बद्रीनाथ वर्मा
अपने के बच्चे के लिए बहुत
परेशान थी। चाह कर भी कुछ नहीं कर पाई। रोती रही लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उसका बच्चा छीन लिया गया। भारती की आंखों
के सामने ही सुरक्षा बलों ने उसके जिगर
के टुकड़े को छीन कर दूर कर दिया। इस घटना को बीते तीन महीने से ज्यादा गुजर गए मगर
आज भी भारती की आंखें नम है। उसे हर
वक्त अपने बेटे की याद सताती रहती है। बावजूद इसके उस दोजख में वह फिर नहीं जाना
चाहती। हां, उसके दिल में अभी भी एक उम्मीद बाकी है कि उसका बच्चा एक दिन जरूर
वापस मिलेगा उसे। यह व्यथाकथा है
पाकिस्तान से आई उस युवती का, जो दोबारा फिर पाकिस्तान लौटकर नहीं जाना चाहती। वह
कहती है कि चाहे तो भारत सरकार हमें मौत दे दे पर पाकिस्तान जाने को न कहे। अपने
दुधमुंहे बच्चे को पाने की आस लगाये भारती पत्रकारों के सामने अपना दुखड़ा सुनाती
रहती है। उसे यकीन है मीडिया के सहारे उसकी आवाज सही जगह तक जरूर पहुंचेगी। मगर इन सबके
बावजूद एक डर उसके अंदर बैठा है कि अगर भारत सरकार ने उन्हें यहां रहने की अनुमित
नहीं दी तो क्या होगा? इस सवाल का सही जवाब किसी के पास
नहीं है। सरकार और विपक्ष दोनों ही इस सवाल से बच रहे हैं। शायद प्रश्न ही ऐसा है।
मगर भारती के पास जबाब है - वह कहती है ‘मर
जाउंगीं लेकिन वापस नहीं जाउंगी।
इस संबंध में भारतीय जनता पार्टी के
पूर्व महासचिव व थिंक टैंक रहे गोविंदाचार्य कहते हैं कि भारत सरकार को इन
शरणार्थियों का हर हाल में साथ देना चाहिए। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हो रहे
अत्याचार को देखते हुए भारत सरकार को राष्ट्रसंघ में मामला ले जाना चाहिए।
पाकिस्तान में रह रहे अल्पसंख्यकों खासकर हिन्दुओं पर तो लगातार हमले जारी है।
हिंदुओं की बहु बेटियों का अपहरण कर उन्हें इस्लाम धर्म कबूल करने के लिए बाध्य
करना व हिन्दुओं की संपत्ति पर जबरन दखल करना पाकिस्तान में आम बात है। ऐसे में
अगर ये शरणार्थी पाकिस्तान नहीं जाना चाहते तो उन्हें मदद करने में हमें पीछे नहीं
हटना चाहिए। बहरहाल, भारती की ही तरह सभी शरणार्थी एक स्वर में कहते हैं कि पाकिस्तान
वापस जाने से पहले हम मरना पसंद करेंगे।’ भारती पाकिस्तानी सूबे, सिंध के काशमबाद जिले की रहने वाली है। कुंभ के लिए पाकिस्तान से आए पुण्यार्थियों
के साथ अपने परिवार सहित वह भी भारत आई। उसके परिवार में पति के अलावा छह बच्चे भी
हैं।
कुंभ के लिए निकलने से महज दो दिन
पहले ही उसने एक बच्चे को जन्म दिया था। जब भारती अपने परिवार के साथ बॉर्डर पर पहुंची तो पाकिस्तानी सुरक्षा
बलों ने यह कह कर बच्चे को साथ ले जाने से
मना कर दिया कि इस बच्चे के पास वीजा नहीं है। बच्चे को अपने ससूर के भाई को सौंप
कर वह आ गई। यह त्रासदी सिर्फ भारती के साथ
ही नहीं है बल्कि पाकिस्तान में रह रहे हर हिन्दू अल्पसंख्यक की कहानी एक सी है।
कुंभ के बहाने भारत आए हर पाकिस्तानी
हिन्दू परिवार की अपनी व्यथाकथा है। ये लोग बीते दिनों को याद नहीं करना चाहते।
अपने जीवन के बाकी बचे दिन हिन्दुस्तान
में ही गुजारना चाहते हैं। अभी ये लोग दिल्ली के बिजवासन में नाहर सिंह के मकान में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं। दो
मकान में कुल 480 लोग रह रहे हैं। इसमें
बड़ी संख्या में औरतें और बच्चे हैं।
ज्यादातर शरणार्थी पाकिस्तान के सिंध प्रांत से आए हैं तथा आर्थिक और समाजिक रूप से बेहद कमजोर हैं। गौरतलब है कि इन
हिन्दू शरणार्थियों की वीजा डेडलाईन
खत्म होने के बाद विदेश मंत्रालय ने इनकी वीजा अविध को एक महीने का विस्तार दे
दिया है लेकिन इनकी समस्याओं का कोई हल
निकलता नजर नहीं आ रहा। नाहर सिंह ने बताया कि वह इस बारे में भारत के राष्ट्रपति, विदेश मंत्रालय और संयुक्त राष्ट्र संघ को लिख चुके हैं, पर अब तक कोई जवाब
नहीं मिल पाया है।
वीजा खत्म हो जोने के बाद भी पाकिस्तान
वापस न जाने की इनकी अपनी वजह है। हनुमान
प्रसाद बताते हैं कि पाकिस्तान में रह रहे अल्पसंख्यकों के साथ इंसानों जैसा
व्यवहार ही नहीं किया जाता है। हिंदुओं का माल
असबाब से लेकर बहु बेटियां तक वहां महफूज नहीं हैं। धर्म परिवर्तन के लिए दबाव
डाला जाता है। जो धर्म परिवर्तन के लिए राजी नहीं होते उन पर तरह तरह के अत्याचार
किये जाते हैं। बहु बेटियों को अगवा कर लिया जाता है। संपत्ति लूट ली जाती है।
बहुत सारे हिन्दूओं ने तो अत्याचारों से तंग आकर या तो मौत को गले लगा लिया या फिर
इस्लाम धर्म कबूल कर लिया। वहां हिन्दुओं के लिए धार्मिक अधिकार की बात भी बेमानी है। मरने के बाद शव का
अंतिम संस्कार करने के लिए भी संघर्ष करना
पड़ता है। इतना ही नहीं भारत में होने वाली हर छोटी-बड़ी घटना का बुरा असर हिन्दुओं
पर पड़ता है। पिछले दिनों जब विराट कोहली ने 175 रन बनाए तो सिंध में
कोहली समाज की तीन लड़कियों को अगवा कर लिया गया। जिनका आज तक कोई
पता नहीं चला। अपनी आजीविका चलाने के लिए अधिकांश
निम्मवर्गिय हिन्दू परिवार जमींदारों से ठेके पर जमीन लेकर खेती करते हैं। ठेके की एक निश्चित रकम तय
की जाती है। जमींदार को रकम अदा नहीं
करने पर वह हिन्दू किसानों को बंधुवा मजदूर बना लेता हैं और रकम वसूल
करने के लिए इन्हें दूने कीमत पर दूसरे
जमींदार को बेच देते हैं। यह सिलसिला कई पुश्तों तक चलता रहाता है। सरकार और कानून के नुमार्इंदे अल्पसंख्यकों की
सहायता करने के बदले सुझाव देते हैं
कि इस्लाम कबूल कर लो सब समस्या अपने आप ही खत्म हो जाएगी।
पाकिस्तान में 1951 की जनगणना में 22 फीसदी हिन्दू आबादी थी, जो आज घटकर दो फीसदी से भी नीचे चली गई है। और इसमें से भी केवल पांच प्रतिशत अल्पसंख्यक ही
ठीक-ठाक हालात में हैं बाकी के हिन्दू घुट-घुट
के जीने को मजबूर हैं। ऐसा नहीं है कि हम लोग अचानक ही पाकिस्तान से चले
आए। करीब डेढ़ साल से हम भारत आने की योजना
बना रहे थे। कुंभ के बहाने लगभग 3000 लोगों ने
सरकार से वीजा के लिए आवेदन किया था। जिनमें से केवल 480 लोगों को ही वीजा दिया गया।
एक ही परिवार के कुछ लोगों को वीजा दिया गया कुछ को नहीं। किसी की पत्नी
बच्चों सहित भारत आ गई है तो पति अपने मां
के साथ पकिस्तान में है। सरकार ने जानबूझ कर ऐसा किया ताकि हम वापस जा सकें। लेकिन कुछ भी हो हम वापस नहीं
जाएंगे। पाकिस्तान हमारे लिए दोजख के समान है। वहां जिल्लत की जिंदगी जीने से
बेहतर है कि हम यहां शुकुन की मौत मर सकें। कम से कम मरने के बाद हमें अंतिम
क्रिया के लिए संघर्ष तो नहीं करना पड़ेगा। हम भारत सरकार से गुजारिश करते हैं कि
मानवता के नाते हम पर रहम करे। अगर हमें यहां नहीं रख सकती तो पाकिस्तान भेजने के
बजाय हमें सामूहिक मौत दे दे। हम खुशी खुशी इसे गले लगा लेंगे। हनुमान प्रसाद आगे
कहते हैं कि हमने कभी अपने लिए पाकिस्तान नहीं मांगा था। हमारे पूर्वज तो देश की आजादी के लिए लड़े थे,
बंटवारे के लिए नहीं।
बाक्स –
दिन ब दिन घटती गई हिन्दू आबादी
पाकिस्तान में 1951 की जनगणना में 22 फीसदी हिन्दू आबादी थी, जो आज घटकर दो फीसदी से भी नीचे चली गई है। और इसमें से भी केवल पांच प्रतिशत अल्पसंख्यक ही
ठीक-ठाक हालात में हैं बाकी के हिन्दू घुट-घुट
के जीने को मजबूर हैं।
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