मंगलवार, 13 मई 2014

आचार्य धर्मेन्द्र की बहकी-बहकी बातें


नेताओं की जुबान पर लगाम नहीं रही, यह इस चुनाव ने साबित कर दिया, लेकिन अब लगता है कि नेताओं की संगत का असर  हमारे धर्मगुरुओं पर भी होने लगा है। चुनाव प्रचार के दौरान  आपत्तिजनक विशेषणों  का जिस धड़ल्ले से प्रयोग हुआ उसने धर्मगुरुओं पर भी गहरा असर डाला है। अभी ज्यादा दिन नहीं बीते जब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर तंज कसते-कसते  बाबा रामदेव की जुबान बेलगाम हो गई थी । उन्होंने राहुल गांधी  को लेकर यह कह दिया था कि वे गरीबों के घर हनीमून व पिकनिक मनाने जाते हैं। बेलगाम हुई अपनी जुबान का योगगुरु अब तक खामियाजा भुगत रहे हैं। बहरहाल, अभी यह मामला चल ही रहा है कि एक और धर्मगुरु आचार्य धर्मेंन्द्र ने भी बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है। उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को लेकर एक ऐसा विवादित बयान दिया है, जिसे किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता। विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल के सदस्य आचार्य धर्मेंद्र ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बारे में अपना उच्च विचार व्यक्त करते हुए कहा है कि कोई डेढ़ पसलीवाला, बकरी का दूध पीने और सूत कातने वाला व्यक्ति भला भारत का राष्ट्रपिता कैसे हो सकता है। आचार्य धर्मेंद्र ने उक्त बातें अमरकंटक के मृत्युंजय आश्रम में सत्संग के दौरान कही। आचार्य के अनुसार हम भारत को 'मां' मानते हैं। ऐसे में महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता का संबोधन देना सर्वथा गलत है। गांधीजी भारत मां के बेटे हो सकते हैं, लेकिन राष्ट्रपिता का ओहदा उन्हें नहीं दिया जा सकता।’ आचार्य यहीं नहीं रुके, बल्कि यहां तक कह डाला कि देश में बढ़ते भ्रष्टाचार के लिए गांधीजी की तस्वीर वाले  नोट जिम्मेदार हैं। आचार्य ने कहा कि भारत की करंसी में महात्मा गांधी के बजाय भगवान गणेश की तस्वीर छापी जानी चाहिए। इससे भ्रष्टाचार पर स्वयमेव अंकुश लग जाएगा। प्रखर व ओजस्वी वक्ता के रूप में ख्यात आचार्य धर्मेंद्र के अनुसार भारत देवताओं की भूमि है और महज 100 वर्षों के भीतर कोई इस महान देश का पिता कैसे हो सकता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को लेकर सामने आए आचार्य धर्मेंद्र के इस विचार से एक बात साफ जाहिर हो रही है कि कहीं न कहीं हमारे धर्मगुरुओं में भी भटकाव आ रहा है। यह सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि एक के बाद एक लगातार ऐसे बेसिर पैर के बयान आ रहे हैं जिससे केवल और केवल विवाद का ही सृजन हो रहा है। क्या यह भटकाव का ही नतीजा नहीं है कि बाबा रामदेव कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल को घेरने के चक्कर में पूरे दलित समाज का ही अपमान कर बैठे। भले ही उनकी मंशा यह नहीं रही हो लेकिन आखिरकार उनकी बेलगाम जुबान ने जाने अनजाने ही सही दलितों की अस्मिता पर कुठाराघात तो किया ही। नतीजा, एक योगगुरु के रूप में पूरे देश में सम्मान पाने वाले बाबा के खिलाफ देश के विभिन्न भागों में दर्जनों केस दर्ज हो चुके हैं। हालांकि न्यायालय से उन्हें थोड़ी राहत  मिली है। इसलिए जरूरी है कि बेफिजूल की बचकानी बातों में अपनी ऊर्जा नष्ट करने के बजाय सभी संप्रदायों के धर्मगुरुओं को समाज को सही दिशा की ओर अग्रसर करने को प्रेरित करना चाहिए। इसी से समाज व देश का भला होगा। शब्द को ब्रह्म कहा गया है, इसलिए इसकी महत्ता को समझें। इसे यूं ही जाया न करें। धर्मगुरुओं के प्रति लोगों के मन में एक खास आदर का भाव होता है, उसे अक्षुण्ण बनाए रखने की जिम्मेदारी आपकी ही है। अपने ओछे बयानों से आम जनता की आस्था को खंडित न होने दें।

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