननांग की तरह दिखते हैं। इनको देखने से स्त्रियों में कामुक भावनाएं उत्पन्न होगी। जबकि हकीकत तो यह है कि किसी भी फल या सब्जी को खरीदते समय मनुष्य का ध्यान उसके स्वाद पर जाता है न कि उनका आकार कैसा है इस पर। इसे लेकर भी खूब बावेला मचा।
यहां एक और ऐसे ही हास्यास्पद फतवे का जिक्र करना समीचीन होगा। इस फतवे में कहा गया कि महिलाएं ब्रा व पैंटी न पहनें। तर्क था कि ब्रा पहनने से जहां स्तन के विकास में बाधा पहुंचती है वहीं पैंटी पहनने से स्त्रियां खुद को कामुक अनुभव करती हैं। सोमालिया में तो कुछ मुस्लिम चरमपंथी संगठन इस फतवे को लागू कराने के लिए सड़क पर भी उतर आए। ऐसे संगठनों के कार्यकर्ताओं ने सरेराह कुछ महिलाओं के बुर्के उतरवाकर जांचा कि कहीं वह ब्रा और पैंटी तो नहीं पहने हुए हैं। जो महिलाएं ब्रा और पैंटी पहने इन धर्म के ठेकेदारों के हाथ लगी उनके साथ बेहद अमानवीय व्यवहार किया गया। यहां तक कि उनको कोड़े भी लगाए गए।
आज सारी दुनिया जहां योग के माध्यम से स्वास्थ्य लाभ कर रही है, वहीं पिछले दिनों इंडोनेशिया में योग के खिलाफ फतवा जारी किया गया। कहा गया कि मुस्लिम धर्मावलंबी योग न करें क्योंकि इसमें हिंदू धर्म की कुछ पूजा पद्धति का समावेश है। हालांकि लोगों ने इसे नकार दिया। इसी तरह वर्ष 2002 में नाइजीरिया में एक पत्रकार के खिलाफ फतवा जारी किया गया। उसके बाद भड़की हिंसा में 200 से भी अधिक लोग मारे गए थे।

बद्रीनाथ वर्मा 9718389836



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