गुरुवार, 27 जून 2013

दर्द की दास्तां

                                                                 बद्रीनाथ वर्मा
उत्तराखंड में हर तरफ बर्बादी पसरी है। राहत की राह में इतने रोड़े हैं कि न मदद पहुंच पा रही है और न ही मददगार। चार धाम यात्रा के रास्तों पर जगह-जगह लोग फंसे हुए हैं। इस तीर्थस्थान पर कुदरत की मार तीन तरह से पड़ी है। पहले बारिश आई, फिर बादल फटा और बाद में रही-सही कसर चट्टानों के टूटकर गिरने ने पूरी कर दी। चारों ओर पानी ही पानी है। जल प्रलय ने इस शिवधाम का नक्शा ही बदल दिया है। जहां कभी बाजार लगा करते थे, वहां अब झीलें बन चुकी हैं । हजारों लोग जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं। सबसे ज्यादा बर्बादी केदारनाथ में हुई है। मुख्य मंदिर को छोड़कर बाकी सारा कुछ जल प्रलय की भेंट चढ़ गया है। मंदिर का पूरा चबूतरा तबाह हो गया है। मुख्य मंदिर के आसपास के छोटे-छोटे मंदिरों का नामोनिशान नहीं है। बड़े-बड़े पत्थरों के सिवा वहां कुछ नजर नहीं आ रहा है।
अभी तक सैकड़ों लोगों के मरने की खबरें आ चुकी हैं। यह संख्या अगर हजारों में भी पहुंच जाये तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। तीर्थयात्रा करने गये लोगों को इसका तनिक भी आभास नहीं था कि प्रकृति इस कदर कहर बरपायेगी।कुछ यात्री तो ऐसे भी हैं जो खुद तो किसी तरह से बच गए हैं लेकिन उनके परिवार का कोई न कोई सदस्य इस त्रासदी में गुम हो चुका है। ईश्वर का फैसला भी अजीब है। परिवार का कोई सदस्य सुरक्षित है तो कोई काल के गाल में समा चुका है। आखिर इस जिंदगी का अब क्या मतलब जो ताउम्र अपनी किस्मत से यही सवाल पूछती रहेगी कि मुझे किसके सहारे जीने के लिए छोड़ दिया।
गौरीकुंड से निकलकर गौरी गांव में शरण लिये कुछ तीर्थयात्रियों ने फोन पर यह करुण पुकार की कि हम लोग बच नहीं पाएंगे। तीन दिन से गौरी गांव में फंसे हैं। खाने के लिए न भोजन मिल रहा है न पीने के लिए पानी। गड्ढे का पानी पी रहे हैं। जो भीगता है बीमार हो जाता है और दवा नहीं मिलने से मर जाता है।  क्या हुआ था केदारनाथ में तबाही वाली रात? कैसा था वहां का मंजर? बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब में फंसे यात्रियों पर क्या गुजरी थी? आइए आपको बताते हैं दर्द की कुछ कहानियां उन्हीं की जुबानी...
बद्रीनाथ धाम की यात्रा पर गए दांता के सरपंच बसंत कुमावत कहते हैं कि  पांडुकेश्वर इलाके के जिस होटल में हम सो रहे थे, 200 मीटर दूर बह रही नदी अचानक होटल तक आ पहुंची। रात 2 बजे अफरा-तफरी। हम बाहर निकले ही थे कि होटल की दीवार हिलने लगी। पहले दीवारें तिरछी हुईं। और गुड़ी-मुड़ी होकर पूरा होटल बह गया। कुछ नहीं बचा। लोग भूखे-प्यासे गाडिय़ों में बैठे हैं। कोई पहाड़ी पर जा चढ़ा है। लगभग सारे ही लोग गंगोत्री, यमनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ के बीच फंसे हैं। 
हरियाणा के जिंद जिले से आए वीरेंद्र कुमार व उनके साथी कहते हैं कि 16 जून तक सबकुछ ठीक चल रहा था। शिवधाम केदारनाथ में भक्ति गीत चारों ओर चल रहे थे, लेकिन न जाने किसकी नजर लगी, बारिश शुरू हुई तो मन घबराने लगा। कुछ देर बाद तबाही शुरू हो गई। हम किसी तरह से बच पाए। रास्ते भर का मंजर जो उन्होंने देखा वह अब भी डरा रहा है। वह मंजर याद कर सिंहर उठते हैं। उनका कहना है कि सब कुछ इतनी तेजी से हुआ कि कुछ पता ही नहीं चला। रास्ते भर हाहाकार की स्थिति थी। सब तरफ पानी और पत्थर। वहीं केदारनाथ यात्रा पर गए जालंधर के रोहित जामवाल ने फोन पर बताया, 'मैं गौरीकुंड में फंसा हूं। मुझे बचा लो। यहां चारों तरफ लाशें बिछी हैं और उनके बीच बिखरे पत्ते खाकर गुजारा कर रहा हूं। 19 जून को हेलीकॉप्टर आया था। खाने के कुछ पैकेट गिराए। कुछ ही लोगों के हाथ आए। पानी के बाद भुखमरी फैल गई है। पहले लोगों, गाडिय़ों को सूखे पत्ते की तरह बहते देखा। जल्द इंतजाम नहीं हुए तो आदमी को भूख से मरते देखना पड़ेगा। अभी गौरीकुंड के पास गौरी गांव में हूं। गांव के एक परिवार ने हमें शरण दे रखी है। इसके अतिरिक्त कहीं कोई मदद नहीं। कोई मददगार नहीं। हम सब मिलकर यहां हैलीपेड बनाने में लगे हैं। इस आस में कि कोई हेलीकॉप्टर यहां उतर जाए और हमें ले जाए। इस मोबाइल फोन का भी भरोसा नहीं। जाने कब बंद हो जाए। अब रखता हूं। उस रात तबाही का मंजर क्या था यह किसी तरह बचे केदारनाथ गांव के रहने वाले सोहन सिंह नेगी ने बयां किया। उन्होंने बताया कि मैंने खुद अपनी आंखों के सामने 60 लाशों को तैरते हुए देखा। करीब 200 लोग ऐसे हैं जिनको मैं जानता हूं, लेकिन उनका कहीं कोई अता पता नहीं है। इसी तरह हेमकुंड साहिब में तबाही का मंजर वहां से लौटे एक यात्री सुखप्रीत ने बयां की। उनके अनुसार उन्होंने अपनी आंखों के सामने 200 से ज्यादा मोटरसाइकलों को नदी में समाते देखा। इसके अलावा उन्होंने बताया कि बच्चों समेत करीब 50 यात्री नदी में समा गये।
बाक्स...
पति के शव के साथ गुजारे दो दिन
 सबसे दर्दनाक दास्तां सहारनपुर निवासी सविता नागपाल की है। सविता अपने पति सुरेंद्र नागपाल के साथ बद्रीनाथ यात्रा पर गई थीं। सोमवार रात अचानक होटल में पानी घुसने के बाद यह बुजुर्ग दंपती ठौर की तलाश में सड़क पर आ गया। मलबे की चपेट में आकर पति सुरेंद्र नागपाल की मौत हो गई। सविता दो दिन तक अपने पति के शव के पास रोती-बिलखती रहीं। तीसरे दिन बेटे मुकेश के पहुंचने पर पति का अंतिम सस्कार किया जा सका। मुकेश को देहरादून में ही पिता के मरने की खबर मिल गई थी। वह किसी तरह वहां पहुंचे।

हाथ छूटा और पत्नी बह गई
 राजस्थान के करौली के रहने वाले कल्याण सिंह इस हादसे में अपनी पत्नी को खोकर सदमे में हैं। उन्होंने मीडिया के सामने केदारनाथ में उस काली रात की दास्तां बयां की। उन्होंने बताया कि होटल में अचानक पानी भरने लगा था। लोग होटल की तीसरी मंजिल पर आ गए। इसी बीच उनकी पत्नी मालती का हाथ उनके हाथ से छूट गया और वह पानी में बह गईं। उनके दल के कुछ साथी भी साथ में बह गए।
केदारनाथ की वह भयानक रात
 केदारनाथ मंदिर के पुजारी रविंद्र भट्ट ने भी अपनी आपबीती सुनाई। भट्ट के मुताबिक केदारनाथ में 16 जून की रात और 17 जून की सुबह तबाही का सैलाब आया था। भट्ट के मुताबिक 16 जून को शाम आठ बजे तक धाम में सब कुछ ठीक था। सवा आठ बजे अचानक मंदिर के ऊपर से पानी का सैलाब सा आता दिखा। उन्होंने दूसरे तीर्थ यात्रियों के साथ मंदिर में शरण ली। रातभर लोग एक दूसरे की हिम्मत बंधाते रहे। 17 जून को सुबह 6:55 बजे एक बार फिर पानी का सैलाब आया। इसने धाम में काफी तबाही मचाई। इस तबाही के बाद धाम में कई शव बिखरे दिखे।

बाल बाल बचे अश्विनी चौबे
 केदारनाथ की यात्रा पर गए बिहार के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी चौबे 16 जून की रात का जिक्र आते ही कांप जाते हैं। उन्होंने दो बार सैलाब का सामना किया। वह तो किसी तरह अपनी जान बचाने में कामयाब रहे लेकिन उनके साथ आए सात रिश्तेदार और सुरक्षाकर्मी सैलाब में बह गए। उन लोगों का कोई सुराग नहीं मिल रहा है। अश्विनी चौबे खुद भी घायल हो गये थे। चौबे की पत्नी, दोनों बेटे, बहू और पोता सुरक्षित हैं, लेकिन साढ़ू सुबोध मिश्र, साली संगीता (सुबोध मिश्र की पत्नी), भतीजा गुड्डू, पुरोहित दीनानाथ पंडित और तीन बॉडीगार्ड्स का कोई सुराग नहीं है।


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