गुरुवार, 27 जून 2013

आगे की राह कठिन है नीतीश के लिए

                               बद्रीनाथ वर्मा
बीजेपी के साथ गठबंधन खत्म करने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार विधानसभा में विश्वासमत हासिल कर अभी तो उन्होंने अपनी सरकार बचा ली पर आगे का रास्ता उतना निरापद नहीं होगा। कल तक एक दूसरे की गलबहियां डाले नीतीश व जेडीयू के बीच बिहार बंद के दौरान चली लाठियां इसकी बानगी है। 19 जून को बिहार विधानसभा में नीतीश कुमार द्वार पेश विश्वासमत के पक्ष में 126 वोट, जबकि विरोध में 24 वोट पड़े। नीतीश पर डोरे डाल रही कांग्रेस ने राज्य में सत्तासीन जेडीयू के पक्ष में मतदान किया हालांकि नीतीश के पक्ष में मतदान करने के लिए चार निर्दलीय विधायक पहले से ही तैयार हो गए थे।
बिहार में बदली हुई राजनीतिक परिस्थिति में विधानसभा का नजारा भी बदल गया है । पिछले सत्र तक सत्तापक्ष के साथ सदन में बैठे भाजपा के विधायक अब मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में है। प्रतिपक्ष के नेता का पद भी अब राष्ट्रीय जनता दल की बजाए भाजपा के पास है।
वहीं विधानसभा में नेता विरोधीदल बने नंदकिशोर यादव के नेतृत्व में नीतीश सरकार के विश्वासमत प्रस्ताव पेश करने के बाद बीजेपी विधायकों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर एनडीए को मिले जनादेश के साथ छल करने का आरोप लगाते हुए सदन से वॉकआउट कर दिया। बीजेपी विधायक दल के नेता नंदकिशोर यादव ने सदन में कहा, हम जानते हैं कि आपने विश्वासमत हासिल करने के लिए बहुमत जुटा लिया है.. हम वॉकआउट कर रहे हैं। नंदकिशोर यादव की घोषणा के बाद बीजेपी विधायक सदन से बाहर चले गए। उस समय नीतीश कुमार सरकार द्वारा पेश किए गए विश्वासमत पर चर्चा हो रही थी।
विधानसभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा पेश विश्वास मत के प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान भाजपा और प्रतिपक्ष के नेता नंद किशोर यादव ने कहा कि नीतीश सरकार ने कांग्रेस की 'जुगाड़ तकनीक' से बहुमत जुटा लिया है
इसलिए सदन में इस पर मतदान की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने नीतीश कुमार पर दोहरा मापदंड अपनाने और सुविधा की राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कहा कि श्री कुमार ने जिस तरह की छवि मीडिया के जरिये प्रसारित किया हैं उससे भाजपा और बिहार की जनता को उम्मीद थी कि नीतीश पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के नेता और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते और फिर से जद यू विधायक दल का नेता चुन कर मुख्यमंत्री पद की जिम्मेवारी संभालतें।
सदन की कार्यवाही शुरू होते ही भाजपा के विधायकों ने जय श्री राम और नरेंद्र मोदी जिंदाबाद के नारे लगाए। इससे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने विपक्ष के नेता के तौर पर भाजपा के नेता नंद किशोर यादव के नाम की घोषणा की। गौरतलब है कि 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में जदयू के 118 विधायक है और उसे बहुमत का जादुई आंकड़ 122 प्राप्त करने के लिए मात्र चार विधायकों की ही जरूरत है। विधानसभा में भाजपा के 91, राष्ट्रीय जनता दल के 22, कांग्रेस के 4 और लोक जनशक्ति पार्टी तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के एक-एक और 6 निर्दलीय विधायक है।
निर्दलीय विधायकों में से ओबरा के सोमप्रकाश, लौरिया के विनय बिहारी, ढाका के पवन कुमार जायसवाल और बलरामपुर के दुलालचंद गोस्वामी ने नीतीश सरकार के पक्ष में वोट दिया। राजद ने विश्वासमत के खिलाफ वोट दिया। विपक्ष में 24 वोट पड़े। विश्‍वास मत हासिल करने के दौरान नीतीश कुमार ने बीजेपी पर शब्‍दों के तीर चलाते हुए कहा, 'विश्‍वासघात दिवस' मनाने के दौरान जिस तरीके का व्‍यवहार हुआ और जैसी घटनाएं हुईं उससे तो यही लगा चलो अच्‍छा हुआ, हम अलग हो गए। नीतीश कुमार ने बीजेपी को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि बिहार की उपलब्धियों पर इनको नाज नहीं था। बिहार के विकास का जो मॉडल है वह समाज को साथ लेकर चलने की प्रवृत्ति है. उन्‍होंने कहा, 'अपने विकास मॉडल में हमने कानून का राज कायम किया. इसमें हमने समाज के वंचित तबके को आगे बढ़ाने का काम किया. हमारा कार्यक्रम समावेशी है. इससे किसी की आलोचना कैसे हो सकती है? इसमें किसी को परेशानी क्‍यों होने लगी?'
नरेंद्र मोदी का नाम लिए बिना नीतीश ने अपने भाषण के दौरान कई बार उन पर हमला किया. उनके मुताबिक, 'हमने तो कहा कि देश का नेतृत्‍व ऐसे लोगों के हाथ में हो जो देश के सभी वर्गों को साथ लेकर चल सके. हमने अटल की कार्य शैली की बात की. इसे भी लोगों ने मान लिया कि हमने किसी के खिलाफ बोला.'
उन्‍होंने कहा, 'जब साथ छूटा तो लोग बिहार की जनता का नारा तो नहीं लगा रहे थे... नारा सुशील मोदी का तो लगा नहीं रहे थे... नारा किसी और का लगा रहे थे। मैंने तो पहले ही कहा था कि बाहरी लोगों का हस्‍तक्षेप काफी बढ़ गया है और यही कारण है कि हम साथ नहीं चल सकते।
नीतीश कुमार ने 2003 में रेलमंत्री के तौर पर अपने गुजरात दौरे का भी जिक्र किया और कहा, 'हम रेलमंत्री के तौर पर गए थे गुजरात. मैंने तो उस समय भी कहा था कि गुजरात पर एक काला धब्‍बा लगा है. बीजेपी के लोगों को वह भाषण फिर से सुन लेना चाहिए जिसका कुछ अंश अब लोगों को सुना रहे हैं। मोदी का नाम लिए बिना नीतीश ने कहा, '2005 में नया बिहार का नारा दिया गया था. वह नारा मेरे नाम को जोड़ कर दिया गया था. उस समय बीजेपी ने (मोदी को) क्‍यों नहीं बुलाया. 2009 में क्‍यों नहीं बुलाया गया।
नीतीश कुमार ने कोसी आपदा के समय का जिक्र किया. उस दौरान नरेंद्र मोदी ने बिहार को सहायता भेजी थी, जिसे नीतीश ने वापस कर दिया था. इसका जिक्र करते हुए उन्‍होंने कहा, 'मैं तो 2010 में इस्‍तीफा देने के लिए बैठा हुआ था. आपदाग्रस्‍त राज्‍य को दूसरे राज्‍य मदद करते ही हैं, लेकिन जिस तरीके से उन्‍होंने (मोदी ने) इसका जिक्र किया वह उचित नहीं था।

अभी तो नीतीश कुमार ने विधानसभा में विश्वासमत हासिल कर अपनी सरकार बचा ली है पर आगे रास्ता कठिन है। उन्होंने एक तरह से जुआ ही खेला है। साढ़े सोलह फीसदी मुस्लिम वोटों के लोभ में अपने सत्रह साल पुराने साथी को छोड़ना कही उन पर भारी न पड़ जाए। कहीं ऐसा न हो कि अगड़े वोट तो हाथ से चले ही जाएं और मुस्लिम मत भी न मिले। ऐसे में जद (यू) के पास अब दो ही रास्ते हैं। वह क्षेत्रीय दलों के प्रस्तावित फेडरल फ्रंट के लिए कोशिश करे या फिर कांग्रेस के सहयोगी की भूमिका संभाले। राहुल गांधी के निकटस्थ नेताओं का एक समूह और कुछ असरदार कॉरपोरेट घराने नीतीश को कांग्रेस के नजदीक लाने की कोशिश में हैं, पर शरद यादव इस पहल को लेकर थोड़े असहज बताए जाते हैं। खूद जदयू सूत्रों का कहना है कि यदि शरद यादव की चली होती तो यह गठबंधन नहीं टूटता लेकिन खुद शरद यादव भी नीतीश के सहारे ही अपनी संसदीय सीट बचा पाते हैं ऐसे में वे नीतीश से इतर कुछ कर पाने की हैसियत में ही नहीं हैं। फेडरल फ्रंट की खिचड़ी की हांडी अभी चूल्हे पर चढ़ी नहीं। नीतीश को दोनों विकल्पों के लिए और इंतजार करना होगा। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें