रविवार, 9 जून 2013

मोदी की राह में आडवाणी का रोड़ा

                         बद्रीनाथ वर्मा
भाजपा में प्रधानमंत्री पद की दौड़ में जबसे नरेंद्र मोदी का नाम सबसे आगे चल रहा है तभी से भारतीय जनता पार्टी की हांडी खदबदा रही है। यूं तो भाजपाई राजनीति की अंदरूनी खबर रखने वालों को इस बात की जानकारी बहुत पहले से ही थी, पर यह खदबदाहट उस समय सबके सामने उजागर हो गई जब पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को मोदी से बेहतर बताया। इसी के साथ आडवाणी ने उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समकक्ष करार दिया। इसे नरेंद्र मोदी की काट के तौर पर देखा जा रहा है।
दरअसल, भाजपा के लौहपुरुष यह पचा नहीं पा रहे हैं कि उन्हीं के तैयार किये हुए नरेंद्र मोदी उनसे बाजी मार ले जा रहे हैं। इसी बाजी को पलटने की कवायद है यह। आडवाणी ने नरेंद्र मोदी की तुलना शिवराज सिंह चौहान से करते हुए कहा कि जहां मोदी ने पहले से मजबूत गुजरात को शानदार बनाया , वहीं शिवराज ने बीमारू मध्य प्रदेश को पूरी तरह से चंगा कर दिया  है। गौरतलब है कि गत लोकसभा चुनाव तक भाजपा के पीएम इन वेटिंग रहे लालकृष्ण आडवाणी का पत्ता काटकर ही मोदी भाजपा में प्रधानंत्री पद के नये दावेदार बने हैं और यह बात आडवाणी को अंदर ही अंदर कचोट रही है। गाहे बगाहे उनका यह दर्द नुमाया भी हो जाता है। शिवराज की प्रशंसा आडवाणी की कूटनीति का हिस्सा है। वह कांटा से कांटा निकालने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। गुरु गुड़ रह जाये और चेला चीनी हो जाये यह आडवाणी को कदापि मंजूर नहीं है। ग्यारह साल पहले आडवाणी की कृपा से ही नरेंद्र मोदी केशु भाई पटेल की जगह गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे। यहां तक कि साल 2002 में दंगों के बाद अटल विहारी वाजपेयी उन्हें हटाना चाहते थे पर यहां भी उनके ढाल आडवाणी ही बने और मामला राजधर्म निभाने की सीख देने तक रह गया। लेकिन अब वह दौर निकल चुका है। तब से अब तक तीन विधानसभा चुनाव बीत चुके हैं, जिसमें लगातार जीत ने मोदी को भाजपा का सबसे बड़ा नेता बना दिया है। दंगों के दाग के बावजूद मोदी ने ऐसा शमां बांधा कि वाइब्रेंट गुजरात की चमक में सभी चौंधिया गये। आज मोदी का कद भाजपा से भी ऊंचा हो गया है। भाजपा में मोदी की हैसियत का अंदाजा इसी से लग जाता है कि उनकी प्रसन्नता के लिए संजय जोशी को पलक झपकते उनके पद से हटाया जा सकता है।  भला आडवाणी को यह बात कैसे पच सकती है कि उन्हीं का प्यादा उन्हीं को मात दे दे। वह एन केन प्रकारेण मोदी के दावे को कमजोर करना चाहते हैं। कट्टर छवि वाले मोदी के बरक्स साफ सुथरी छवि वाले व सबको स्वीकार्य हो सकने वाले चौहान को खड़ा करना उनकी गहरी कूटनीति का हिस्सा है। वाजपेयी से चौहान की तुलना के पीछे यही मकसद है। गौरतलब है कि भाजपा को केंद्रीय भूमिका में लाने में आडवाणी की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका थी, पर जब प्रधानमंत्री पद की बात आई तो अटल बिहारी वाजपेयी की उदार छवि उनकी कट्टर छवि के आड़े आ गई। यह दर्द उन्हें हमेशा सालता रहा और जब तब उनके मन का यह गूबार फूटता भी रहता है। अब यही फार्मूला वे मोदी के दावे पर भी लागू करना चाहते हैं। आडवाणी ने शिवराज सिंह की प्रशंसा करते हुए कहा कि जितने विनम्र वाजपेयी जी हैं उतने ही विनम्र चौहान भी। उनमें अहंकार तो लेश मात्र नहीं है। उन्होंने ग्वालियर में आयोजित भाजपा की मध्य प्रदेश इकाई के पालक और संयोजक महाधिवेशन के समापन मौके पर कहा कि विकास व जनकल्याणकारी कार्य किए जाने के बाद भी तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अहंकार से परे रहे, ठीक उसी तरह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी अहंकार से परे हैं। आडवाणी के इन शब्दों के निहितार्थ समझने की जरूरत है।
इस बहाने एक तरह से वे अहंकारी मोदी को संदेश दे रहे थे। आडवाणी यहीं नहीं रुके बल्कि शिवराज सिंह चौहान को मोदी से यह कहकर बेहतर बताया कि मोदी ने जहां पहले से ही संपन्न राज्य गुजरात को नई ऊंचाइयां दी वहीं चौहान ने मध्य प्रदेश जैसे बीमार राज्य को स्वस्थ व सबल बना दिया। यहां यह भी ध्यान देना जरूरी है कि अंदरखाने नरेंद्र मोदी की मुखालफत करने वाले धड़े ने संसदीय बोर्ड में शामिल करने के लिए शिवराज के नाम का पासा फेंका था। हालांकि पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने शिवराज को प्रसाद पाने से वंचित करते हुए संसदीय बोर्ड में मोदी को ही जगह दी।  
 खैर, उनके इस बयान से हड़कंप मचेगा, इसे आडवाणी न जानते हों यह तो संभव ही नहीं है। वह भली भांति इस बात को जानते थे। भाजपा के यह लौहपुरुष ऐसे नेता माने जाते हैं जिनका अपनी वाणी पर पूर्णतया कंट्रोल है। जो बात उन्हें नहीं कहनी होती है वह किसी भी सूरत में उनसे कहलवा लेना नामुमकिन सा है। मोदी की राह में उनकी ओर से अटकाये जाने वाले इस रोड़े ने आरएसएस के भी कान खड़े कर दिये। आनन फानन में राजनाथ सिंह ने इस पर सफाई देते हुए कहा कि मोदी के नाम पर पार्टी में आम सहमति है। वहीं शिवराज सिंह ने खुद को पार्टी में तीसरे नंबर का नेता बताया। शिवराज सिंह की प्रशंसा के एक और मायने भी तलाशे जा रहे हैं। आडवाणी अब तक गुजरात के गांधीनगर सीट से चुनाव लड़ते रहे हैं। पर मोदी से बढ़ते खटास की वजह से अब वह अपनी सीट बदलना चाहते हैं। बहुत संभव है कि वह अगला चुनाव भोपाल या इंदौर से लड़ें।
दरअसल, जब नरेंद्र मोदी पार्टी में बहुत जूनियर लेवल पर थे, तब से, यानी 1991 से लालकृष्ण आडवाणी गांधीनगर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। देश में एनडीए की लहर हो या न हो, उन्हें संसद पहुंचने में दिक्कत नहीं आई। मगर पिछले चुनाव में ऐसा नहीं हुआ। 2004 में वह 2 लाख 17 हजार वोटों से चुनाव जीते थे, मगर पांच साल बाद जीत का अंतर घटकर 1 लाख रह गया। वह भी तब मुमकिन हुआ, जब देश के दूसरे इलाकों में प्रस्तावित दौरों में कटौती कर आडवाणी को गांधीनगर सीट पर काफी वक्त खपाना पड़ा। इतना ही नहीं उनके परिवार के लोग चुनाव पूरा होने तक बस यहीं कैंप किए रहे। गांधीनगर जैसे सुरक्षित किले के असुरक्षित हो जाने के पीछे खुद मोदी सरकार के एक फैसले का हाथ है। मोदी ने लोकसभा चुनावों से कुछ महीने पहले ही राज्य की राजधानी में एक अतिक्रमण विरोधी अभियान को हरी झंडी दी थी। इसके तहत गांधी नगर में ऐसे सैकड़ों मंदिरों को रास्ते से हटा दिया गया था, जो अवैध रूप से कब्जा कर बने थे या फिर जो सड़क चौड़ी करने में आड़े आ रहे थे। इससे स्थानीय जनता बीजेपी से नाराज हो गई।

मोदी की पीएम पद की महात्वाकांक्षा पर जब तब आडवाणी अंकुश लगाते रहे हैं। इसके लिए लौहपुरुष खुद अपनी दावेदारी जताने के बजाय मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की आड़ ले रहे हैं। मोदी के विकास पुरुष के दावे के बरक्स इसीलिए बार-बार पार्टी मंच से आडवाणी शिवराज का नाम लेना नहीं भूलते। शिवराज भी सरकार के बड़े कार्यक्रमों में उनसे ही अध्यक्षता करवाते हैं। ऐसे में मध्य प्रदेश से बेहतर ठिकाना आडवाणी के लिए और क्या होगा। यहां एक बात पर गौर करना जरूरी है कि एक तरफ जहां मोदी के नेतृत्व में भाजपा गुजरात में लगातार जीत दर्ज कर रही है वहीं,आडवाणी के नेतृत्व में बीजेपी पिछला लोकसभा चुनाव बुरी तरह हार चुकी है। बावजूद इसके आडवाणी अभी भी पार्टी में अपना केंद्रीय रोल देख रहे हैं और इसके लिए उनका लोकसभा में बने रहना बेहद जरूरी है। एनडीए खेमे में नरेंद्र मोदी की दावेदारी को लेकर एकराय नहीं है। एनडीए का प्रमुख घटक जनता दल यू तो मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने के सख्त खिलाफ है। यहां तक कि धमकी भी दी जा चुकी है कि ऐसा होने पर जदयू एनडीए से अलग हो जायेगी। ऐसे में जाहिर है चुनाव बाद बनने वाले समीकरण में आडवाणी की लाटरी लग सकती है। पर यह लाटरी तभी लग सकती है जबकि वे बतौर सांसद 16 वीं लोकसभा के सदस्य चुने जायें। और इसके लिए गुजरात से ज्यादा खुद को मध्य प्रदेश में ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें