गुरुवार, 29 अक्तूबर 2009

बद्री नाथ वर्मा
दुष्यंत की ईन पंक्तियों पर गौर फरमाईये-
मुझ को चलने दो अकेला , यूं ही चले मेरा सफर ।
गर मुझे रोका गया तो काफिला बन जाऊँगा ॥
( दो )
मौन शंकर मौन चंडी देश में , हो रहे हावी शिखंडी देश में ।
अपना बौनापन छिपाने के लिए , बो रहे हैं वो अरंडी देश में ।
भाव की पर्ची लगी हर भाल पर , हर गली बाज़ार मंडी देश में । हर गली ----------॥

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