मंगलवार, 13 मई 2014

अच्छे दिन आने वाले हैं!


आजकल प्रचार माध्यमों में एक नारा बहुत जोरशोर से सुनाई दे रहा है। ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’। लेकिन ये अच्छे दिन किसके आने वाले हैं, इसपर कोई बहस नही करता। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वाकई अच्छे दिन आने वाले हैं? क्या ‘अबकी बार मोदी सरकार’ से देश में रामराज्य आ जाएगा? रामराज्य की कल्पना बाबा तुलसीदास ने रामचरित मानस में इस प्रकार की है- दैहिक, दैविक भौतिक तापा, रामराज्य काहू नहीं व्यापा। तो क्या यह मान लेना चाहिए कि मोदी सरकार बनते ही महंगाई के बोझ से कराह रही जनता को इससे राहत मिल जाएगी। या फिर भ्रष्टाचार के भंवरजाल में उलझा देश तत्काल इससे बाहर निकल आएगा। अथवा देश की जनता का खून चूसकर अपनी तिजोरियां भरने वाले धनपशु सलाखों के पीछे पहुंचा दिये जाएंगे। या फिर स्वीट्जरलैंड के बैंकों में पैबस्त देश की गरीब जनता की गाढ़ी कमाई रातोंरात वापस आ जाएगी? इसका छोटा-सा जवाब है नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है। जैसे पहले था वैसे ही आगे भी चलता रहेगा। हो सकता है कि आम जनता की मुश्किलों में कुछ और इजाफा ही हो जाए। तुलसीदास की ही एक और चौपाई को यहां उद्धृत करना गलत नहीं होगा कि कोऊ नृप होय, हमें का हानि, चेरि छोड़ नहीं होऊब रानी। यानि कुछ लोगों की लाटरी भले ही लग जाए, आम जनता की हालत जस की तस रहने वाली है। अगले कुछ दिनों, महीनों या सालों में कुछ भी बदलने नहीं जा रहा है। तो क्या यह मान लिया जाए कि वाकई अच्छे दिन नहीं आने वाले हैं। ऐसा मान लेना अर्धसत्य होगा। पूरा सच यह है कि हां, अच्छे दिन आने वाले हैं तो जरूर, पर उनके, जिन्होंने इस चुनाव में निवेश किया है। राजनीतिक दलों को मोटा चंदा देकर आम जनता को बरगलाने के लिए जिन्होंने दौलत की दरिया बहाई है। सरकार बनने के बाद उन्हें एक बार फिर लूट की छूट होगी। अब वे पांच साल बगैर किसी रोकटोक के चंदे के रूप में निवेश की गई अपनी धनराशि को सूद समेत वसूलेंगे। सौ के हजार या लाख के रूप में। ...और यह मुआवजा भरेगी आम जनता। कभी गैस के दामों में बढ़ोत्तरी के रूप में तो कभी डीजल व पेट्रोल के बढ़े दामों के रूप में। ऐसे में शायद तब हम कह सकें कि वाह ! क्या अच्छे दिन आ गए हैं । इन सब परिस्थितियों का गहन अध्ययन करने के बाद एक गंभीर प्रश्न अवश्य उठता है कि ऐसे में अच्छे दिन आने वाले हैं या बुरे? भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी कहते हैं कि देश को संकट से उबारने के लिए जनता उनको केवल साठ महीने ही दे दे तो वे चौकीदार बनकर देश की सेवा करेंगे। इसके    विपरीत कांग्रेस उपाध्यक्ष व पार्टी के प्रधानमंत्री पद के अघोषित उम्मीदवार राहुल गांधी कहते हैं कि देश को एक चौकीदार नही चाहिए बल्कि वे तो सारे 125 करोड़ लोगों को ही चौकीदार की नौकरी देंगे। हालांकि इन 125 करोड़ चौकीदारों को कोई वेतन भी मिलेगा या नहीं, इसका कोई जिक्र नही कर रहे हैं। सवाल है कि राहुल गांधी किस अधिकार से 125 करोड़ नियुक्ति पत्र जारी करेंगे? इससे
इतर आम आदमी के नाम पर अपनी दुकान चलाने वाले अरविंद केजरीवाल हैं। अन्ना हजारे के जन लोकपाल आंदोलन को कैश कर भ्रष्टाचार विरोधी रथ पर सवार होकर पहले तो दिल्ली के मुख्यमंत्री बने, पर महत्वाकांक्षाओं ने ऐसा जोर मारा कि महज 49 दिनों में ही सरकार से किनारा कर लिया। आम जनता को दिखाए गये उनके सब्जबाग फ्री पानी, बिजली के आधे दाम, भ्रष्टाचार का खात्मा आदि सभी वादे हवा हवाई ही साबित हुए। जिस तरह से आश्चर्यजनक रूप से उन्हें दिल्ली की गद्दी नसीब हुई थी, उससे उन्हें लगा कि प्रधानमंत्री पद ज्यादा दूर नहीं है, इसी सोच के साथ जनलोकपाल को मुद्दा बनाकर शहीदी मुद्रा बनाते हुए दिल्ली सरकार से इस्तीफा दे दिया। हालांकि उनका यह दांव उल्टा पड़ गया। उनकी इस जल्दबाजी को खुद दिल्ली की जनता ने भी पसंद नहीं किया। अब वे वाराणसी से नरेंद्र मोदी के खिलाफ ताल ठोंक रहे हैं। उनका मुद्दा भी डायवर्ट हो गया है। अब उनके लिए भ्रष्टाचार उतना बड़ा मुद्दा नहीं है जितना बड़ा मुद्दा मोदी को रोकना। दरअसल, आजादी के इन छ: दशकों में नेताओं ने राजनीति को पूरी तरह से एक व्यापार बनाकर रख दिया है। कहीं बाप-बेटे , कहीं मां-बेटे, तो कहीं पति-पत्नी, तो कहीं पूरा का पूरा कुनबा एक साथ मिलकर सत्ता सुख भोग रहा है। ऐसे में कम से कम यह तो पूछा ही जा सकता है कि आने वाले दिन किसके अच्छे और किसके बुरे सिद्ध होंगे ?

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