शनिवार, 17 मई 2014

नमो नम:, बाकी सब स्वाहा


न भूतो न भविष्यति। कुछ ऐसा ही कारनामा कर दिखाया है नरेंद्र मोदी ने। देश की सियासत में नरेंद्र मोदी एक ऐसा नाम बनकर उभरे हैं जिनसे कइयों को रश्क हो सकता है। चंद महीनों में ही कश्मीर से कन्या कुमारी व कच्छ से कुमायूं तक जनता के दिलो दिमाग पर जिस तरह मोदी छा गए थे, वह अभूतपूर्व थी। इस दौरान उन्होंने पूरे देश में लगभग तीन लाख किलोमीटर की यात्रा की। अपनी लगभग पांच सौ रैलियों, च...ाय पे चर्चा व अन्य कार्यक्रमों की बदौलत उन्होंने ‘अब की बार मोदी सरकार’ को एक तरह से जनांदोलन ही बना दिया। मोदी लहर कब सुनामी में बदल गई, विरोधियों को पता ही नहीं चला। मोदी विरोधी कभी सपने में भी यह नहीं सोच पाए कि देश में ‘नमो नम:, बाकी सब स्वाहा’ का अंडरकरंट बह रहा है। चुनाव परिणाम ने मोदी के दावे को सत्य साबित कर दिया है कि कांग्रेस किसी भी राज्य में दहाई का आंकड़ा नहीं पार कर पाएगी। इसी के साथ कई राज्यों में कांग्रेस का खाता भी नहीं खुलेगा। हूबहू वैसा ही परिदृश्य दिखाई दे रहा है जैसा मोदी ने दावा किया था। इस चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक का भ्रम तो टूटा ही, जाति-उपजाति का बंधन भी ढीला पड़ा। ‘नमो नम: बाकी सब स्वाहा’ की अनुगूंज में जातिवाद की राजनीति के लिए कुख्यात उत्तर प्रदेश व बिहार में मुलायम सिंह यादव, मायावती व लालू प्रसाद यादव जैसे क्षत्रप कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रह गए हैं। लालू के वह दावे सिर्फ ‘गाल बजाने’ जैसा साबित हुए, जिसमें उन्होंने कहा था कि उनकी पार्टी ने बिहार में मोदी लहर को रोक दिया है। मोदी की सुनामी में उनकी पत्नी राबड़ी देवी व बेटी मीसा भारती दोनों हार गईं। सबसे बुरी गत हुई नीतीश कुमार की। मुस्लिम वोटों की चाहत में एनडीए से अलग होने का उन्हें जबर्दश्त खामियाजा भुगतना पड़ा है। बिहार की जनता ने उन्हें महज दो सीटों पर निपटा दिया है। मोदी समर्थकों द्वारा चुनाव के दौरान अति उत्साह में दिए गए नारे ‘हर हर मोदी, घर घर मोदी’ की सार्थकता इससे भी साबित हो रही है कि कई राज्यों से कांग्रेस पूरी तरह साफ हो गई। ‘मोदी-मोदी’ की गूंज में कांग्रेस का इन राज्यों में खाता तक नहीं खुला। बड़े-बड़े नाम धराशायी हो गए। चुनावी इतिहास में कांग्रेस की इतनी बुरी गत इससे पहले कभी नहीं हुई थी। वह पूरे देश में कुल मिलाकर 50 का आंकड़ा भी नहीं छू पाई। मोदी को मिला जनसमर्थन पहले लहर में बदला और देखते ही देखते कब सुनामी में बदल गया इसका आकलन खुद भाजपा भी नहीं कर पाई। उसे भी इतनी जबर्दश्त जीत की उम्मीद नहीं थी। ऐसी लहर सिर्फ 1984 में दिखी थी। उस वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति लहर में देश ने राजीव गांधी को प्रचंड बहुमत दिया था। तीस साल बाद एक बार फिर देश ने मोदी में वैसी ही आस्था दिखाई है। विरोधियों द्वारा लगातार खलनायक के रूप में प्रस्तुत किए जाते रहे मोदी को देश की जनता ने रातोंरात महानायक बना दिया है। नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने देश की जनता के मन में ढेर सारी उम्मीदें जगाई हैं, अब उन्हें पूरा करने की चुनौती उनके सामने है।

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