सोमवार, 27 मई 2013

गये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास



                                बद्गीनाथ वर्मा

गये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास। यह कहावत इन दिनों पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ पर पूरी तरह फिट बैठ रही है। 15 साल पहले परवेज़ मुशर्रफ ने सेना की बंदूक के दम पर सियासत को बेचारा, बेबस और बुद्धू बनाया था लेकिन आज मुशर्रफ की मुट्ठी में अपील, इंतज़ार और अंधकार के सिवा कुछ भी नहीं। पाकिस्‍तान की सियासत में फिर से पांव  जमाने की ललक लिए लंदन से वापस लौटे मुशर्रफ की मुश्किलें दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही हैं। कहां तो बेचारे स्व निर्वासन खत्म कर आये थे चुनाव लड़कर पाकिस्तानी जनता पर हूकूमत करने का ख्वाब लिए और यहां आकर किस मकड़जाल में फंस गये। यह तो वही बात हुई कि रोजा बख्शाने गये थे पर नमाज गले पड़ गई। बेचारे महज कुछ दिनों पहले तक इस्लामाबाद के चक शहजादस्थित अपने आलीशान फॉर्महाउस में बैठकर शाही रोमियो-जूलियट सिगार पीते हुए सुनहरे भविष्य का ख्वाब देख रहे थे। कहते थे, कि पाकिस्तान को बचाने आये हैं। लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाकर नवाज शरीफ को अपदस्थ करने वाले मुशर्रफ चुनावी लोकतंत्र के जरिए फिर से शासन की बागडोर हथियाना चाहते थे। चुनाव लड़ने के मंसूबों के साथ वे गाजे-बाजे के साथ पाकिस्‍तान पहुंचे थे। उन्होंने चार जगहों कराची, इस्‍लामाबाद, कसूर और चित्राल से नामांकन भरा। पर सारा गुड़ गोबर हो गया। चुनाव आयोग ने उनके खिलाफ चल रही अदालती कार्रवाई को आधार बनाकर उनके चारों के चारों नामांकन रद्द कर दिये। चुनाव आयोग की इस कार्रवाई से नाराज मुशर्रफ ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। पर यहां तो और भी बुरा हुआ। चुनाव आयोग की कार्रवाई को जायज ठहराते हुए पेशावर हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दोस्त मोहम्मद खान ने मुशर्रफ पर आजीवन चुनाव लड़ने या संसद सदस्य बनने पर पाबंदी लगाते हुए सत्ता हासिल करने के उनके सपनों को चकनाचूर कर दिया। यह पहला मौका है जब पाकिस्तान की किसी अदालत ने अपने किसी नागरिक पर आजीवन चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाया है। दरअसल, चुनाव आयोग ने उन्हें यह कहकर अयोग्य ठहरा दिया था कि उनके खिलाफ अदालत में मामले लंबित हैं। इसी मामले के खिलाफ उन्होंने पेशावर हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। वह चार साल के स्व निर्वासन के बाद चुनाव में भाग लेने के लिए कुछ दिनों पूर्व ही पूरे बाजे गाजे के साथ पाकिस्तान लौटे थे। चार जगहों से नामांकन भी भरा लेकिन पहले चुनाव आयोग ने और बाद में पेशावर हाईकोर्ट ने उनके मंसूबों को पलीता लगा दिया। चुनाव आयोग की कार्रवाई को सही ठहराते हुए न्यायाधीश खान अपने आदेश में यह कहना नहीं भूले कि अपने शासन काल में इस पूर्व तानाशाह ने दो बार देश का संविधान रद्द किया था।
यहां मुशर्रफ शायद इस बात को भूल गये थे कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश इफ्तेखार चौधरी समेत साठ जजों को निलंबित करते हुए उन्हें नजरबंद कर दिया था। बहरहाल, चुनाव आयोग के निर्णय पर पेशावर हाई कोर्ट की मुहर ने एक बात तो साफ कर दी है कि मुशर्रफ के लिए मुश्किलों का दौर शुरू हो गया है। न खुदा ही मिला न विसाले सनम की तर्ज पर कहा जा सकता है कि सत्ता हासिल करने के उनके मंसूबे ध्वस्त हो जाने के बाद कैदी के रूप में वह जरूर सोच रहे होंगे कि क्यों वे लंदन से वापस लौटे। बहरहाल, उन्होंने कभी सपने में भी यह नहीं सोचा होगा कि जिस फार्म हाउस को उन्होंने बड़े जतन से सजाया संवारा था वही उनके लिए जेल बन जाएगा। और सत्ता सुख मिलने के बजाय वह इसी फार्म हाउस में बंदी का जीवन बीताने को मजबूर कर दिए जाएंगे। इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने 2009 में 60 जजों को नजरबंद बनाने के मामले में उनकी गिरफ्तारी के आदेश दिए थे ।इस फैसले की जानकारी मिलते ही मुशर्रफ अदालत से भाग खड़े हुए थे।
गिरफ्तारी का आदेश होने के बाद भागकर फार्म हाउस में जाकर छिप जाने को लेकर भी उनकी खूब जग हंसाई हुई । अगले दिन जब उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया तो वकीलों ने नारा लगाया था कि गीदड़ भागा रे। पाकिस्तान को अपनी ऊंगली पर नचाने वाला 70 साल का 'पूर्व तानाशाह' 'जनरल' सत्ता का स्वाद चखने आया था, लेकिन समय के घूमते चक्र ने उसे विश्व सैन्य इतिहास के सबसे कायर जनरलों की कतार में खड़ा कर दिया ।
 अपनी हनक व हेकड़ी के आगे किसी को भी कुछ न समझने वाले मुशर्रफ भगोड़ा व कायर का ठप्पा लगाए अपने फार्म हाउस पर बंदी का जीवन बिताते हुए उस पल को जरूर कोस रहे होंगे, जब उन्होंने पाकिस्तान लौटने का फैसला किया। उस पर तुर्रा यह कि उनकी हिरासत अवधि हनुमान की पूंछ की तरह लंबी ही होती जा रही है। इस्लामाबाद के चीफ कमिश्रनर तारिक पीरजादा ने मुशर्रफ के घर को जेल में तब्दील कर दिया है।
बेचारे मुशर्रफ। गौरतलब है कि पाकिस्तान की आतंकवाद रोधी कोर्ट ने पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की न्यायिक हिरासत की अवधि 14 दिन बढ़ा दी है। कोर्ट 2007 में आपातकाल के दौरान न्यायाधीशों को हिरासत में लेने के मामले की सुनवाई कर रही है। कोर्ट के जज सैयद कौसर अब्बास जैदी ने हालांकि 18 मई को मुशर्रफ की व्यक्तिगत रूप से पेश नहीं होने की छूट देने के अनुरोध को स्वीकार कर लिया। अधिकारियों के अनुसार 69 वर्षीय मुशर्रफ को सुरक्षा कारणों से कोर्ट में पेश नहीं किया गया। बाद में जज ने मामले की सुनवाई एक जून तक स्थगित कर दी। मुशर्रफ को 2007 में पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो और 2006 में सैन्य अभियान के दौरान बलूचिस्तान के नेता अकबर बुगती की हत्या के मामले में भी गिरफ्तार किया गया है। हालांकि ऐंटि-करप्शन कोर्ट ने बेनजीर भुट्टो हत्या मामले में मुशर्रफ को जमानत दे दी है लेकिन पूर्व राष्ट्रपति को अब भी नजरबंदी में ही रहना होगा।
मुशर्रफ की उम्मीदें पाकिस्तान की सेना से थी कि वह उनके आड़े वक्त काम आएगी पर सेना ने भी उनका साथ छोड़ दिया है। पाकिस्तानी सेना के कमांडो दस्ते ने उनका साथ उसी वक्त छोड़ दिया था जब वे गिरफ्तारी से बचने के लिए भागकर अपने फार्म हाउस पहुंचे। भला ऐसे भगोड़े व कायर जनरल का सेना क्यों साथ देगी। नवाज शरीफ का यह तर्क कि परवेज मुशर्रफ अब एक रजिस्टर्ड राजनीतिक दल ऑल पाकिस्तान मुस्लिम लीग  के मुखिया हैं, इसलिए सेना को अपने पूर्व जनरल के मामलों में नहीं पड़ना चाहिए। नवाज शरीफ का कहना बिल्सुल ठीक है। जनरल मुशर्रफ ने जैसा बोया, वैसा काट रहे हैं। जिस नवाज शरीफ ने उन्हें सेनाध्यक्ष बनाया  उन्हीं की पीठ में छूरा घोंपकर मुशर्रफ पाकिस्तान के शासक बन बैठे। यही नहीं जब 1999 में भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तुम आओ लाहौर से लेकर चमन बरदौश, हम आएं सुबहे बनारस की रौशनी लेकरकविता की पंक्तियां गुनगुनाते दोस्ती का हाथ बढ़ाये बस पे सवार ऐतिहासिक लाहौर यात्रा कर रहे थे, तब यही जनरल भारत के खिलाफ करगिल से घुसपैठ की योजना बना रहे थे। ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं को वेदवाक्य मानने वाले मुशर्रफ अपना बोया ही काट रहे हैं। यही विधि का विधान है। जो जैसा करता है उसे वैसा ही फल मिलता है। बहरहाल मुशर्रफ के भाग्य में क्या बदा है, यह तो वक्त ही बताएगा। वैसे इतना तय है कि अगर मुशर्रफ को इमरजेंसी लागू करने के लिए देशद्रोह का दोषी पाया गया, तो उन्हें उम्रकैद या फांसी की सजा भी हो सकती है। 

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