बुधवार, 21 मार्च 2012

दरकता दीदी का किला

(साप्ताहिक इतवार में १८ मार्च के अंक में प्रकाशित)
मात्र 9 महीने पहले ही परिवर्तन की हवा पर सवार होकर पश्चिम बंगाल की सत्ता पर काबिज हुई तृणमूल कांग्रेस में असंतोष की खदबदाहट शुरू हो गयी है। हालांकि इस पर कोई खुलकर नहीं बोल रहा है किन्तु तृणमूली राजनीति की गहरी जानकारी रखने वाले सूत्रों के अनुसार अन्दरखाने खटास बढ़ रही है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो दिन ब दिन असंतोष तीब्रतर होता जा रहा है। अभी हाल ही में पार्टी के वरिष्ठ नेता व विधानसभा में सत्ता पक्ष के मुख्य सचेतक शोभनदेव चट्टोपाध्याय ने अपने असंतोष का खुलकर इजहार किया था। उन्होंने पत्रकारों से कहा था कि तृणमूल प्रमुख चाहें तो उनसे मुख्य सचेतक का पद भी वापस ले लें। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। चट्टोपाध्याय से तृणमूल श्रमिक संगठन आईएनटीटीयूसी का कार्यभार वापस लेकर सुब्रत मुखर्जी को देने से नाराज चट्टोपाध्याय ने उक्त तल्खी बयान की। इस कार्रवाई से अपमानित महसूस कर रहे चट्टोपाध्याय के करीबी सूत्रों का कहना है कि दीदी वफादारों की कीमत पर गैरों को गले लगा रही हैं।
इस कार्यवाही को शोभनदेव के पर काटने के रूप में देखा जा रहा है। तृणमूल सूत्रों के अनुसार वरिष्ठ नेताओं की बैठक में लिए गये इस फेरबदल के निर्णय जिसमें स्वयं शोभनदेव भी शामिल थे, पर अपना असंतोष जाहिर करते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री से कहा कि वे चाहें तो उनसे मुख्य सचेतक का पद भी वापस ले लें। हालांकि मुख्यमंत्री ने उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल करने की बात कही किन्तु उन्होंने साफ मना कर दिया। इतवार से हालांकि तृणमूल के इस वयोवृद्ध नेता ने खुद को पार्टी का समर्पित कार्यकर्ता बताते हुए किसी तरह के असंतोष से इन्कार किया किन्तु इसी के साथ इस उलटफेर को एक गहरा षड्यंत्र करार दिया। उन्होंने बड़ी तल्खी से कहा कि हो सकता है कि मेरी योग्यता में कोई कमी हो अथवा पार्टी के प्रति मेरी वफादारी में कमी हो। गौरतलब है कि चट्टोपाध्याय तृणमूल कांग्रेस के जन्मकाल से ही ममता बनर्जी के साथ हैं जबकि उनके स्थान पर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये गये सुब्रत मुखर्जी तृणमूल कांग्रेस से इस्तीफा देकर कांग्रेस में शामिल हो गये थे। विधानसभा चुनाव के पूर्व हवा का रुख देखकर मुखर्जी फिर तृणमूल में शामिल हो गये थे। बहरहाल तृणमूल श्रमिक संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यभार जहां राज्य के वरिष्ठ मंत्री सुब्रत मुखर्जी को सौंपा गया वहीं राज्य के श्रममंत्री पूर्णेन्दु बसु को प्रदेश आईएनटीटीयूसी का चेयरमैन बनाया गया। बसु की नियुक्ति को दोला सेन की नकेल कसने के रूप में देखा जा रहा है। दोला प्रदेश आईएनटीटीयूसी की अध्यक्ष हैं। इन दोनों नियुक्तियों ने तृणमूल कांग्रेस के भीतर असंतोष को हवा दे दी है। हालांकि तृणमूल सुप्रीमो व राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के दबदबे की वजह से कोई खुलकर कुछ नहीं बोल रहा है किन्तु राजनीतिक जानकारों के अनुसार अन्दरखाने कड़वाहट जरूर बढ़ रही है। जिस तरीके से चट्टोपाध्याय को आईएनटीटीयूसी के अध्यक्ष पद से हटाया गया उसे तृणमूल का एक हिस्सा उचित नहीं मानता। बैठक में शामिल एक वरिष्ठ नेता ने इतवार से अनौपचारिक बातचीत में इस कार्रवाई पर अपना असंतोष जाहिर करते हुए कहा कि शोभन दा के अनुभव व उनकी वरिष्ठता को देखते हुए मुख्यमंत्री को यह फरमान जारी करने से पहले उनसे अकेले में बात करनी चाहिए थी। दोला के करीबी सूत्रों के अनुसार चेयरमैन के रूप में बसु को अपने सिर पर बैठाये जाने को लेकर वे काफी असंतुष्ट हैं। प्रदेश कार्यालय तृणमूल भवन में नियमित दिखायी देने वाली दोला ने कई दिनों तक वहां से दूरी बनाये रखी। अलबत्ता उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से कहा कि इससे संगठन के कार्यों को मजबूती मिलेगी। इस फेरबदल पर तृणमूल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि यह फेरबदल संगठन में हावी गुटबाजी को खत्म करने के लिए की गयी है। दरअसल मुख्यमंत्री के पास विभिन्न स्रोतों से खबरें आ रही थीं कि दोला व शोभनदेव चट्टोपाध्याय की गुटबाजी का संगठन पर बुरा असर पड़ रहा है। उन दोनों में जारी अहम की लड़ाई से संगठन को हो रहे नुकसान को रोकने के लिए ही मुख्यमंत्री ने यह सख्त कदम उठाया। बहरहाल इस कदम से गुटबाजी खतम होगी या नहीं यह तो भविष्य के गर्भ में है किन्तु इतना सच है कि इससे पार्टी के भीतर असंतोष जरूर उबल रहा है। इसी तरह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के इर्दगिर्द उनकी परछाई की तरह दिखायी देने वाले विधायक व कोलकाता नगर निगम के मेयर शोभन चटर्जी भी अपने अधिकारों में कटौती को लेकर असंतुष्ट बताये जाते हैं। अभी हाल ही में नगर निगम के कई विभागों की जिम्मेदारी उनसे लेकर अन्यों को सौंप दी गयी। अक्सर ही मुख्यमंत्री की ओर से अपमान की हद तक मिलने वाली सार्वजनिक झिड़की को हंस कर टाल जाने वाले मेयर को अपने अधिकारों में की गयी कमी काफी खल रही है। हद तो तब हो गयी जब ममता ने अपने विश्वसनीय सिपहसालार राज्य के पूर्व परिवहन मंत्री व वर्तमान में मुख्यमंत्री द्वारा खाली की गयी दक्षिण कोलकाता लोकसभा सीट से निर्वाचित सुब्रत बख्शी को कोलकाता नगर निगम के काउंसिलरों की बैठक करने का निर्देश दिया। यह बैठक हुई भी। इससे राजनीतिक हलकों में यह चर्चा गरम है कि कहीं मेयर को हटाकर उनके स्थान पर सुब्रत बख्शी को लाये जाने की तैयारी तो नहीं की जा रही है। बहरहाल इस पर चुटकी लेते हुए एक वरिष्ठ तृणमूल नेता ने कहा कि शोभन नामधारी दोनों नेताओं के लिए दोनों सुब्रत शनि साबित हो रहे हैं। तृणमूल में शुरू हुई इस असंतोष की आहट से राज्य में विरोधियों के कान खड़े हो गये हैं। वे इस सबको अपने लिए मुफीद मान रहे हैं। उनका आकलन है कि आने वाले दिनों में असंतोष की आग और तेज धधकेगी।
बद्री नाथ वर्मा
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