बद्रीनाथ वर्मा
उत्तराखंड में आई भीषण प्राकृतिक आपदा और उसमें तबाह हुई हजारों
जिंदगियों पर भी राजनेता राजनीतिक रोटियां सेंकने से बाज नहीं आ रहे। एक दूसरे पर
कीचड़ उछालने का दौर जारी है। एक तरफ जनता मर रही है तो दूसरी तरफ हमारे ये कर्णधार
सैलाब पर सियासत करने का एक भी मौका चूकना नहीं चाहते। इस तबाही को भी राजनीतिक
लाभ हानि के चश्में से देखा जा रहा है। देश की दोनों बड़ी पार्टियां कांग्रेस और
भाजपा एक दूसरे पर राजनीति करने का आरोप लगा रही हैं। हर
चीज को राजनीतिक नफे नुकसान की दृष्टि से देखने वाले हमारे राजनेताओं के चेहरे
सचमुच बहुत स्याह नजर आते हैं। मातम पर भी सियासत । छीः घिन आती है, इनकी ऐसी सोच
पर। जमीन का, आसमान का, समंदर का और पाताल तक
का सौदा करते करते अब ये राजनेता लोगों की मजबूरियों का सौदा करने लगे हैं। मरहम का सौदा करने
लगे हैं और मातम का सौदा करने लगे हैं। निश्चय ही इससे सियासत का चेहरा स्याह के
साथ ही भयावह भी नजर आता है। बेबसी की बुनियाद पर इस आपदा में राहत के नाम पर जिस
तरह नेता अपने चेहरे चमकाने पर आमादा हैं वह राजनीति के इसी स्याह पक्ष को उजागर
करती है। बर्बादियों के बेहिसाब टीलों पर बिलखते हुए चेहरे, उमड़ती हुई नदियों के
किनारे आंखों में ख्वाबों के रेगिस्तान, प्रार्थना के मंडपों में मातम के प्रेतों
का बसेरा। भला इससे बढ़िया मौका कहां मिलता सियासत के सौदागरों को। शुरू हो गई
सौदागरी और निकल पड़े सौदागर बेबसी के बाजार में आंसुओं का मोल लगाने।
गुजरात के मुख्यमंत्री व भाजपा चुनाव समिति के
प्रमुख नरेंद्र मोदी का उत्तराखंड में बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा व कथित रूप से
चुंबकीय शक्ति से 15 हजार गुजरातियों को निकालने के बाद कांग्रेस को लगा
कि मोदी बाजी मार ले जाएंगे। बस क्या था कांग्रेस की ओर से मोदी के खिलाफ
बयानबाजियों का दौर शुरू हो गया। सूचना और प्रसारण
मंत्री मनीष तिवारी ने मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि कुछ लोग आपदा पर्यटन पर
निकले हैं। वहीं हर मुद्दे पर बोलने के लिये जाने जाने वाले बड़बोले दिग्विजय सिंह
ने ट्वीट किया कि फेंकू अपने काम में लग गया। कहा जाता है कि मोदी के उत्तराखंड
दौरे व मीडिया के कवरेज से नाराज सोनिया गांधी ने गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे की
जमकर क्लास ली। कहीं सारा श्रेय मोदी न लूट ले जायें इस डर से मातम के सौदागरों की
लाइन लग गई। आखिर लोगों को भी तो पता चलना चाहिए कि कांग्रेस के पास भी रुदालियों
की छोटी फौज नहीं है।
आसमान में दर्द के उड़ते हुए तराजू लिए हरियाणा के मुख्यमंत्री
भूपिंदर सिंह हुड्डा गये। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण, राजस्थान
के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी जाकर हो आये। इससे पहले ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
व यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी उत्तराखंड की इस विभिषिका का हवाई सर्वेक्षण कर
चुके थे। उधर केदारनाथ में फंसे तीर्थयात्री भूख प्यास से बेहाल जिंदगी की जंग लड़
रहे थे तो दूसरी तरफ दिल्ली से देहरादून तक मातम की सौदागरी जारी थी। जारी था
जनतंत्र के मेले में जनता के साथ तमाशा। जमीन पर नर्क बना हुआ था और नेताओं की
पलटन हवा में उड़ रही थी। नतीजा 16 हवाई पट्टियों में से सिर्फ 5 ही राहत के काम
में इस्तेमाल हो पा रही थी, बाकी नेताओं की
उड़ान का इंतजाम देख रही थी। देखो-देखो दर्द की दुकान में सियासत के खरीदार आए हैं।
मातम की ये सौदागरी अभी कुछ दिनों तक और चलेगी। चिंता नहीं है जब तक दर्द है, दर्द
की दरारें है, जब तक लाशें है और जब तक लालच है। यह बदस्तूर जारी रहेगी।
आपदा के बहाने एक तरफ
नेताओं में चेहरे चमकाने की होड़ लगी हुई थी तो दूसरी ओर इस
आपदा के समय कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी देश से बाहर स्पेन में छुट्टियां मना
रहे थे। ऐसे में बीजेपी भी कहां चुप रहने वाली थी। उसने भी उनके गायब रहने को
मुद्दा बना दिया। बीजेपी प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी ने कांग्रेस पर हमला बोलते
हुए पूछा कि इस भीषण आपदा के समय कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी कहां हैं। आपदा
प्रभावितों से तथाकथित 'हमदर्दी' की इस रेस में राहुल
पीछे छूटते दिख रहे थे। चौतरफा दबाव के बाद राहुल गांधी देश में 'प्रकट' हुए । 8 दिन से गायब राहुल गांधी के दर्शन
हुए कांग्रेस मुख्यालय पर । सोनिया गांधी को देश ने सामने से देखा, लेकिन दर्द चाहे जितना बड़ा हो दिल बहुत छोटा निकला। इस मुसीबत में भी
झंडी दिखाने का मोह नहीं छूटा मैडम का। सोनिया ने बेटे राहुल संग पूरे तामझाम के
साथ राहत सामग्रियों से लदे ट्रकों को हरी झंडी दिखाई।इसी के साथ नरेंद्र मोदी की
काट के तौर पर निकल पड़े राहुल प्रभावित क्षेत्रों के दौरे पर ।
वह सबसे ज्यादा प्रभावित रुद्रप्रयाग भी गए। रात को वह गोचर में
आईटीबीपी के गेस्ट हाउस में रुके। इसके बाद सुबह हेलिकॉप्टर से गुप्तकाशी पहुंचे
और वहां अस्पताल में भर्ती लोगों के अलावा स्थानीय लोगों से भी मिले। ऐसा तब हुआ
जब उत्तराखंड सरकार और देश के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने पिछले दिनों गुजरात
के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को हवाई सर्वे तक सीमित रखा था। जबकि मोदी अपने पूर्व
घोषित कार्यक्रम के तहत उत्तराखंड पहुंचे, तो
प्रोटोकॉल के मुताबिक सबसे पहले उत्तराखंड के सीएम विजय बहुगुणा से मिले। राज्य के
हालात पर चर्चा की और सहायता की पेशकश की। यह सहायता सिर्फ वित्तीय नहीं थी बल्कि
नरेंद्र मोदी ने कहा कि भुज में आये भूकंप के बाद शहर को नए सिरे से बसाने में इंजीनियरों की जिस टीम ने महत्वपूर्ण भूमिका
निभाई थी वह यहां आ सकती है। बहरहाल इसके
बाद मोदी ने इलाके का हवाई दौरा किया। गृह मंत्री शिंदे के निर्देश का असर था कि
मोदी को राहत कैंपों में नहीं जाने दिया गया। गौरतलब है कि शिंदे ने मुख्यमंत्री
बहुगुणा को छोड़कर किसी भी वीआईपी को आपदा प्रभावित इलाकों में न जाने की सलाह दी
थी। उन्होंने मोदी का नाम लिए बिना कहा था कि किसी मुख्यमंत्री को तो छोड़िए देश
के गृहमंत्री को भी प्रभावित क्षेत्रों में लैंड करने की इजाजत नहीं है। उनकी दलील
थी कि वीआईपी दौरे से पुलिस उनकी सुरक्षा के तामझाम में लग जाएगी जिससे राहत व
बचाव कार्य प्रभावित होगा।
मोदी के दौरे के तत्काल बाद मनीष तिवारी ने यह टिप्पणी की कि कुछ लोग आपदा
पर्यटन कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है
कि मोदी यदि आपदा पर्यटन पर गये थे तो राहुल गांधी कौन से पर्यटन पर निकले थे? क्या एसपीजी सुरक्षा प्राप्त राहुल के प्रभावित क्षेत्रों के
दौरे से राहत और बचाव कार्य प्रभावित नहीं हुए ? इस सवाल के जवाब में कांग्रेस नेता रेणुका चौधरी
ने हास्यास्पद दलील दी। उनके अनुसार राहुल उत्तराखंड वीआईपी की हैसियत से नहीं
बल्कि कांग्रेस उपाध्यक्ष के तौर पर गये
थे । अब यह तर्क तो शायद ही किसी के गले से उतरे कि एसपीजी सुरक्षा प्राप्त राहुल
गांधी के दौरे से राहत कार्य प्रभावित नहीं हुए। जबकि एसपीजी सुरक्षा मानकों के
अनुरूप राहुल गांधी की सुरक्षा काफिले में एसपीजी के जवानों से लैस कम से कम 7
गाड़ियां होती हैं। इसके अलावा स्थानीय पुलिस भी सुरक्षा व्यवस्था
में शामिल होती है। इसी तरह की लचर दलील देश के गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने भी
दी। उन्होंने कहा कि अब हालात ठीक हैं इसलिए राहुल गांधी को नहीं रोका गया।
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