सोमवार, 15 जुलाई 2013

सबसे अधिक खतरा राजनीतिक आतंकवाद से

                      Badrinath Verma

कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह उर्फ दिग्गी राजा राजनीतिक आतंकवाद का मुखर चेहरा बनकर उभरे हैं। अपने उल जुलूल बयानों की वजह से अक्सर चर्चा में रहने वाले दिग्गी राजा ने एक बार फिर साबित किया है कि देश की संप्रभुता पर होने वाले आतंकी हमलों की जांच में जुटी सुरक्षा एजेंसियों को दिग्भ्रमित करने की कला में उन्हें महारथ हासिल है। आतंकवादियों को मुंहतोड़ जवाब देने के बजाय नरेंद्र मोदी पर आक्षेप करना उन्हें ज्यादा महत्वपूर्ण लगता है। जब हमारे देश के कर्णधारों की सोच इस स्तर की है तो जाहिर है कि आतंकवादी हमले तो होंगे ही। हर राजनेता एक-दूसरे पर इसका दोषारोपड़ कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेगा। बोध गया के महाबोधि मंदिर में हुए सिलसिलेवार धमाकों के बाद राजनेताओं के आये बयान इसी को रेखांकित करते हैं। इशरत जहां को बिहार की बेटी बताकर नरेंद्र मोदी को घेरने व राजनीतिक लाभ लेने की रणनीति बनाने में जुटे नीतीश कुमार की इस धमाके ने बोलती बंद कर दी। सुरक्षा व्यवस्था में नाकामी उन्हें शर्मसार करने के लिए काफी थी। सुरक्षा व्यवस्था में हुई यह चूक तब थी जबकि खुफिया एजेंसिया लगातार इस बारे में बिहार सरकार को सचेत कर रही थीं। धमाके को नीतीश के चिर विरोधी लालू प्रसाद यादव ने अपने पक्ष में भुनाने के लिए आनन फानन में मगध बंद का ऐलान कर दिया। यही नहीं, कल तक नीतीश सरकार की हमनिवाला रही भाजपा ने भी गया बंद का ऐलान करते हुए इस आतंकी हमले के लिए पूरी तरह से नीतीश कुमार को दोषी ठहरा दिया। उसने यह कहकर इसका ठीकरा नीतीश के सिर फोड़ा कि गृहमंत्रालय उन्हीं के पास है। वहीं कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने एक कदम आगे बढ़ते हुए इस आतंकी हमले के तार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से जोड़ दिए। नरेंद्र मोदी को लेकर दिग्विजय की टिप्पणी आपत्तिजनक होने के साथ ही घोर निंदनीय है। सच तो यह है कि दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं के ऐसे बेतरतीब व बकवास बयान आंतकवादियों के मनोबल को बढ़ाते हैं और इस तरह के धमाकों को खाद पानी मुहैया कराने का काम करते हैं। बेशक कांग्रेस के महासचिव को अपने विरोधियों की आलोचना या उन पर हमले का हक है पर इसकी भी एक हद तो होनी ही चाहिए। क्या वोट के लिए इस तरह की हरकत बर्दाश्त करने योग्य है। अक्सर मुस्लिमपरस्ती में हमारे देश के सियासतदां यह भूल जाते हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता है। बावजूद इसके उन्हें इस बात का डर सताता है कि इससे उनका मुस्लिम वोटबैंक खिसक जाएगा। हमले के पीछे मोदी का हाथ होने का शक जताकर दिग्विजय सिंह की मंशा मुस्लिम वोट बैंक को खुश करना है। सियासतदानों को मोदी विरोध मुस्लिमों को अपने पाले में लाने का सबसे सुगम व सटीक तरीका लगता है। वह उन्हें मोदी के नाम से डराकर वोटों की फसल काटना चाहते हैं जबकि सच्चाई यह है कि गुजरात में हुए साल 2002 के दंगों को छोड़ दिया जाय तो उसके बाद वहां पूरी तरह अमन व शांति है। वहां के मुसलमानों को भी विकास का वही लाभ मिल रहा है जो वहां के हिंदुओं को। यहां तक कि गुजरात के मुसलमानों ने मोदी को वोट भी दिया है। बावजूद इसके मोदी का भय दिखाकर अपना उल्लू सीधा करने में ये घाघ राजनेता जुटे हैं। अक्सर बेसिर पैर के बयान देकर अखबारों की सुर्खियां बटोरने वाले दिग्विजय को मोदी, भाजपा व भगवा आतंकवाद से आगे कुछ दिखाई ही नहीं देता, या फिर वह देखना नहीं चाहते। सुरक्षा एजेंसिया महाबोधि मंदिर में हुए धमाके की जांच में जुटी हुई हैं। अभी वे किसी भी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची हैं। पर दिग्विजय ने धमाके के तार गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी से जोड़ दिये। दिग्‍गी राजा की दलील है कि मोदी ने नीतीश कुमार को सबक सिखाने की बात कही और उसके अगले ही दिन धमाका हो गया। उनके इस आरोप पर भाजपा का तिलमिलाना वाजिब ही है। उसने दिग्गी राजा को पागल करार दे दिया। 

गौरतलब है कि कांग्रेस महासचिव अक्सर ऐसे विवादित बयान देते रहे हैं। बीजेपी की ओर से सिंह पर आतंकी वारदात में शामिल लोगों की वकालत का आरोप लगाया जाता रहा है। दिल्ली में जामा मस्जिद के निकट बटला हाउस में हुए एनकाउंटर को वे फर्जी करार दे चुके हैं, जबकि यह एनकाउंटर उन्हीं की पार्टी की सरकार के दौरान हुआ था। वे इस एनकाउंटर में मारे गये आतंकवादियों के परिवार से आजमगढ़ जाकर मिल आये हैं। व अभी भी वे मानते हैं कि यह एनकाउंटर फर्जी था। बावजूद इसके कि इसमें दिल्ली पुलिस के जांबाज इंस्पेक्टर इस हमले में शहीद हो गये। इसी तरह मुंबई हमले के वक्त भी उन्होंने आशंका जताई थी। देश के बाहर जमा काले धन को वापस करने की मांग पर जोरदार आंदोलन चलाने वाले योगगुरु बाबा रामदेव को वे ठग करार दे चुके हैं। इसी तरह एक बार उनसे यह पूछे जाने पर कि ओपिनियन पोल दर्शाते हैं कि मोदी प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के लिए काफी लोकप्रिय हैं तब उन्होंने कहा था कि हिटलर भी काफी लोकप्रिय था। 
इसी तरह फिल्म अभिनेता संजय दत्त की माफी की वकालत करते हुए दिग्विजय का कहना था कि चूंकि संजय के पिता और कांग्रेस नेता सुनील दत्त सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ थे इसलिए संजय को जान का खतरा महसूस हो रहा था। इसीलिए उन्होंने हथियार लिये। यही नहीं वे भारत के महालेखा परीक्षक रहे विनोद राय को भी अपनी औकात में रहने की नसीहत दे चुके हैं। भाजपा उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी का कहना है कि सिंह बेलगाम बकवास करने में माहिर हैं। उनको खुद नहीं पता होता कि वह क्या बोल रहे हैं। उनके साथ बदकिस्मती यह है कि रात में उन्हें कोई सपना आता है और सुबह उठकर वह उसे बोलना शुरू कर देते हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें भविष्य के बारे में सब कुछ पता रहता है। जो कुछ होने वाला होता है, उसका ख्वाब उन्हें पहले आ जाता है।

दरअसल राजनेताओं की ओर से आतंकी धमाकों को भी राजनीतिक नफे नुकसान के चश्में से देखने की प्रवृत्ति कोढ़ में खाज साबित हो रही है। उनकी इस प्रवृत्ति से जहां आतंकियों का मनोबल बढ़ता है वहीं आम जन में एक समुदाय विशेष के खिलाफ रोष। राजनेता यही तो चाहते हैं। इससे वोटों की फसल उगाने में उन्हें मदद मिलती है। देश जाये भाड़ में। उन्हें मतलब है तो बस वोट से। देश के सभी मुस्लिम आतंकवादी या उनके समर्थक नहीं हैं। यह सर्वमान्य तथ्य है। हालांकि मुस्लिम हितैषी होने का ढोंग करने वाले कुछ नेताओं की वजह से पूरा मुस्लिम समुदाय को ही लांक्षित होना पड़ता है। दिग्विजय व मुलायम जैसे तथाकथित मुस्लिमपरस्त नेताओं की गलतबयानी हिंदू अतिवादियों को पूरे समुदाय पर कीचड़ उछालने का अवसर उपलब्ध कराती है। धमाके को भी राजनीतिक लाभ लेने का जरिया बनाने की प्रवृत्ति ने एक बार फिर साबित कर दिया कि मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति ही ऐसे धमाकों के लिए जिम्मेदार है। दरअसल आतंकवाद से तभी निपटा जा सकता है जब दिग्विजय सिंह जैसे राजनीतिक आतंकियों पर लगाम लगे। मंदिर परिसर में व्याप्त आध्यात्मिक शांति और आस्था की नींव को हिलाने का नापाक मंसूबा लेकर धमाका करने वालों की मंशा तो नाकाम हो गई पर राजनीतिक बयानबाजियों ने जरूर आतंकियों को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया।

बहरहाल, आस्था की नींव हिलाने का नापाक मंसूबा लेकर आए आतंकियों के मुंह पर श्रद्धालुओं की आस्था ने जोरदार तमाचा मारा है। आतंकियों का मंसूबा था कि उन सभी 16 देशों में जहां बौध धर्म के अनुयायी रहते हैं इस धमाके की गूंज गूंजेगी और दुनिया को यह पता चलेगा कि भारत जाना खतरे से खाली नहीं पर धमाके के बावजूद न तो श्रद्धालुओं की आस्था कम हुई  और न ही परंपरागत तौर पर होने वाली नियमित पूजा ही बाधित हुई।



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