शनिवार, 31 अक्तूबर 2009

दिशाहीन नक्सली आन्दोलन

सन १९६७ में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गाँव में जिस आन्दोलन ने जन्म लिया था , वह अब अपनी धार खोकर पुरी तरह से दिशाहीन हो गया लगता है । नक्सलबाड़ी गाँव के मेहनतकश लोगो द्वारा जमींदारो के खिलाफ किए गए सशत्र विद्रोह को नक्सल आन्दोलन नाम मिला था । लगातार कई दिनों तक चले इस आन्दोलन का नेतृत्व तब के स्थानीय वामपंथी नेता चारू मजुमदार और कानू सान्याल ने किया था। इस आन्दोलन की लपटे इतनी तेज थी कि जल्दी ही यह देश के कई हिस्सों में फ़ैल गई, और देखते ही देखते पश्चिम बंगाल सहित उडीसा , बिहार, मध्य प्रदेश , उत्तर प्रदेश , छत्तीसगढ़ ,झारखण्ड तथा दक्षिण के आंध्र प्रदेश सरीखे कई राज्य इसकी चपेट में आ गए।
लेकिन अन्याय और अत्याचार के खिलाफ शुरू हुआ यह आन्दोलन आज ख़ुद ही अत्याचार का प्रतिक बन गया है । आजकल जगह-जगह इसका विभत्स रूप दिखाई दे रहा है। निरीह लोगो का खून बहाना तो जैसे इन नक्सलियों का शगल बन गया है। कब,कौन,कहाँ इनके हत्थे चढ़ जाएगा और कब, किस आरोप में आरोपित हो इन खून के प्यासे नरपिशाचो कि बर्बरता का शिकार हो जाएगा, कहना मुश्किल है। इनकी वर्त्तमान कार्यशैली को देख कर तो कही से भी नही लगता कि यह जनता की भलाई के लिए किया जाने वाला कोई आन्दोलन है, बल्कि ठीक इसके उलट ऐसा लगता है कि जैसे इन कार्रवाईयों को किन्ही गुंडा गिरोहों द्वारा अंजाम दिया जा रहा हो। इनके रोंगटे खड़े कर देने वाले कारनामे रोज अखबारों कि सुर्खिया बटोर रहे हैं ।
अगर पिछले एक महीने की ही बात की जाय तो महारास्त्र के गढ़चिरौली में १७ सुरक्षाकर्मियों कि हत्या, बिहार के खगडिया में ग्रामीणों का सामूहिक नरसंहार ,झारखण्ड पुलिस के इंसपेक्टर इन्दुवर फ्रांसिस कि निर्मम तरीके से की गई हत्या .नक्सली बंद के दौरान रेल पटरियों को विस्फोट कर छत -विछत कर देना , पश्चिम बंगाल के मिदनापुर के जंगली इलाको में रोज बा रोज राजनितिक कार्यकर्ताओ कि हो रही हत्याए तथा इसी जिले के सांकराइल थाना के दो पुलिस अधिकारियो की थाने में घुसकर हत्या और हथियारों कि लूट इनके खुनी आन्दोलन के नमूने है । इनकी दुस्साहसिकता कितनी बढ़ गई है यह इसी घटना से परिलक्षित होती है कि अभी चार दिनों पहले ही भुवनेश्वर से दिल्ली जा रही राजधानी एक्सप्रेस बाश्ताला में करीब पाच घंटो तक बंधक बनाये रखा ।
इस सबको देखकर तो यही लगता है कि पानी सर के ऊपर जा चुका है .अब सरकार को बिना देर किए व बिना राजनितिक लाभ-हानि का गुना भाग किए इन पर तत्काल सख्त कार्रवाई करनी चाहिए । सर्वहारा की बात कराने वाले नक्सलियों ने व्यक्तिगत रूप से अकूत संपत्ति इकट्ठी कि है। इनके वर्चस्व वाले इलाको में व्यवसाईयों व नौकरीपेशा लोगो से जबरन लेवी वसूली जाती है ।
जगह- जगह रेल पटरियों .विद्यालय भवनों को विस्फोट कर उड़ा देना, सड़को को कट कर आवागमन बंद कर देना या फ़िर बिजली के तारो व खम्भों टेलीफोन टावरों आदि को तोड़कर अथवा निर्दोष नागरिको कि न्रिशंश हत्याओ और सार्वजनिक संपत्तियों का नुकसान कर किसका और कितना भला हो रहा है यह तो वही बेहतर बता सकते है। वैसे एकाधिक बार यह प्रमाणित हो चुका है कि इनको विदेशी ताकतों से आर्थिक सहायता मिलती है। यहाँ एक बात और स्पस्ट कर दू कि गहन जंगलो में और आदिवासियों के बिच नक्सली या मावोवादी इसलिए नही जामे है कि वे आदिवासियों कि गरीबी और बदहाली से चिंतित या दुखी है। वे वह इसलिए रहते है क्योंकि एक अवैध आर्म्ड फोर्स होने के नाते वे जंगली इलाको में सामरिक रूप से ख़ुद को ज्यादा सुरक्षित और उपयुक्त पाते है। इसलिए अपने नियंत्रण वाले इलाको में नक्सली सड़क,रेल,स्कुल ,अस्पताल, दूरसंचार आदि सभी बुनियादी सुविधाओ का विरोध करते है, क्योंकि उन्हें पता है कि आदिवासियों के बीच विकास की रौशनी जिस दिन पहुँच जायेगी उसी दिन इनकी सशत्र क्रांति या यूँ कहे कि भ्रान्ति का पर्दाफाश हो जाएगा। -- बद्री नाथ वर्मा

1 टिप्पणी:

  1. यह सब आपको समाचारपत्रों में देने से जागरूकता आएगी ।
    लिखते र्हें शुभकामनाएं ।

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