सोमवार, 26 मार्च 2012

हिटलर दीदी

(नई दिल्ली से प्रकाशित साप्ताहिक "इतवार" के एक अप्रैल के अंक में प्रकाशित)
भले ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी यह सोच कर खुश हो रही हैं कि उन्होंने दिनेश त्रिवेदी को निपटा दिया। लेकिन उनको निपटाने में उनकी साख पर जो बट्टा लगा है उसका परिमार्जन जल्द नहीं होने वाला है। करीब चार दिनों तक चले हाई बोल्टेज ड्रामे के बाद त्रिवेदी ने 18 मार्च की शाम प्रधानमंत्री को अपना इस्तीफा भेज दिया। कहा जा रहा है कि ममता के बढ़ते दबाव ने कांग्रेस को ऐसा करने के लिए मजबूर कर दिया। जैसे ही पता चला कि अपने सांसदों के साथ बैठक करने ममता दिल्ली आ रही हैं । त्रिवेदी को संदेश भेजा गया कि वे इस्तीफा दे दें। यह संदेश खुद प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री वी नारायणसामी लेकर त्रिवेदी के पास गये थे। सूत्रों के अनुसार इसमें वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने भी अहम भूमिका निभाई। बस क्या था त्रिवेदी के बगावती सुर नरम पड़ गये। पिछले चार दिनों में एक बार भी ममता से बात नहीं करने वाले त्रिवेदी ने तृणमूल सुप्रीमो ममता के दिल्ली आने की खबर पाते ही उन्हें फोन किया। उस वक्त वे कालीघाट स्थित 30 नंबर हरीश बी चटर्जी लेन स्थित अपने आवास से दिल्ली की उड़ान पकड़ने के लिए निकल चुकी थीं। सूत्रों के अनुसार ममता ने उन्हें धमकाया और कहा कि यदि वे खैर चाहते हैं तो तुरंत अपना त्यागपत्र दें। तृणमूल सुप्रीमो के कड़े तेवर ने त्रिवेदी के कस बल निकाल दिये। उन्होंने उन्हें बताया कि वे प्रधानमंत्री कार्यालय को अपना इस्तीफा भेज चुके हैं। परिणाम हुआ ममता के दिल्ली पहुंचने से पहले ही त्रिवेदी का इस्तीफा हो चुका था। अपने इस्तीफे की जानकारी देते हुए दिल्ली में त्रिवेदी ने कहा कि ममता से बात करने के बाद उन्होंने अपना इस्तीफा प्रधानमंत्री के पास भेज दिया है। उन्होंने ममता बनर्जी को अपनी नेता बताते हुए खुद को पार्टी का वफादार सैनिक कहा। उन्होंने ममता के कशीदे पढ़ते हुए बड़ी मासूमियत से कहा कि तृणमूल सांसद व केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री सुदीप वंद्योपाध्याय के बयान ने गलतफहमी पैदा कर दी थी। वे तो कभी का इस्तीफा दे चुके होते किन्तु वंद्योपाध्याय के संसद में दिये गये बयान " त्रिवेदी को पार्टी की तरफ से इस्तीफा देने के लिए नहीं कहा गया है " ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। खैर, चार दिनों तक चले इस हाई वोल्टेज ड्रामे के पटाक्षेप के पीछे कई कहानियां हवा में तैर रही हैं। कहा जा रहा है कि त्रिवेदी की पीठ थपथपा कर कांग्रेस ममता को उनकी औकात दिखा रही थी। इस बीच कई तरह की सौदेबाजी की भी चर्चा गर्म रही।
ममता की नाराजगी को देखते हुए वैसे तो त्रिवेदी का जाना तय ही माना जा रहा था किन्तु त्रिवेदी ने जो बगावती तेवर अपनाया उसने ममता के आभा मंडल को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। तृणमूल कांग्रेस में ऐसा पहली बार हुआ है कि ममता की हुक्मउदूली हुई है। उन्हीं की बिल्ली चार दिनों तक उन्हीं को म्याउं करती रही और वे लाचार खून का घूंट पीती रहीं। अग्निकन्या को निकट से जानने वालों का दावा है कि ममता अपने दुश्मनों को कभी नहीं भूलतीं। वे त्रिवेदी को भी सबक सिखायेंगी ही। आज नहीं तो कल। परिणाम चाहे जो हो। दूसरी तरफ कहा जा रहा है कि त्रिवेदी के बगावती तेवर के पीछे खुद उनकी ही पार्टी के कुछ सांसदों का समर्थन था। दीदी के हिटलरी अंदाज से ये सांसद खफा बताये जाते हैं। ऐसे सांसदों की संख्या करीब आठ बतायी जा रही है। सूत्रों का कहना है कि ये सभी लोग ममता के सताये हैं। इन्होंने ही त्रिवेदी को डटे रहने का हौसला दिया था। उन लोगों ने त्रिवेदी को भरोसा दिया था कि वे उनके साथ हैं। त्रिवेदी के संबंध में आम राय यही है कि वे बड़े ही सभ्य सुसंस्कृत व भले इंसान हैं। वे आम राजनेताओं की तरह नहीं हैं। राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि त्रिवेदी को जिस तरह हटाया गया उससे उनके पक्ष में माहौल बना है। लोगों को लगता है कि त्रिवेदी के साथ नाइंसाफी हुई है। प्रेक्षकों के अनुसार त्रिवेदी को अगर पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जाता हैं तो वे ममता के लिए भस्मासुर भी साबित हो सकते हैं। राजीव गांधी के कार्यकाल को याद करते हुए राजनीतिक पंडित कहते हैं कि कहीं ऐसा न हो कि त्रिवेदी ममता के लिए दूसरा वी पी सिंह साबित हों।
इस्तीफा देने में हुई देरी का ठीकरा भले ही त्रिवेदी ने सुदीप के सिर फोड़ा किन्तु ममता बनर्जी ने 17 मार्च को अपने चार राज्यसभा सांसदों के नामांकन के अवसर पर संवाददाताओं से साफ कह दिया था कि दिनेश त्रिवेदी अब उनके रेलमंत्री नहीं हैं। उन्होंने कहा कि उनकी तरफ से अगले रेल मंत्री के तौर पर मुकुल राय हैं। साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया कि वे एक ही बात बार-बार नहीं दोहरायेंगी। इससे पहले लोकसभा में तृणमूल के मुख्य सचेतक कल्याण बनर्जी ने फोन करके दिनेश त्रिवेदी को अपने पद से इस्तीफा देने को कहा था। लेकिन त्रिवेदी ने यह कह कर इस्तीफा देने से मना कर दिया कि जब तक स्वयं ममता बनर्जी उनसे लिखित में इस्तीफा नहीं मांगती वो इस्तीफा नहीं सौंपेंगे। इस सारे घटनाक्रम पर इतवार से फोन पर बात करते हुए सुदीप वंद्योपाध्याय ने कड़े शब्दों में कहा कि अगर त्रिवेदी इज्जत से नहीं जाना चाहते तो उन्हें उसी भाषा में समझाया जायेगा जो उन्हें समझ में आयेगी। संदेश साफ था कि उन्हें पार्टी और बर्दास्त करने के मूड में नहीं है। उन्होंने कांग्रेस की गोद में खेलने का आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें मंत्री बनाते समय भी उन्हें फोन पर ही निर्देश दिया गया था।
गौरतलब है कि 14 मार्च को संसद में पेश रेल बजट में यात्री किराया बढ़ाये जाने को आधार बनाकर दिनेश त्रिवेदी से इस्तीफा देने को कहा गया था। त्रिवेदी ने यह कह कर इस्तीफा देने से मना कर दिया कि जब तक स्वयं ममता या प्रधानमंत्री उनसे इस्तीफा देने के लिए नहीं कहते वे कत्तई इस्तीफा नहीं देंगे। उन्होंने दलील दी कि जो रेल बजट उन्होंने पेश किया है वे उसे लावारिश नहीं छोड़ सकते। वे मैदान से भागेंगे नहीं। वे संसद में रेलमंत्री के तौर पर बहस में भाग लेंगे और जो बजट उन्होंने प्रस्तुत किया है उसे अंजाम तक पहुंचायेंगे। उन्होंने देश व रेलवे को अपनी प्राथमिकता बताते हुए कहा कि पार्टी उनकी प्राथमिकता सूची में तीसरे नंबर पर है। रेलवे के लिए राष्ट्रीय नीति बनाये जाने की वकालत करते हुए त्रिवेदी ने कहा कि पार्टियों की नीति के आधार पर रेलवे की नीति नहीं बदलनी चाहिए। देश पहले है पार्टी बाद में अगर देश के लिए काम करना बगावत है तो यही सही। उनके इस बयान से आग बबूला ममता ने इसे कांग्रेस का गेमप्लान करार देते हुए कहा कि वह त्रिवेदी के कंधे पर बंदूक रखकर चला रही है। गुस्साईं ममता बनर्जी किसी भी सूरत में दिनेश त्रिवेदी को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं थीं। वे उनके इस्तीफे पर अड़ गयीं। उन्होंने साफ कर दिया कि उनकी पार्टी की ओर से मुकुल राय ही अगले रेल मंत्री होंगे। लेकिन सूत्रों के मुताबिक खुद प्रधानमंत्री मुकुल को रेल मंत्री बनाने के पक्ष में नहीं थे। पिछली बार भी प्रधानमंत्री ने ही मुकुल राय के खिलाफ वीटो लगा दिया था। इसी वजह से मजबूरी में दिनेश त्रिवेदी को रेलमंत्री बनाया गया था। हालांकि, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पत्रकारों से कहा था कि यदि स्थितियों की मांग हुई तो सरकार रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी के बदलाव पर विचार करेगी। जब उनसे पूछा गया था कि क्या वह तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी की यात्री किराए में वृद्धि के मुद्दे पर त्रिवेदी को हटाये जाने की मांग पर विचार करेंगे। इस पर उन्होंने कहा था कि अगर इस तरह की स्थितियां बनती हैं तो हम इस पर विचार करेंगे।
गौरतलब है कि 14 मार्च को पेश किये गये त्रिवेदी के पहले रेल बजट में बीते 10 सालों में पहली बार यात्री किराये में वृद्धि का प्रस्ताव है। यात्री किराये में वृद्धि से नाराज पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व पार्टी प्रमुख ममता ने बजट पेश किये जाने के कुछ ही घंटों बाद प्रधानमंत्री को फैक्स भेजकर त्रिवेदी को हटाकर उनके स्थान पर उन्हीं की पार्टी के एक अन्य नेता मुकुल राय को नियुक्त करने को कहा था। ममता के हिटलरी अंदाज से तंग कांग्रेस को भी लगा कि अब ममता को सबक सिखाने का वक्त आ गया। वह भी अड़ गयी। कांग्रेस की तरफ से साफ कर दिया गया कि प्रधानमंत्री या कांग्रेस त्रिवेदी को पद छोड़ने के लिए नहीं कहेगी। उसका इशारा साफ था कि वह तृणमूल कांग्रेस के अंदर मची घमासान व उससे होने वाले तमाशे को दूर से ही देखेगी। संप्रग सरकार के शीर्ष नेतृत्व ने तृणमूल आलाकमान को साफ कर दिया है कि वह त्रिवेदी से इस्तीफा लेकर दे, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सीधे उनसे इस्तीफा नहीं मांगेंगे। इस बीच रेलवे की पांच सशक्त यूनियनों ने दिनेश त्रिवेदी को हटाए जाने और किराया वृद्धि वापस लेने की स्थिति में हड़ताल की धमकी दे दी। इस बारे में उन्होंने पीएम को पत्र भी लिख मारा। इस बीच कांग्रेस के कुछ नेताओं ने दिनेश त्रिवेदी की पीठ पर हाथ रख दिया। यही कारण है कि त्रिवेदी ने चुपचाप इस्तीफा देने से इनकार कर दिया। इस सारे घटनाक्रम पर पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने अपनी टिप्पणी करते हुए कहा कि भले ही त्रिवेदी रहे या जायें किन्तु उन्होंने ममता को तो उनकी औकात दिखा ही दी। उन्होंने चुटकी ली कि अब आया है ऊंट पहाड़ के नीचे। संसदीय इतिहास की इस अभूतपूर्व घटना पर लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने कहा कि ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी मंत्री ने बजट पेश किया हो और उसी की पार्टी उससे इस्तीफा मांग रही हो। उन्होंने त्रिवेदी को अपनी शुभेच्छाएं देते हुए कहा कि तृणमूल की यह कार्रवाई लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है। वहीं किराये में वृद्धि को आधार बनाकर रेलमंत्री को हटाये जाने पर टिप्पणी करते हुए राज्य वाममोर्चा के चेयरमैन विमान बोस ने इसे ममता की नाटकबाजी करार दिया। उन्होंने कहा कि ममता नाटक करने में माहिर हैं। इस घटनाक्रम ने साबित कर दिया कि वे ऊंचे दर्जे की अभिनेत्री हैं। राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता सूर्यकांत मिश्रा ने टिप्पणी की कि रेलमंत्रालय को आईसीयू में भेजने की जिम्मेदार त्रिवेदी की पूर्ववर्ती रेलमंत्री ममता बनर्जी हैं। अब देखना यह है कि वे पश्चिम बंगाल को कब आईसीयू में भेजती हैं।
बद्रीनाथ वर्मा
मोबाइल - 8017633285

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