सोमवार, 3 जून 2013

साजिश या शिगूफा !

बद्रीनाथ वर्मा

                    (राष्ट्रीय साप्ताहिक न्यू देहली पोस्ट में प्रकाशित)
क्या सुकमा की दरभा घाटी में हुए नक्सली हमले पर भी राजनीतिक रोटियां सिंकनी शुरू हो गई हैं, या सचमुच ही इस अब तक के सबसे बड़े हमले में कांग्रेसी हाथ है । मध्य प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने इसमें सीधे सीधे अजित जोगी का हाथ कहकर राजनीतिक बवंडर खड़ा कर दिया है।  बीजेपी राज्य कार्यकारिणी की बैठक में तोमर ने कहा कि हमले के बाद जिस तरह से जोगी रोते हुए अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे थे, उससे यह आशंका प्रबल होती है कि इस हमले में उन्हीं का हाथ है। बैठक राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव पर रणनीति तैयार करने के लिए बुलाई गई थी। यहां एक बात पर विशेष तौर पर गौर करना जरूरी है कि नक्सली हमले के तुरंत बाद न्यूज चैनलों पर अजित जोगी ने अपनी प्रतिक्रिया दी उससे साफ लगा कि उन्हें सत्ता प्राप्त करने की कितनी जल्दबाजी है। उन्हें ये फिक्र बिल्कुल नहीं थी कि इस नक्सली हमले में उनकी पार्टी के घायल साथियों की तबियत कैसी है, उनका इलाज कैसा चल रहा है। या फिर जंगल में फंसे लोगों को कैसे सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया जाए ? इसकी बजाय उनकी दिलचस्पी रमन सिंह के इस्तीफे में ज्यादा थी। उन्होंने तुरंत रमन सिंह से इस्तीफा देने की मांग की और नहीं देने पर राज्यपाल से उन्हें दो मिनट में बर्खास्त करने की अपील की। जोगी ने इल्जाम लगाया कि रमन सिंह ने अपनी विकास यात्रा में पूरी सुरक्षा झोंक दी, जबकि कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा में कोई सुरक्षा नहीं दी । जोगी कि इस बात में दम हो सकता है कि कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा में सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था ना रही हो, लेकिन मुख्यमंत्री बनने की जोगी का उतावलापन उन्हें शक के घेरे में जरूर लाता है । वैसे अजित जोगी काफी समय तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं,  कहा तो यहां तक जाता रहा है कि उनके  नक्सलियों से भी बहुत अच्छे संबंध हैं। ऐसे में शक की सुई तो उन पर टिकती ही है। अभी पिछले ही दिनों उनके बेटे अमित जोगी के एक बयान ने खूब सुर्खियां बटोरी थीं। उन्होंने भाजपा सरकार पर बरसते हुए कहा था कि बस्तर में ना तो प्राथमिक सुविधाएं हैं और ना ही आदिवासियों के इलाज की व्यवस्था। उनके पास ना तो रोजगार के संसाधन उपलब्ध हैं और ना ही आधारभूत सुविधाएं। ऐसे में वहां के आदिवासियों के सामने नक्सली बनने के अलावा और चारा बचता ही नहीं है। आज के समय में वे खुद भी अगर बस्तर में पैदा हुए होते तो शायद वे भी नक्सली ही होते। बहरहाल एक बात और उन्हें शक के घेरे में लाती है कि हमले के घंटे भर पहले हुई रैली में वे खुद भी मौजूद थे पर अचानक अपना इरादा बदल दिया और वहां से वापस आ गए। उन्होंने अपने पुत्र अमित जोगी को भी नहीं जाने दिया। ऐसे में जरूरी है कि उनकी भूमिका की भी बगैर किसी  पूर्वाग्रह के जांच हो। वैसे इस हमले के पीछे कांग्रेसी साजिश की बू सूंघ रहे राजनीतिक पंडितों की इस आशंका को इससे भी बल मिलता है कि जिस हमले में नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल व उनके बेटे दिनेश पटेल को नक्सलियों ने निर्दयता पूर्वक मार डाला वहीं कांग्रेसी विधायक कवासी लखमा को जिंदा छोड़ दिया। लखमा केवल मामूली रूप से घायल हुए थे। इस वजह से उन पर शक भी किया गया। हालांकि सच्चाई क्या है यह तो जांच के बाद ही पता चलेगी। पर इतना तो तय है कि मामले ने राजनीतिक रंग लेना शुरू कर दिया है। मध्य प्रदेश भाजपा अध्यक्ष द्वारा हमले के लिए साफ साफ अजित जोगी का नाम लेना दाल में कुछ काला है को दर्शाता है। यही नहीं उनकी बातों पर भाजपा महासचिव व मध्य प्रदेश के प्रभारी अनंत कुमार ने भी लगी दी है। उनका भी कहना है कि हमला कांग्रेसी साजिश का नतीजा है। खासकर अजित जोगी का।
शुरुआती जांच में एनआईए को भी हमले में साजिश की बू आ रही है। याद रहे इस नक्सली हमले में प्रदेश के अधिकतर कद्दावर नेता मारे जा चुके हैं। एकमात्र अजित जोगी ही ऐसे कद्दावर नेता हैं जो इस हमले में बच गये क्योंकि वे रैली खत्म होने के बाद अपने बेटे अमित जोगी के साथ हेलिकाप्टर से वापस आ गये थे। ऐसे में यदि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनती है तो अजित जोगी की राह रोकने वाला कोई बचा ही नहीं है। तोमर के आरोपों को निराधार बताते हुए अजित जोगी ने उन्हें मानहानि का एक नोटिस भिजवा दिया है। पूरे मामले पर जोगी का कहना है कि यह वक्त राजनीति करने का नहीं है। नरेंद्र तोमर के आरोप निराधार हैं और प्रशासन अपनी कमजोरी छिपाने के लिए इस तरह की बातों को हवा दे रहा है।
इस मामले की जांच कर रही राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने अपनी शुरुआती रिपोर्ट में हमले के पीछे किसी साजिश से इनकार नहीं किया है। इसके अलावा यह बात भी निकलकर सामने आ रही है कि कांग्रेस की परिवर्तन रैली के काफिले का रूट आखिरी समय में बदलकर दरभा घाटी की ओर किया गया था। गौरतलब है कि इस हमले में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं समेत कुल 29 लोगों की मौत हो गई थी।
हमले की प्रारंभिक जांच करने वाली सीआरपीएफ के सूत्रों के मुताबिक इस मामले में न सिर्फ सुरक्षा में चूक हुई, बल्कि सुरक्षा के नजरिए से कई घातक कदम भी उठाए गए। इस बात के भी पुख्ता संकेत हैं कि किसी के सुझाव पर आखिरी समय में काफिले का रूट बदला गया। एक अधिकारी ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि कांग्रेस की परिवर्तन रैली को स्वाभाविक तरीके से बड़े इलाके के कवर करते हुए दंतेवाड़ा के गडिरास से होकर आना था पर अचानक रूट बदलकर गरभा घाटी से जाने का प्लान कर दिया गया। जबकि परिवर्तन रैली दरभा घाटी के रूट से पहले ही जगदलपुर से सुकमा जाते हुए गुजर चुकी थी। यह साफ नहीं है कि यह रूट किसने किन कारणों से बदलवाया।रही बात सुरक्षा की तो छत्तीसगढ़ पुलिस को रैली के रूट्स की आधी-अधूरी जानकारी दी गई थी। पुलिस को रैली के जो रूट्स बताए गए, उसमें प्राथमिकता किसी को नहीं दी गई थी। उसमें बस इतना जिक्र था कि रैली जगदलपुर से सुकमा जाएगी और वापस आएगी।

सूत्रों के मुताबिक NIA रूट को अचानक बदले जाने की भी जांच कर रही है। एजेंसी इस बात की जांच कर रही थी कि क्या रूट को कम दूरी की वजह से समय बचाने के लिए बदला गया या फिर दूसरे रूट पर नक्सली गतिविधियों को हलचल की खबर थी। गौरतलब है कि दोनों रूट्स के बीच 50 किलोमीटर का अंतर है।
नक्सलियों ने इस हमले में 27 से 30 किलो विस्फोटकों का इस्तेमाल किया था। नैशनल सिक्युरिटी गार्ड ब्लास्ट अनैलेसिस टीम की फरेंसिक रिपोर्ट में यह बात कही है। यह रिपोर्ट एनआईए को सौंपी गई है। रिपोर्ट के मुताबिक नक्सलियों ने अमोनियम नाइट्रेट का इस्तेमाल किया। यही नहीं इलेक्ट्रॉनिक डिटोनेटर्स का भी इस्तेमाल किया गया।बहरहाल रोम जल रहा था और नीरो बंशी बजा रहा था, इसी को चरितार्थ किया है हमारे गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने। वे इतने बड़े नक्सली हमले के बाद भी अमेरिका में ही बने रहे। बहरहाल पांच दिनों बाद लौटने के बाद उन्होंने सफाई दी कि वे कहीं फरार नहीं हुए थे बल्कि पहले से ही
19 से 23 मई तक वहां सरकारी कार्यक्रम तय था। उसके बाद आंख का इलाज कराने के लिए 29 मई तक रुकने की मंजूरी ली थी।

सवालों के घेरे में जोगी
राजनीति संभावनाओं का खेल है। यहां चीजे हमेशा एक जैसी नही रहती हैं। उतार चढ़ाव आते जाते रहते है पर छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी के राजनीतिक जीवन में 2003 के बाद जो उतार आया वह अब तक जारी है। एक समय था जब मध्य प्रदेश से अलग हुए आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी के नाम का डंका बजता था। साथ ही उनकी गिनती दस जनपथ के खासमखास लोगो में होती थी जहां पर उनका सिक्का पूरी बेबाकी से चला करता था। उनके इकलौते बेटे अमित जोगी का नाम राकपा के महासचिव रामअवतार जग्गी मर्डर केस में आने के बाद भी छत्तीसगढ़ में 2003 के आम चुनाव में पार्टी ने जोगी को ही आगे किया परन्तु चुनावों ने करवट बदली और जोगी के हाथ से सत्ता फिसल गई। इसी के साथ ही पीछे छूट गया वह रूतबा भी जिसके बलबूते पर जोगी की साख टिकी थी। । 2004 में अजित जोगी एक कार दुर्घटना में घायल हो गए जिसके चलते आज तक वह व्हील चेयर पर हैं परन्तु लचर स्वास्थ्य के बाद भी अभी जोगी का राजनीति से मोह नही छूटा है। 
जोगी का एक दौर था और उस दौर में वह आदिवासियों के बीच खासे लोकप्रिय थे, पर आज आलम यह है कि छत्तीसगढ़ में चावल वाले बाबा जी यानी डा.रमन सिंह  के मुकाबले जोगी की पूछ परख लगभग मृत्त प्राय है। पिछले चुनाव में जोगी ने राज्य के कोने कोने में पार्टी के लिए वोट मांगे थे पर जनता ने उनके नेतृत्व को नकार दिया। उनको करीब से जानने वाले कहते हैं वर्तमान दौर में उनकी राजनीति के दिन ढलने लगे थे और अपने राज्य में ही जोगी अपने विरोधियो से पार नही पा रहे थे। बहुत से विरोधी कांग्रेसी ही हैं।
...और अब लाल खत
किसी राजनीतिक दल पर किये गये अब तक के सबसे बड़े हमले का नक्सली एक तरफ जहां जश्न मना रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ अपनी दहशत बनाये रखने की ओर भी पूरी तवज्जो दे रहे हैं। इस दुर्दांत नक्सली हमले को अभी एक सप्ताह भी नहीं गुजरे हैं कि हमले को अंजाम देने वाली नक्सलियों की दरभा डिवीजनल कमेटी ने सुकमा जिले के 20 सलवा जुडूम नेताओं को जान से मारने की धमकी दी है।  सुकमा कलेक्टर पी दयानंद ने पत्र प्राप्ति की पुष्टि करते हुए बताया कि इस बात से सरकार को अवगत करा दिया गया है।
नक्सलियों ने जिला प्रशासन को लिखे पत्र में कहा है कि सलवा जुडूम के सदस्यों और पुलिस के मददगारों को दरभा जैसा ही जवाब दिया जाएगा। पत्र लाल स्याही से लिखा गया है। पत्र भेजने वाले ने खुद को माओवादी होने का दावा किया है। पत्र में सलवा जुडूम नेता रामभवन कुशवाह,  सोयम मुकका,  पदाम नंदा,  बोटू रमा,  पी विजय,  कोरसा सन्नू,  राजेंद्र वर्मा,  जोगा बलवंत,  आयमा मांझी,  रामेश्वर तापडिया,  मनोज यादव,  विनोद तिवारी,  उमेश सिंह तथा पुलिस के मददगार दीपक चौहान, ठेकेदार अली,  प्रमोद राठौर को जान से मारने की धमकी दी है
   इसी के साथ नकसलियों ने बस्तर से केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) को हटाने, ऑपरेशन ग्रीन हंट बंद करने, विकास और परिवर्तन यात्रा बंद करने, एडसमेटा फर्जी मुठभेड में शामिल पुलिस जवानों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करने व जेल में बंद नक्सलियों को रिहा करने की मांग भी की है। 

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