बुधवार, 21 मार्च 2012

भतीजे का धमाल

(साप्ताहिक इतवार में प्रकाशित)
सैंया भये कोतवाल अब डर काहे का......। जी हा, कुछ यही हाल इन दिनों पश्चिम बंगाल का है और यहां कोतवाल से तात्पर्य मुख्यमंत्री से है। पूरे राज्य में सत्ता का नशा सिर चढ़कर बोल रहा है। चाहे वह सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता हों या स्वयं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के परिजन। इन्हें पूरा विश्वास है कि वे चाहे कुछ भी करें उनका बाल बांका नहीं होने वाला। दरअसल इस विश्वास के वाजिब कारण भी हैं। राजनीतिक बदले के रूप में तृणमूल कार्यकर्ताओं द्वारा किया जाने वाला महिलाओं से बलात्कार हो या विरोधी दल के कार्यकर्ताओं की हत्या अथवा सरेआम पत्रकारों की पिटाई। हर घटना में मुख्यमंत्री को विरोधियों का हाथ नजर आता है। पिछले दिनों घटी इन सारी घटनाओं को पूर्व नियोजित और मनगढ़ंत (साजानो) कहकर उन्होंने इनसे पल्ला झाड़ लिया। मुख्यमंत्री के इस तरह के बयान पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा रहे हैं। परिणाम यह हो रहा है कि हर दिन इस तरह की दर्जनों घटनाएं घट रही हैं। इस परिपेक्ष्य में राज्य भाजपा अध्यक्ष राहुल सिन्हा का कहना है कि वाममोर्चा के दीर्घ 34 वर्षों के आंतक राज से आजिज जनता ने तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी की "हिंसा नय शांति चाई" (हिंसा नहीं, शांति चाहिए) नारे को हाथोंहाथ लिया और पूरे विश्वास के साथ राज्य की बागडोर उनके हाथ में सौंप दी किन्तु अब देखा जा रहा है कि यह सरकार तो पूर्व वाममोर्चा सरकार से भी ज्यादा असंवेदनशील है। तृणमूल कार्यकर्ता प्रारंभिक चुप्पी के बाद राजनीतिक बदला भजाने में जुट गये हैं। स्वयं महिला होने के बावजूद मुख्यमंत्री महिलाओं से हो रहे बलात्कार को मनगढ़ंत करार देकर अपराधियों का मनोबल बढ़ाने में जुटी हुई हैं। यह उनकी असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा है। अस्पतालों में हो रही नवजातों की मौत और कर्ज तले दबे किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्या को राजनीतिक विरोधियों की साजिश कहना राज्य भाजपा अध्यक्ष की नजर में मुख्यमंत्री के असंवेदनशील होने का परिचायक है।
अब जब मुख्यमंत्री कोतवाल की भूमिका में हैं तो उनके परिजन भला पीछे कैसे रहते। मुख्यमंत्री के भतीजे आकाश बनर्जी की दबंगई ने तो पूरे प्रशासन को ही हतप्रभ कर दिया। सवाल पूछा जाने लगा कि क्या यहां कोई भी सुरक्षित नहीं है। सवाल यह भी है कि माकपा राज से मुक्ति के बाद क्या जंगलराज कायम होने की डगर पर है पश्चिम बंगाल। मामला है एक ट्रैफिक इंस्पेक्टर को पीटे जाने का। और यह कारनामा किया है मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे आकाश बनर्जी ने। अपने साथियों के साथ इनोवा गाड़ी में सवार आकाश को ट्रैफिक भंग करने पर रोका जाना नागवार गुजरा। गाड़ी से उतरकर खुद को मुख्यमंत्री का भतीजा बताते हुए उसने सैकड़ों लोगों की उपस्थिति में ट्रैफिक इंस्पेक्टर सुबीर घोष को तमाचा जड़ दिया। ट्रैफिक इंस्पेक्टर घोष ने आरोप लगाया कि आकाश ने चाटा मारने के साथ ही गाली गलौज भी की। चूंकि मामला ममता बनर्जी के भतीजे से जुड़ा था इसलिए सुबीर की सूचना पर घटनास्थल पर पहुंची स्थानीय वाटगंज पुलिस उन्हें थाने ले गयी मगर बगैर कोई मामला दर्ज किये ही उसे व उसके साथियों को छोड़ दिया। आकाश मुख्यमंत्री के बड़े भाई काली बनर्जी का पुत्र हैं। सूत्रों के अनुसार उसकी मां ने गृह कलह से तंग आकर कुछ साल पहले आत्महत्या कर ली थी। मातृविहीन आकाश की गतिविधियों से पूरा परिवार ही परिचित था। बुआ ममता बनर्जी के राज्य की बागडोर संभालने के बाद वह और ज्यादा उच्छृंखल होता चला गया। वैसे मुख्यमंत्री के निकटस्थ अन्य परिजनों के ऊपर भी छिटपुट आरोप लगते रहे हैं। हालांकि दबदबे की वजह से कोई खुलकर बोलना नहीं चाहता। बहरहाल ट्रैफिक इंस्पेक्टर को पीटे जाने का मामला भी अन्य मामलों की तरह ही दब गया होता यदि मीडिया में इसका पर्दाफाश नहीं हुआ होता। जैसे ही बगैर कोई केस दर्ज किये आकाश को छोड़े जाने की जानकारी स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ताओं को लगी उन्होंने रास्ता अवरोध कर प्रदर्शन शुरू कर दिया। उसी के बाद यह मामला मीडिया में आ गया। आरोप है कि थाने से बगैर किसी केस के आकाश को छोड़े जाने के पीछे स्थानीय विधायक व राज्य के शहरी विकास मंत्री फिरहाद हकीम उर्फ बॉबी हकीम का हाथ था। उन्होंने ही पुलिस पर दबाव डालकर उसे छोड़े जाने को कहा था। खैर मामले को मीडिया में तूल पकड़ता देखकर आकाश की गिरफ्तारी का फरमान जारी किया गया। वैसे भी इन दिनों ममता का मीडिया के एक हिस्से से छत्तीस का आंकड़ा चल रहा है। कभी एक सुर में ममता का गुणगान करने वाली मीडिया का राग बेसुरा हो गया है। मीडिया सरकार की बखिया उधेड़ने में लगी हुई है। एक ओर मीडिया है जो ममता को घेरने का कोई मौका चूकना नहीं चाहती तो दूसरी तरफ राज्य की जनता का भी धीरे धीरे ही सही पर इस सरकार से भोहभंग होता सा प्रतीत हो रहा है। बदला नय, बदल चाई (बदला नहीं, बदलाव चाहिए) और हिंसा नय, शांति चाई (हिंसा नहीं, शांति चाहिए) का नारा बुलंद कर राज्य की सत्ता पर काबिज हुई तृणमूल कांग्रेस सरकार की कथनी और करनी में फर्क से राज्य की जनता खुद को ठगा महसूस कर रही है। बहरहाल मीडिया व राजनीतिक दलों के बढ़ते दबाव ने मुख्यमंत्री को आकाश की गिरफ्तारी का आदेश देना पड़ा। सिलीगुड़ी दौरे पर गयीं मुख्यमंत्री को मीडियाकर्मियों ने घेरा और भतीजे को बगैर कोई केस दर्ज किये छोड़े जाने को लेकर लगे सवाल पर सवाल दागने। मजबूरन मुख्यमंत्रो को अपने ही भतीजे को गिरफ्तार करने का निर्देश देना पड़ा। गिरफ्तारी का फरमान मिलते ही पुलिस ने इनोवा गाड़ी समेत आकाश बनर्जी व उसके दो दोस्तों नीतीश सिंह व अमित मिश्र के साथ ही गाड़ी के ड्राइवर को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तार नीतीश व अमित तृणमूल कांग्रेस के नवगठित युवा संगठन "तृणमूल युवा" से जुड़े हुए हैं। इस संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष ममता के एक और भतीजे अभिषेक बनर्जी हैं। गिरफ्तारी के बाद जहां राज्य के उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी ने इस पर मंतव्य जाहिर करने से मना कर दिया वहीं, राज्य सचिवालय राइटर्स बिल्डिंग में शहरी विकास मंत्री फिरहाद हकीम ने इसे मुख्यमंत्री द्वारा राजधर्म के पालन का अनूठा उदाहरण बताते हुए खुद की सरकार की पीठ थपथपाई। जबकि स्वयं हकीम ने ही स्थानीय पुलिस पर दबाव डालकर आकाश व उसके साथियों को छोड़ने को कहा था। बहरहाल दो रात जेल में गुजारने के बाद चारों को जमानत पर छोड़ दिया गया है। माकपा ने इसे कानून व्यवस्था का मामला बताते हुए इस पर सख्त कार्रवाई की मांग की।
सत्ता के मद में चूर होकर ट्रैफिक इंस्पेक्टर को थप्पड़ मारने वाले आकाश पर इससे पहले भी इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने के अभियोग लगते रहे हैं। अभी हाल ही में उन्होंने हावड़ा के बोटैनिकल गार्डेन में सुरक्षागार्ड से धक्का मुक्की की थी। वहां भी उन्होंने मुख्यमंत्री के भतीजे के तौर पर परिचय देते हुए शाम के समय बोटैनिकल गार्डेन में अपनी महिला मित्र के साथ जाने की जबर्दस्ती कोशिश की। सुरक्षा जवानों द्वारा रोके जाने पर खुद को मुख्यमंत्री का भतीजा होने की धौंस जमाते हुए उन्हें देख लेने की धमकी दी थी। इस तरह की घटना दो बार 19 फरवरी व 4 फरवरी को हुई। संयुक्त निदेशक (सुरक्षा ) हिमाद्रीशेखर देवनाथ ने इस बात की तस्दीक की। अदालत के आदेशानुसार बोटैनिकल गार्डेन का गेट शाम को बंद कर दिया जाता है। उसके बाद वहां प्रवेश प्रतिबंधित है। घटना पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए प्रदेश कांग्रेस के महासचिव कनक देवनाथ ने इतवार से कहा कि यह घटना तृणमूल कार्यकर्ताओं के साथ ही साथ मुख्यमंत्री के परिजनों के सत्ता के मद में चूर होकर निरंकुश होते जाने को प्रतिबिंबित कर रहा है। अगर मुख्यमंत्री का रवैया इसी तरह हर घटना को मनगढ़ंत करार देने का रहा तो यह एक दिन उन्ही के लिए भस्मासुर साबित होगा। उन्होंने चेतावनी दी कि भले ही कांग्रेस सरकार में शामिल है किन्तु ऐसी घटनाओं को चुपचाप मूकदर्शक बनकर नहीं देखेगी।
तृणमूल कार्यकर्ताओं के सत्ता के नशे मे चूर होकर निरंकुश होते जाने के हाल ही में कई मामले प्रकाश में आये हैं। कटवा, बर्दवान समेत राज्य के अन्य हिस्सों में राजनीतिक बदला भजाने के क्रम में जहां औरतों की अस्मत लूटी जा रही है, वहीं विरोधी दलों के कार्यकर्ताओं की हत्याएं की जा रही हैं। रोज ब रोज घट रही ऐसी घटनाएं और सरकार की लीपापोती भयानक तस्वीर पेश कर रही है। यह स्थिति कोढ़ में खाज की तरह है। गत दिनों बर्दवान के सीपीआईएम के पूर्व विधायक प्रदीप ता की हत्या कर दी गयी। 22 फरवरी को एक जुलूस का नेतृत्व कर रहे पूर्व विधायक प्रदीप ता (55) व एक माकपा कार्यकर्ता कमल गाइन (65) की पीट-पीट कर हत्या कर दी गयी। आरोप है कि हथियारों से लैस तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उन दोनों को जुलूस से खींचकर जमकर पिटाई की। दिनदहाड़े सैकड़ों लोगों की उपस्थिति में हुई मार कुटाई में पूर्व विधायक की तो घटनास्थल पर ही मौत हो गयी जबकि कमल गाइन ने अस्पताल के रास्ते में दम तोड़ दिया। सबसे दुखद बात यह रही कि राजनेता इस लोमहषर्क घटना पर भी राजनीति करने से बाज नहीं आये। जहां माकपा नेतृत्व ने राज्य में गुंडाराज कायम होने का आरोप लगाया वहीं दिल्ली में राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसे माकपा की आपसी रंजिश का नतीजा बताया। फिर क्या था तृणमूल के सभी छोटे बड़े नेताओं ने इस हत्याकांड का आरोप माकपा पर ही मढ़ना शुरू कर दिया।
बद्रीनाथ वर्मा
डी/ 150 सोनाली पार्क, बांसद्रोनी, कोलकाता - 700070
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