बुधवार, 30 सितंबर 2015

सजनी हमहूं राजकुमार


बद्रीनाथ वर्मा
मगध एक्सप्रेस मुगलसराय से खुलकर दिलदारनगर को पीछे छोड़ते हुए जैसे ही कर्मनाशा नदी पार कर बिहार की सीमा में प्रवेश करती है, सियासत की शातिर हवा फिजा में महसूस होने लगती है। बक्सर आते-आते यह हवा अपने पूरे रौ में प्लेटफॉर्म से लेकर ट्रेन की बोगियों तक में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने लगती है। बिहार चुनावी मोड में आ चुका है, इसका आभास यहां भली-भांति होने लगता है। चुनावी चर्चा से ट्रेन की बोगियां भी अछूती नहीं रह जाती हैं। पटना पहुंचते-पहुंचते सियासी धुंध पूरी तरह से छंट जाती है। प्लेटफार्म से बाहर निकलते ही सब कुछ साफ साफ नजर आता है। यहां हर कोई ‘सजनी हमहूं राजकुमार’ की तर्ज पर बिहार को बदलने का दावा कर रहा है। यहां ख्वाबों की मंडी सच चुकी है। राजनीतिक दलों में सपना बेचने की होड़ लगी है। चुनावी मंडी में कौन कितना बड़ा सपना बेच सकता है, इसके लिए बाकायदा एक दूसरे को धकियाकर मतदाताओं को लुभाने की एक से एक तरकीबें आजमाई जा रही हैं। इसके लिए हर सड़क, चौराहा, यहां तक कि नुक्कड़ों व गलियों तक को नहीं बख्शा गया है। राजधानी पटना की सड़कों पर लगे नेताओं के बड़े-बड़े होर्डिंग्स बता रहे हैं कि बिहार बस उन्हीं के हाथों में सुरक्षित है। ‘आगे बढ़ता रहे बिहार, फिर एक बार नीतीश कुमार’ या ‘बिहार में बहार हो, नीतीशे कुमार हो’ के उद्घोष के साथ होर्डिंग्स के मामले में नीतीश कुमार तमाम विपक्षी दलों को मीलों पीछे छोड़ते प्रतीत हो रहे हैं। कोई ऐसी सड़क या गली नहीं बची है जहां नीतीश कुमार के बड़Þे बड़े होर्डिंग्स न लगे हों। होर्डिंग्स हालांकि भाजपा के भी कम नहीं हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फोटोयुक्त होर्डिंग महागठबंधन पर प्रहार कर रहे हैं। ‘अपराध, अहंकार भ्रष्टाचार, क्या इस गठबंधन से बढ़ेगा बिहार’। होर्डिंग्स की कमी को भाजपा परिवर्तन रथ से पूरी कर रही है। पटना समेत पूरे बिहार में घूम रहे परिवर्तन रथ एक तरफ केंद्र सरकार की उपलब्धियों का बखान कर रहे हैं वहीं कल तक एक दूसरे को गरियाने वाले लालू यादव व नीतीश कुमार द्वारा एक दूसरे की शान में पढ़े गये कसीदों की रिकार्डिंग सुनाकर मतदाताओं को बताया जा रहा है कि यह बेमेल गठबंधन सिर्फ सत्ता हासिल करने भर के लिए बना है। वाकई बड़ी विचित्र स्थिति है। कल तक एक दूसरे के लिए जीने मरने की कसमें खाने वाले आज एक दूसरे के सामने ताल ठोंक रहे हैं। ललकार रहे हैं। चाहे वह पप्पू यादव हों या जीतनराम मांझी। जिस जीतनराम मांझी को नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री बनाया वह विरोधी के शामियाने की शोभा बढ़ा रहे हैं और जिनके शामियाने में खुद नीतीश कुमार पालथी मारे बैठे हैं कल तक उन्हें जंगलराज का मसीहा करार देते हुए गाली देते नहीं अघाते थे। लेकिन आज चुनावी मजबूरी ने दोनों को एक ही छत के नीचे ला खड़ा किया है। बिहार की सत्ता उनके हाथों से छीनने को आतुर भाजपा लगातार उनके इसी जुमले ‘जंगलराज’ को हथियार बनाकर वार पर वार किये जा रही है। भाजपा के वार से घायल नीतीश को इसका सटीक जवाब नहीं सूझ रहा। मुश्किल यह है कि सांप्रदायिकता जैसे शब्द बेअसर साबित हो चुके हैं। बिहार में विकास की गंगा बहाने का दावा करने वाले नीतीश की परेशानी वाकई इस बात ने बढ़ा दी है कि चुनाव में उनके रथ का सारथी वह है जिस पर जंगलराज का तोहमत लगाकर कल तक वह उसकी परछाई तक से परहेज करते थे। इसी तरह लालू का खेल बिगाड़ने में लगे पप्पू यादव पर राजद व जदयू दोनों हमलावर हैं। पप्पू यादव के सियासी असर के सवाल पर जदयू प्रवक्ता नीरज उन्हें बिहार की राजनीति का शिखंडी करार देते हैं। जदयू प्रवक्ता ने कैमूर टाइम्स से कहा कि भाजपा पप्पू का इस्तेमाल वोट कटवा के रूप में कर रही है, लेकिन बिहार में ‘पप्पू कांट डांस’ साबित होगा। उधर, राजद प्रवक्ता भगवान सिंह कुशवाहा ने पप्पू को भाजपा के टॉप-अप पर रिचार्ज होकर चलने वाला नेता बताया। वहीं, भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी लालू-नीतीश के गठजोड़ पर प्रहार करते हुए कहते हैं कि बिहार में सरकार बनाने के लिए नहीं, दूसरा दल सरकार न बना ले, इसके लिए गठजोड़ हुआ है। यही नहीं अपने हर भाषण में नीतीश पर निशाना साधते हुए सुशील मोदी लगातार भाजपा से गठबंधन तोड़ने को लेकर प्रहार करते हुए सवाल उठाते हैं। पूर्व उपमुख्यमंत्री कहते हैं गठबंधन तोड़ने का अधिकार हर किसी को है लेकिन जनादेश तोड़ने का अधिकार किसी के भी पास नहीं। अगर उन्हें गठबंधन तोड़ना ही था तो फिर से चुनाव मैदान में आते। सिर्फ सत्ता के लिए गठबंधन जनता के साथ छलावा है। बहरहाल, बात होर्डिंग्स की हो रही थी। पटना शहर के बिजली के खंबों पर लोकजनशक्ति पार्टी का कब्जा है। चिराग पासवान के ऐलाने जंग जैसी मुद्रा वाली तस्वीरों के साथ छोटे-बड़े होर्डिंग्स व पोस्टर ‘इसी चिराग से होगा बिहार का हर घर रौशन’ छाये हुए हैं। कहीं कहीं लालू प्रसाद यादव के साले व लालू राज में जंगलराज के प्रतीक कहे गये साधु यादव की पार्टी गरीब जनता दल (सेक्युलर) भी बिहार को बदलने का दावा कर रही है। यदा कदा राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी के पोस्टर भी नीतीश कुमार सरकार की असफलता गिनाती नमूदार है। इससे इतर बिहार को बदलने के लिए केवल एक साल की मांग कर रहे पप्पू यादव का दावा है कि यदि इस दौरान वे बिहार को नहीं बदल पाये तो राजनीति से संन्यास ले लेंगे। उनके भी बड़े बड़े होर्डिंग्स पटना के मुख्य-मुख्य जगहों पर अपना कब्जा जमाये हुए हैं। पप्पू के सवाल उठाते पोस्टर समाधान भी बताते हैं। मसलन, ‘जब महिलाओं पर हो रहा है अत्याचार तो कैसे बढ़ेगा बिहार, लेकिन बदलेगा बिहार, बढ़ेगा बिहार, मैं बदलूंगा बिहार।’ ऐसे में भला लालू प्रसाद यादव कैसे पीछे रह सकते हैं। लालू व राबड़ी देवी के फोटो से युक्त उनके पोस्टर भी राजधानी पटना में छाये हुए हैं। राजद के पोस्टरों में लालू प्रसाद के छोटे बेटे तेजस्वी यादव को भी विशेष तवज्जो दी गई है। यह इस बात का भी ईशारा है कि लालू के वारिस तेजस्वी यादव ही होंगे। उनके पोस्टरों में ‘काम कुछ नहीं, प्रचार ज्यादा, क्या यही है तेरा अच्छे दिनों का वादा’ के जरिए सीधा पीएम नरेंद्र मोदी को निशाना बनाया गया है। इसी तरह राजद के एक और पोस्टर की चर्चा जरूरी है। ‘ठगों की बातों में न आएं, चलो अपना बिहार बनाएं।’ बहरहाल, अभी चुनाव के तारीखों की घोषणा नहीं हुई है लेकिन हरेक दल मतदाताओं को लुभाने के लिए अभी से अपना एड़ी चोटी का जोर लगा चुका है। लोकसभा चुनाव में महाबली मोदी के हाथों जबरदस्त शिकस्त खा चुके राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस बार कोई कोर कसर बाकी नहीं रखना चाहते। गठबंधन के साझीदारों का मानना है कि भाजपा लगभग 30 फीसदी व सहयोगियों को मिलाकर एनडीए के खाते में महज तकरीबन 38 फीसदी ही मत गये थे। यानी कि 62 प्रतिशत मतदाताओं का रुख एनडीए के खिलाफ था। इसी 62 फीसदी को साधने के लिए लालू को जहर पीकर भी नीतीश का नेतृत्व स्वीकार करना पड़ा है। उधर, बिहार में लगभग 14 फीसद यादव मतदाताओं पर अपना एकाधिकार मानने वाले लालू प्रसाद यादव की हवा निकालने के लिए भाजपा अपने सभी यादव नेताओं को इसमें सेंध लगाने के लिए मैदान में उतार चुकी है। सूत्रों की मानें तो भाजपा इस बार कम से कम 70 सीटों पर यादव उम्मीदवारों को खड़ा करेगी। खास बात यह है कि भाजपा उन्हीं सीटों पर यादव उम्मीदवार खड़ा करेगी, जहां से जदयू अपने उम्मीदवार उतारेगा। इस प्रकार भाजपा की यह रणनीति होगी कि जदयू को राजद के यादव मतदाताओं का वोट न मिले। बिहार में यादवों का असली नेता कौन है हालांकि इस पर विवाद है। लालू जहां खुद को यादवों का एकमात्र नेता मानते हैं वहीं विरोधी इसको सिरे से खारिज करते हैं। विरोधियों का दावा है कि अगर वाकई लालू की पैठ यादवों में होती तो उनकी पत्नी और बेटी लोकसभा चुनाव में यादव बहुल्य सीटों से क्योंकर हार गईं। इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार व विश्व संवाद केंद्र के संपादक संजीव कुमार कहते हैं कि इसमें कोई दो राय नहीं कि लालू  प्रसाद यादवों के बड़े नेता हैं लेकिन एकमात्र नेता नहीं हैं। नब्बे के दशक से अब तक गंगा में बहुत पानी बह चुका है। अब पप्पू यादव से लेकर हुक्मदेव नारायण यादव व रामकृपाल यादव तक तमाम नेताओं की यादव वोटों पर अपनी अपनी दावेदारी है। बहरहाल, अभी की स्थिति यह है कि पोस्टरों के मामले में नीतीश कुमार जहां सबसे आगे चल रहे हैं वहीं 340 परिवर्तन रथ के सहारे भाजपा पूरे बिहार में एक बार फिर मोदी की आंधी को सुनामी में बदलने के लिए दिन रात एक कर चुकी है। वैसे अभी यह भविष्य के गर्भ में है कि कौन किस पर भारी पड़ेगा या किस गठबंधन की सरकार बनेगी। आंकड़े भले ही कुछ भी कहें लेकिन राजनीति में हमेशा दो और दो चार नहीं होते। इसलिए अभी यह कहना मुश्किल है कि मोदी का रथ रोक पाने में यह गठबंधन कितना कारगर साबित होगा।  या कि तमाम किंतु परंतु के बावजूद नीतीश के नेतृत्व में तीसरी बार सरकार बनेगी। फिलहाल तो हम यही कह सकते हैं कि तेल देखो और तेल की धार देखो।

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