मंगलवार, 13 मई 2014

बनारस का ‘विरोध रस’


मोदी बनाम तमाम बनती जा रही बनारस की लड़ाई
ब्राह्मणों की नाराजगी बढ़ा रही मोदी की मुश्किलें
मोदी को रोकने के लिए दुश्मनों ने भी मिला लिया है हाथ

भाजपा के लिए नाक का सवाल बन चुकी वाराणसी में उसकी मुश्किलें भी कम नहीं हैं। वाराणसी के बहाने पूर्वांचल की 19 सीटों को फतह करने का सपना कब दिवास्वप्न में तब्दील हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। नरेंद्र मोदी के खिलाफ विरोधियों की ओर से जिस तरह के चक्रव्यूह का तानाबाना बुना गया है उससे पार पाना नामुमकिन न सही पर कठिन जरूर है। वाराणसी की लड़ाई अब ‘मोदी बनाम तमाम’ का रूप ले चुकी है। मोदी को हराने के लिए धुर विरोधी भी एकजुट हो गये हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में वाराणसी में मुरली मनोहर जोशी को जबरदस्त टक्कर देने वाले पूर्वांचल के माफिया डॉन मुख्तार अंसारी ने इस बार कांग्रेस के अजय राय को अपना समर्थन दे दिया है। मजे की बात यह है अजय राय व मुख्तार अंसारी एक-दूसरे के धुर विरोधी माने जाते हैं। मुख्तार अंसारी पर अजय राय के बड़े भाई की हत्या का आरोप है जिसके गवाह खुद अजय राय हैं। पिछले चुनाव में जोशी महज 19 हजार वोटों के अंतर से मुख्तार अंसारी से जीत पाये थे। मोदी के खिलाफ लामबंद विपक्ष की ऐसी जबरदस्त घेराबंदी से निपटने में अपनी सारी ऊर्जा खपा रही भाजपा को ब्राह्मणों की नाराजगी से भी जूझना पड़ रहा है। उसकी मुश्किलों में इजाफा करती दिख रही ब्राह्मणों की नाराजगी मुरली मनोहर जोशी को बनारस बदर करने को लेकर है। परंपरागत तौर पर भाजपा समर्थक माने जाने वाले ब्राह्मणों को मुरली मनोहर जोशी को वाराणसी से टिकट न देना रास नहीं आया। इस मुद्दे को धीरे-धीरे ब्राह्मण सम्मान से जोड़कर प्रचारित किया जा रहा है। इसे हवा देने में जुटे जोशी समर्थकों को अन्य दलों के ब्राह्मण नेताओं का भी समर्थन मिल रहा है। मोदी के खुले विरोध में आए एक स्थानीय ब्राह्मण नेता के अनुसार ‘यह हमारा अपमान है’। बहरहाल, ब्राह्मणों का यह विरोध क्या गुल खिलाएगा या चुनाव में इसका कितना असर पड़ेगा, यह तो 16 मई के बाद ही पता चलेगा, पर इतना तय है कि ब्राह्मणों की नाराजगी ने भाजपा की पेशानी पर बल जरूर ला दिया है। भाजपा नेता नाराज ब्राह्मणों को मनाने में एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। बावजूद इसके आलम यह है कि लाख कोशिशों के बाद भी मोदी समर्थक जोशी के समर्थकों को मनाने में अब तक विफल साबित हुए हैं। भाजपा से ब्राह्मणों की नाराजगी से वाकिफ कांग्रेस की स्थानीय इकाई भी इसे हवा देने में जुटी है। जोशी की इच्छा के विरुद्ध उन्हें वाराणसी से कानपुर भेज देने के निर्णय को ब्राह्मण सम्मान से जोड़कर कांग्रेस मोदी की राह में कांटें बिछाने की पुरजोर कोशिशों में जुटी हुई है। कुछ हद तक कांग्रेस की इस रणनीति को सफलता मिलती भी दिख रही है। अंदर ही अंदर यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि भाजपा ने जोशी को यहां से कानपुर भेजकर ब्राह्मणों का अपमान किया है। अगर समय रहते भाजपा इस असंतोष पर काबू नहीं कर पाई तो उसके सारे किए-कराए पर पानी फिरते देर नहीं लगेगी। वैसे भी पिछले लोकसभा चुनाव में ब्राह्मण मतदाताओं ने भाजपा को सबक सिखाने के लिए  हाथी पर सवार हो गये थे। इससे यूपी में बसपा को जबरदस्त फायदा हुआ था।

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