बुधवार, 21 मार्च 2012

धन्ना सेठों की धमक

(साप्ताहिक 'इतवार' के २५ मार्च के अंक में प्रकाशित)
निर्वाचन आयोग द्वारा पश्चिम बंगाल में अप्रैल में रिक्त हो रही राज्यसभा की पांच सीटों के चुनाव की अधिसूचना जारी कर दी गयी। इसी के साथ बहुतों के मन में उच्च सदन की सदस्यता हासिल करने की आकांक्षा हिलोरे मारने लगी हैं। इसके लिए विभिन्न स्तरों पर गोटियां बैठाई जा रही है। चूंकि तृणमूल कांग्रेस अपने लगभग चार उम्मीदवारों को राज्य सभा में भेजने की कूब्बत रखती है इसलिए टिकट के तलबगारों ने सत्ता के इर्द गिर्द गणेश परिक्रमा शुरू कर दी है। राज्यसभा में पहुंचने के लिए विपक्षी पार्टियों के कुछ कद्दावर नेता भी लाइन में लगे हुए हैं। यदि मुख्यमंत्री की ओर से हरी झंडी मिल जाती है तो वे अपनी पुरानी पार्टियों को तिलांजलि देने में क्षण भर की भी देर नहीं करेंगे। इस के अतिरिक्त कुछ थैलीशाह भी जुगाड़तंत्र में जुटे हुए हैं। ऐसे में यह देखना मजेदार होगा कि किसकी इच्छा पूरी होती है और किसकी आस एक बार फिर अधूरी रह जाती है।
अप्रैल में पश्चिम बंगाल से राज्यसभा की पांच सीटें रिक्त हो रही हैं। इनमें से जिन राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो रहा है उनमें तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव व केन्द्रीय जहाजरानी राज्यमंत्री मुकुल राय, माकपा के मोइनुल हसन, समन पाठक, तपन कुमार सेन तथा भाकपा के आर सी सिंह हैं। संख्याबल के आधार पर तृणमूल कांग्रेस अपने तीन उम्मीदवारों को आसानी से राज्यसभा में भेज सकती है जबकि चौथे उम्मीदवार को जिताने के लिए थोड़ी जोड़तोड़ की जरूरत पड़ेगी। गोरखालैंड जनमुक्ति मोर्चा के विधायकों व कुछ अन्य विधायकों के सहयोग से चौथे उम्मीदवार को भी जिताने की रणनीति तृणमूल की ओर से बनायी जा रही है। माकपा भी अपने एक उम्मीदवार को राज्यसभा में भेज सकती है। कांग्रेस को अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए अतिरिक्त सात विधायकों की जरूरत पड़ेगी। जीत के लिए 49 विधायकों का समर्थन चाहिए जबकि राज्य विधानसभा में कांग्रेस विधायकों की संख्या महज 42 ही है। 30 मार्च को होने वाले चुनाव के लिए हालांकि अभी तक किसी भी राजनीतिक दल ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं किन्तु अंदरखाने मोलतोल जारी है। राज्यसभा के लिए खाली सीटों को भरे जाने के कार्यक्रम की घोषणा करते हुए चुनाव आयोग की ओर से इसकी अधिसूचना 12 मार्च को जारी कर दी गयी। नामांकन भरने की अंतिम तिथि 19 मार्च निर्धारित की गयी है जबकि 22 मार्च तक नाम वापस लिये जा सकेंगे। मतदान 30 मार्च को होगा और उसी दिन परिणाम भी आ जायेगा।
राज्यसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू होते ही राज्य में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गयी हैं। पर्दे के पीछे टिकटों के लिए जोड़तोड़ की जा रही है। इस काम में थैलीशाह भी जुटे हुए हैं। सूत्रों के अनुसार करोड़ों में बोली लगायी जा रही है। कहा जा रहा है कि जिसकी बोली ज्यादा होगी उसे ही टिकट मिलेगा। यह कोई नयी बात नहीं है और न ही आश्चर्यचकित होने की जरूरत है। पिछली बार भी यही हुआ था। पश्चिम बंगाल की राजनीतिक समझ रखने वालों का तो कहना है कि पिछली बार जून महीने में संपन्न राज्यसभा चुनाव में करोड़ों की डील हुई थी। वही खेल इस बार थोड़ा और बड़े पैमाने पर होगा। यहां एक अनार सौ बीमार वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। राज्यसभा की सीट हथियाने की मंशा रखने वाले धनकुबेरों को पैसे की परवाह नहीं है। उच्च सदन की सदस्यता हासिल कर माननीय कहलाने की आकांक्षा पाले थैलीशाह मुंहमांगी कीमत देने को तैयार बैठे हैं। शर्त यही है कि उन्हें राज्यसभा सांसद बनकर लालबत्ती में घूमने का सुअवसर मिल जाये। इसका गणित भी बड़ा सीधा है। आकलन है कि टिकट के लिए जितना पैसा दिया जायेगा उससे कई गुना दो वर्षों के कार्यकाल में उगाहा जा सकता है। ऐसे में यह किसी भी तरह से घाटे का सौदा नहीं है। यही कारण है कि किसी भी कीमत पर वे टिकट हासिल करना चाहते हैं। उनकी इस आकांक्षा को देखते हुए सत्ता के निकटस्थ लोग भी मोलभाव में तल्लीन हो गये हैं। बिचौलिए सत्ता के गलियारे में चक्कर लगाने लगे हैं। जोड़तोड़ जारी है। देखना यह है कि कौन किस पर भारी पड़ता है। एक बात तो सच है कि जिसकी थैली ज्यादा वजनदार होगी उसी को टिकट मिलेगा। हिन्दू महासभा के प्रदेश अध्यक्ष व सामाजिक कार्यकर्ता राज नाथानी कहते हैं कि अब यह बात छिपी नहीं है कि राज्यसभा के टिकट करोड़ों में बिकते हैं। यदि इस पर शीघ्र ही रोक नहीं लगी तो हमारे लोकतंत्र के मंदिर धनपशुओं व अपराधियों के सैरगाह बन जायेंगे। उनके अनुसार हिन्दू महासभा जल्द ही इस मुद्दे को लेकर विस्तृत जन आंदोलन करेगी। राज्यसभा सीट के लिए पर्दे के पीछे चल रही पैसे की जबरदस्त खेल की पुष्टि करते हुए इंडिया अगेंस्ट करप्शन के सक्रिय कार्यकर्ता सुशील पाण्डेय का कहना है कि जब तक सशक्त लोकपाल बिल पारित नहीं होता यह गंदा खेल यूं ही चलता रहेगा। इस खेल में सभी पार्टियों के बराबर रूप से शामिल होने का आरोप लगाते हुए उन्होंने सवाल किया कि पैसे के बल पर टिकट खरीदकर हमारा भाग्यविधाता बनने वाले लोग अपने पैसे की वसूली करेंगे या जनता की सेवा करेंगे। इसी राजनीतिक कदाचार की वजह से अब तक दो सौ से भी ज्यादा भ्रष्टाचार के बड़े मामले हुए है।
तृणमूल कांग्रेस की ओर से केन्द्रीय जहाजरानी राज्य मंत्री मुकुल राय का दोबारा राज्यसभा में पहुंचना लगभग तय है। इसी के साथ नाट्यकर्मी तथा राज्य में परिवर्तन का नारा बुलंद करने वाले बुद्धिजीवियों में अग्रणी भूमिका निभाने वाली अर्पिता घोष का नाम भी चर्चा में चल रहा है। तृणमूल कोटे की बाकी बची दो सीटों को लेकर अटकलें लगायी जा रही है। तृणमूल के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भाई गणेश बनर्जी भी राज्यसभा में जाना चाहते हैं। हालांकि इस पर निर्णय ममता को ही लेना है। दो सीटों के उम्मीदवारों का नाम लगभग तय होने के बाद बाकी बची दो सीटों के लिए सत्ता के दलाल अपनी गोटी लाल करने में जुटे हुए हैं। राजनीतिक पंडितों का विश्लेषण है कि इन सीटों पर बड़े बड़े लोगों की नजरें हैं। राज्यसभा में पहुंचने का ख्वाब देखने वालों में एक मीडिया घराने के मालिक भी हैं। उनके लिए जबरदस्त लाबिंग की जा रही है। मुख्यमंत्री तक उनकी बात पहुंचाने के लिए कई लोगों को लगाया गया है। तृणमूल सूत्रों के अनुसार कइयों का तो दावा है कि यदि तृणमूल कांग्रेस उन्हें अपने चौथे उम्मीदवार के रूप में भी मैदान में उतार दे तो बाकी मतों का इंतजाम वे खुद कर लेंगे। राजनीति में अपराध और धन के हावी होने का दोष अक्सर अनपढ़, गंवार और जाति-धर्म के दलदल में धंसी जनता पर मढ़ दिया जाता है। लेकिन यह कितना बड़ा झूठ है, यह साबित कर देता है राज्यसभा का चुनाव जिसमें चुनने का काम हमारे सांसद और विधायक जैसे जनप्रतिनिधि ही करते हैं।
स्वयंसेवी संस्था नेशनल इलेक्शन वॉच के एक अध्ययन के अनुसार राज्यसभा सांसदों में से कुछ इक्के दुक्के सदस्यों को अगर छोड़ दिया जाये तो सारे के सारे हमारे माननीय करोड़पति हैं। कुल सदस्यों के एक चौथाई सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। इन मुकदमों में हत्या की कोशिश, अपहरण, धोखाधड़ी व जालसाची से जुड़े अपराध शामिल हैं। लेकिन इन सभी लोगों को हमारे उन नेताओं ने चुनकर भेजा है जो राजनीति में अपराधियों के खिलाफ घुसपैठ पर गला फाड़ते रहते हैं। खास बात यह है कि इन उम्मीदवारों के नाम छांटने का काम हर पार्टी का आलाकमान करता है। इसलिए वह भी इससे लिए सीधे-सीधे दोषी है। नेशनल इलेक्शन वॉच देश भर के 1200 से ज्यादा संगठनों का साझा मंच है। यह मुख्य रूप से राजनीतिक सुधारों के लिए कार्यरत है और लोगों में वह चेतना पैदा करना चाहता है ताकि वे राजनीतिक पार्टियों पर खुद को बदलने के लिए दबाव डाल सकें।
नेशनल इलेक्शन वॉच संस्था की ओर से जारी अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार पिछली बार राज्यसभा की 54 सीटों के लिए 14 व 17 जून को दो चरणों में चुनाव संपन्न हुए थे। देश के बारह राज्यों की इन 54 सीटों के विजयी उम्मीदवारों में से एक चौथाई सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। निर्वाचन आयोग से 49 सीटों पर विजयी उम्मीदवारों के हलफनामों से पता चलता है कि उनमें से 15 (28 प्रतिशत) के खिलाफ आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं। इन चुनावों में प्रमुख पार्टियों में से कांग्रेस ने कुल सोलह प्रत्याशी मैदान में उतारे जिनमें से तीन (19 प्रतिशत) के खिलाफ आपराधिक मुदकमे चल रहे हैं। चाल, चरित्र और चेहरे में सबसे अलग होने का दावा करने वाली बीजेपी द्वारा नामांकित ग्यारह उम्मीदवारों में से दो अर्थात 17 प्रतिशत के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने तो दो के दोनों टिकट अपराधियों को ही दे दिये थे। बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के सात में से एक (सबसे कम 14 प्रतिशत) उम्मीदवार अपराधी है।
इसके अतिरिक्त पार्टियों द्वारा राज्यसभा टिकट की रेवड़ी देने में धनपशुओं को ही तवज्जो दी। राज्यसभा की इन 54 सीटों के लिए मैदान में उतरने वाले 80 प्रतिशत उम्मीदवार करोड़पति हैं। जिन विजयी 49 उम्मीदवारों के हलफनामे उपलब्ध हैं, उनमें से 38 (78 फीसदी) ने खुद स्वीकार किया कि उनकी संपत्ति करोड़ों में है। विजयी उम्मीदवारों की औसत संपत्ति 25.24 करोड़ रुपये थी। इनमें से 615 करोड़ के साथ सबसे अमीर राज्यसभा सांसद है विजय माल्या। मजे की बात यह है कि हलफनामें के अनुसार माल्या ने कहा है कि उनके पास कोई अचल संपत्ति नहीं है। माल्या के बाद तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के यालामंचिली सत्यनारायण चौधरी (189.7 करोड़) और झारखंड मुक्ति मोर्चा के कंवर दीप सिंह (82.6 करोड़) का नंबर आता है। निर्वाचन आयोग को दिये गये उम्मीदवारों के हलफनामे से यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है कि राजनीतिक पार्टियों का आलाकमान और उनके ज्यादातर नेता भाषणों में चाहे जो बोलते हों, लेकिन चुनने की बारी आती है तो वे धन और अपराध की ताकत को ही तवज्जो देते हैं। धन की ताकत के आगे सारे आदर्श फीके पड़ जाते हैं। एक बार फिर यही इतिहास दोहराये जाने की तैयारियां पर्दे के पीछे चल रही है। देखना यह है कि कौन बाजी मार ले जाता है।
बद्रीनाथ वर्मा
डी/150, सोनाली पार्क, बांसद्रोनी, कोलकाता - 700070
मोबाइल - 08017633285

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