बद्रीनाथ वर्मा
अशोक गहलोत को कांग्रेस अध्यक्ष बनाये जाने की
चर्चा इस बात पर मुहर है कि पार्टी में फिलहाल राहुल युग का पटाक्षेप होकर
कांग्रेस की कमान दोबारा सोनिया गांधी के हाथ में आने वाली है।
पहले खबर आई थी कि राहुल गांधी राजस्थान के मुख्यमंत्री
अशोक गहलोत से खासे नाराज हैं। 25 मई को हार की समीक्षा के लिए आयोजित बैठक में
उन्होंने गहलोत के अलावा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ व कांग्रेस के वरिष्ठ
नेता पी चिदंबरम को जमकर खरी खोटी सुनाई थी। यह खरी खोटी उन्हें अपने-अपने बेटों की
जीत को ज्यादा तवज्ज़ो देने के लिए सुनाई गई थी। तीनों ही नेताओं पर वंशवाद को
प्रश्रय देने का आरोप लगाते हुए तब राहुल गांधी ने कहा था कि अपने पुत्रों की सीटों
पर उलझकर इन नेताओं ने अन्य प्रत्याशियों पर कोई ध्यान नहीं दिया, जिससे कांग्रेस
को हार का सामना करना पड़ा। बीते करीब एक दशक से वंशवाद का आरोप पार्टी के विरुद्ध
एक बड़ा हथियार भी साबित हुई है। निश्चित तौर पर यह कांग्रेस के लिए मंथन का समय है। लेकिन यह मंथन गहरा
और वास्तविक होना चाहिए। खैर, यह अब पुरानी बात हो गई क्योंकि जिन अशोक गहलोत को
राहुल गांधी ने लताड़ लगाई थी, उन्हीं में सोनिया गांधी को सबसे ज्यादा उम्मीद की
किरण नजर आ रही है।
मीडिया में आई खबरों के मुताबिक अशोक गहलोत को कांग्रेस का नया
अध्यक्ष बनाया जा सकता है। अभी गहलोत या कांग्रेस की ओर से इस संबंध में कोई आधिकारिक
बयान नहीं आया है। लेकिन कांग्रेस ने इस बारे में मन बना लिया है और अशोक गहलोत को
इसके लिए तैयार रहने को भी कहा है। हालांकि इस बारे में तस्वीर अभी साफ नहीं है कि
अशोक गहलोत अकेले कांग्रेस अध्यक्ष होंगे या साथ में दो-तीन और नेताओं को कार्यकारी
अध्यक्ष बनाया जाएगा। लेकिन एक बात तो बिल्कुल साफ है कि अगले कुछ दिनों में कांग्रेस को नया अध्यक्ष
मिलने जा रहा है। जो कम से कम गांधी परिवार से तो नहीं ही
होगा। इसका संकेत खुद राहुल गांधी भी दे चुके हैं। जाहिर है सोनिया गांधी के बेहद
करीबी माने जाने वाले अशोक गहलोत पार्टी की पहली पसंद है। अशोक गहलोत को पार्टी
अध्यक्ष बनाये जाने का एक मतलब यह भी है कि पार्टी में फिलहाल राहुल युग का अवसान
हो गया है और कांग्रेस एक बार फिर सोनिया की शरण में जा पहुंची है। ऐसा इसलिए
क्योंकि बरास्ता गहलोत कांग्रेस की असली कमान सोनिया के ही हाथों में रहेगी। बावजूद
इसके राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि गहलोत को अगर वाकई कांग्रेस अध्यक्ष बनाया
जाता है तो यह कांग्रेस की राजनीति के लिए शुभ संकेत है।
25 मई को जिन अशोक गहलोत को राहुल गांधी ने लताड़ लगाई थी, उन्हीं में सोनिया गांधी को सबसे ज्यादा उम्मीद की किरण नजर आ रही है।
देश के मूर्धन्य पत्रकार राम बहादुर राय की दृष्टि में नये
कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए अशोक गहलोत का चयन बिल्कुल सही फैसला है। उनकी छवि
कुशल संगठनकर्ता, विनम्र व मिलनसार व्यक्ति के रूप में है। कांग्रेस को इस संकट से
ऐसा ही व्यक्ति उबार सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि उपलब्ध विकल्पों में से अशोक
गहलोत का चयन सही दिशा में उठाया गया कदम है। कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती
संगठन को निचले स्तर पर मजबूती प्रदान करने की है। जमीन से जुड़े नेता व पिछड़ी
जाति से ताल्लुक रखने वाले गहलोत से इसकी उम्मीद की जा सकती है।
राहुल गांधी के नेतृत्व में लगातार मिलने वाली हार ने
पार्टी के आत्मविश्वास को डिगा दिया है। राहुल अपनी हरकतों से अक्सर ही अपनी
अपरिपक्वता का प्रदर्शन करते रहे हैं। तमाम प्रयासों के बाद भी उनकी छवि इससे बाहर
नहीं निकल पाई। देश का मूड न भांप पानी उनकी अक्षमता का द्योतक है। गहलोत को
कांग्रेस अध्यक्ष बनाये जाने का एक संकेत यह भी है कि अब कांग्रेस राहुल के हाथों
से निकलकर सोनिया के हाथ में जा रही है।
गहलोत को सोनिया गांधी का विश्वस्त सिपहसालार माना जाता है।
बीते करीब चार दशक से कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय गांधी परिवार के प्रति इनकी
निष्ठा किसी से छिपी नहीं है। उल्लेखनीय है कि राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस जहां
लगातार एक के बाद एक चुनाव हारते जाने का रिकार्ड बना चुकी है। वहीं, सोनिया के
नेतृत्व में यही कांग्रेस लगातार दस वर्षों तक केंद्र की सत्ता पर काबिज रही। अब
अशोक गहलोत से कांग्रेस जादू की उम्मीद लगाये हुए है। यहां जादू का जिक्र इसलिए
किया गया है क्योंकि अशोक गहलोत के पिता जादूगर थे। खुद गहलोत भी जादू के कई शो कर
चुके हैं।
बहरहाल,
अशोक गहलोत वर्तमान कांग्रेस नेताओं में अकेले ऐसे नेता हैं जो इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया
गांधी और राहुल गांधी यानी पूरे गांधी परिवार की लगातार पसंद बने रहे हैं। स्वाभाविक
रूप से बहुतों की आंख में वे खटकते भी रहे, पर गहलोत का जादू इस परिवार पर हमेशा बरकरार रहा। गहलोत
को पार्टी अध्यक्ष बनाये जाने के पीछे दो मूल वजह है। पहला, वे पिछड़ी जाति से आते
हैं और दूसरा संगठन में काम करने का बृहद अनुभव। वैसे भी राजनीति में संकेतों का
बेहद अहम स्थान होता है। केंद्र में सत्तासीन पार्टी भाजपा से ही उसकी मुख्य
प्रतिद्वंद्विता है। इस समय भाजपा में पिछड़े वर्ग का ही आधिपत्य है। प्रधानमंत्री
मोदी खुद पिछड़े वर्ग से आते हैं। ऐसे में कांग्रेस को समझ आ गया है कि अब सवर्ण
राजनीति के दिन लद गये। वैसे भी अशोक गहलोत भले ही पार्टी अध्यक्ष रहेंगे लेकिन
पार्टी की कमान सोनिया गांधी के हाथों में रहेगी। ऐसे में यह कहना समीचीन होगा कि
राहुल की नेतृत्व क्षमता परखने के बाद कांग्रेस एक बार फिर सोनिया की शरण में पहुंच
गई है।
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