बुधवार, 14 मई 2014

कई मायनों में याद रखा जाएगा यह चुनाव


16वीं लोकसभा के लिए पांच सप्ताह से अधिक समय तक चले मैराथन मतदान का सिलसिला समाप्त हो चुका है। कल परिणाम भी आ जाएगा। संयोग से 16वीं लोकसभा के लिए संपन्न हुए चुनाव की मतगणना 16 मई को होने जा रही है। फिलहाल, एग्जिट पोल का दौर जारी है। ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ की सुगबुगाहट के बीच बाजार आसमान में कुलांचे भर रहा है। खैर, इसकी भी असलियत कल सामने आ ही जाएगी। वैसे यह चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक रहा। इस चुनाव को इसलिए भी याद रखा जाएगा कि पहली बार इतने लंबे समय तक मतदान प्रक्रिया चली। पूरे देश में नौ चरणों में संपन्न हुए मतदान के दौरान कोई बड़ी दुखद घटना नहीं घटित हुई। निश्चय ही इसका श्रेय चुनाव आयोग को दिया जाना चाहिए। देखा जाय तो यह चुनाव अब तक का सबसे महंगा चुनाव रहा है। एक अनुमान के मुताबिक केवल चुनाव प्रचार में ही 30 हजार करोड़ रु पए खर्च हो गए। भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने पहली बार 3डी रैली की तकनीक का उपयोग किया। इसके जवाब में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने तमाम न्यूज चैनलों पर एक ही समय विज्ञापन का स्लॉट लेकर देश को संबोधित किया। इस मैराथन प्रचार में सबसे अधिक मोदी ने 25 राज्यों में तीन लाख किलोमीटर घूम कर 500 से अधिक रैलियों को संबोधित किया। मोदी 1390 3डी रैलियां, 4827 पब्लिक प्रोग्राम और लगभग चार हजार चाय पर चर्चा में शामिल हुए। 1984 के बाद पहली बार वोटरों ने बंपर वोटिंग कर लोकतंत्र में अपनी भरपूर आस्था जताई। हालांकि यदाकदा राजनीतिक दल लोकतंत्र के इस महायज्ञ को कलंकित करते भी देखे-सुने गए। सत्ता को बरकरार रखने व पाने को लेकर राजनीतिक जुनून चरम पर रहा। कई वाकये ऐसे हुए जिसने लोकतंत्र को मजबूती देने के बजाय शर्मसार ज्यादा किया। कभी न भूलने वाली घटनाओं के लिए भी यह चुनाव याद रखा जाएगा। इस पर जमकर विवादों की छाया भी पड़ी। यह जुनूनी सफर पांच मार्च से शुरू हुआ था जो 12 मई तक अनवरत चलता रहा। चुनाव प्रचार का गिरता स्तर इस बार चिंता छोड़ गया। राजनीति में मर्यादा की सारी सीमाएं टूटीं और निजी जिंदगी सार्वजनिक तौर पर चुनावी मुद्दे बनी। मोदी की पत्नी से लेकर राहुल, प्रियंका तक के निजी मामले उठे, दिग्विजय सिंह की निजी जिंदगी भी पब्लिक डोमेन में आ गई। कोई मोदी की बोटी-बोटी काट रहा था, तो कोई मोदी विरोधियों को पाकिस्तान भेज रहा था। कोई कह रहा था कि राहुल गांधी दलितों के घर जाकर हनीमून मनाते हैं तो कोई करगिल फतह को मुस्लिम सैनिकों की देन बता रहा था। एक नया आयाम इस चुनाव में जो देखने को मिला वह था सोशल मीडिया। आम चुनाव में फेसबुक, ट्विटर और गूगल ने भी अहम भूमिका निभाई। राजनीतिक दल इन सोशल साइट्स पर एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा में लगे रहे। इस चुनाव में एक और परंपरा यह टूटी कि अब तक अमूमन बड़े नेता एक-दूसरे के खिलाफ न बड़े उम्मीदवार उतारते थे, न ही उनके गढ़ में गहन चुनाव प्रचार करने जाते थे। लेकिन इस बार राजनीतिक रण में यह अनकहा कोड भी टूट गया। राहुल के गढ़ में मोदी ने रैली की तो जवाब में राहुल बनारस में रोड शो करने पहुंच गए।

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