शुक्रवार, 17 अगस्त 2012

ठंडी हवा का झोंका


हाजिर- नाजिर

 इंट्रो : म्हारी जात को मिटण कोनी द्यां के उद्घोष के साथ महिलाओं की पहल पर महाखाप पंचायत की मुहर एक सुखद अहसास कराती है। आम तौर पर तालिबानी फैसलों के लिए बदनाम रहीं खाप पंचायतों का कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ लिया गया निर्णय समाज को सही दिशा देने वाला है

हरियाणा के जींद जिले के बीबीपुर गांव से कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ जो लौ जली है उसकी रौशनी निश्चय ही अन्य जगहों को भी रौशन करेगी।
अजन्मी बेटियों को गर्भ में ही मार देने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए  सर्वखाप का यह सकारात्मक फैसला भोर की पहली किरण की मानिंद सुखद अनुभूति कराता है। इस फैसले के साथ ही खौफ का पर्याय बन चुकी या बना दी गई खाप पंचायतों का एक नया चेहरा देश दुनिया के सामने आया है। इसके पहले खाप पंचायतें नकारात्मक कारणों से चर्चित होती रही हैं। रोंगटे खड़े कर देने वाले उनके पूर्व के फैसलों ने उनकी छवि खुर्राट जालिम जैसी बना रखी थी। पर समाज को सही दिशा देने वाला उनका एक निर्णय ठंडी हवा के झोंके जैसा रहा। इस निर्णय के तहत कन्या भ्रूण हत्या को घिनौनी हरकत व महापाप करार देते हुए ऐसा करने वालों के खिलाफ हत्या का मुकदमा चलाने की मांग सरकार से की गई। निश्चय ही महाखाप पंचायत का यह निर्णय गर्भ में मारी जा रही बेटियों की जीवन रक्षा में सहायक होगा। महाखाप पंचायत के इस निर्णय की जितनी भी प्रशंसा की जाय। कम ही है।
म्हारो जात को मिटण कोनी द्यां (अपनी स्त्री जाति को मिटने नहीं देंगी)के उद्घोष के साथ बीबीपुर गांव की महिलाओं ने जो पहल की उस पर महाखाप पंचायत ने भी अपनी स्वीकृति की मुहर लगाकर अपनी सकारात्मक छवि पेश की है। इस पहल को मंजिल तक पहुंचाने में बीबीपुर गांव के सरपंच सुनील जागलान ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। खाप महापंचायत में मौजूद 150 खापों के प्रतिनिधियों ने एक स्वर से केंद्र सरकार से ऐसा कानून बनाने की मांग की ताकि कन्या भ्रूण हत्या के आरोपियों के खिलाफ कत्ल का मुकदमा चलाया जा सके। खाप पंचायत ने कहा कि कन्या भ्रूण हत्या महापाप है और आगे से यह बर्दाश्त नहीं होगा।
यूं तो खाप पंचायते ऑनर किलिंग को लेकर कुख्यात रही हैं। कभी सगोत्री विवाह के नाम पर पति पत्नी को भाई बहन बना देती रही हैं तो कभी दूसरे जाति में विवाह करने की सजा मौत के रूप में सुनाती रही हैं। ऐसे एक के बाद एक खाप पंचायतों के निर्णय ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। खाप पंचायतों का नाम सुनते ही लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते थे। शरीर में सिहरन दौड़ जाती थी। पर कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ लिए गए सख्त निर्णय ने खाप पंचायतों की छवि ही बदल दी है। निश्चय ही यह फैसला सुकून देने वाला है। हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अजन्मी बेटियों के हक में सकारात्मक आवाज उठाने वाले बीबीपुर गांव के विकास के लिए एक करोड़ रुपये का ऐलान किया है।
हुड्डा ने जींद जिले के बीबीपुर गांव के लिए इस राशि का ऐलान इसलिए किया है क्योंकि इसके निवासियों, विशेषकर महिलाओं ने कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ आवाज उठाने की पहल की। हुड्डा के मुताबिक, गांव वालों की इस पहल से न सिर्फ हरियाणा, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में सकारात्मक सामाजिक बदलाव लाने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए कदम उठाकर खाप पंचायत देश में सकारात्मक बदलाव लाने में सामाजिक संस्थाओं की अहमियत को दिखा सकती हैं। बीबीपुर में संपन्न खाप महापंचायत में पहली बार महिलाओं की बड़ी संख्या में भागीदारी देखी गई। तय हुआ कि इस व्यापक सामाजिक बुराई के खिलाफ अभियान छेड़ा जाएगा।
दरअसल, भ्रूणहत्या के लिए हमारा सामाजिक ताना बाना भी कम जिम्मेदार नहीं है। यह बात भले ही सुनने में भली लगती हो कि बेटे-बेटी में कोई फर्क नहीं होता। दोनों बराबर हैं। पर वास्तविकता तो यह है कि हर किसी को बेटा ही चाहिए। इसके पीछे हमारी रूढ़ीवादी मानसिकता ही है। कहा जाता है कि बेटे के हाथों अग्निदाह होने से मुुक्ति मिल जाती है। ऐसे में सबके मन में एक बेटे की इच्छा होती है, जबकि बेटियों को पालना घाटे के सौदे की तरह देखा जाता है। इसकी प्रमुख वजह दहेज प्रथा है। दहेज को समाज में प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाने लगा है। समाज का कैंसर बन चुकी दहेज प्रथा बेटियों को जन्म देने से रोकती है। आज भी लोगों में यह गलत धारणा विद्यमान है कि बेटे ही कुल को तारते हैं। परिवार का नाम उनसे रौशन होता है। जबकि हकीकत यह है कि आज लड़कियां लड़कों से किसी भी मामले में कमतर नहीं हैं। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि बेटियां पैदा होने के बाद भी पुरुष प्रधान समाज इनके पालन-पोषण में फर्क करता है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक़ पैदा होने से एक साल की उम्र तक, बेटों के मुक़ाबले बेटियों के मर जाने की दर 40 फ़ीसदी ज़्यादा है। वहीं पहले और पांचवे वर्ष की उम्र में तो ये और भी ज़्यादा, 61 फीसदी है।
 यह चौंकाने वाला है कि हरियाणा में प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या बहुत कम है। जहां देश में प्रति 1000 पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या औसतन 911 है वहीं हरियाणा में ये आंकड़ा 877 है।  जनगणना-2011 के मुताबिक झज्जर जिले में लड़कों के मुक़ाबले लड़कियों का अनुपात देश में सबसे कम है। यहां एक हजार लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या महज 774 ही हैं। इसकी मुख्य वजह गर्भ में ही बेटियों को मार दिया जाना है। महापंचायत के अनुसार, पूरे देश में बेटियों को बचाने के लिए मुहिम चलाई जाएगी और यह संदेश पूरे देश में फैलाया जाएगा। करीब 150 खापों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। आमतौर पर खाप पंचायतें अपने नकारात्मक फैसलों की वजह से बदनाम होती आई हैं। ऐसे में यह फैसला उसकी छवि के एकदम विपरीत है। अंत में किसी कवि की ये चार पंक्तियां
मिट्टी की खुशबू-सी होती हैं बेटियां।
घर की राज़दार होती हैं बेटियां।
रोशन करेगा बेटा तो बस एक कुल को।
दो-दो कुलों की लाज होती हैं बेटियां।।
सूरज की तपन होती हैं बेटियां।
चंदा की शीतल मुस्कुराहट होती हैं बेटियां।।                    बद्रीनाथ वर्मा 9716389836


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