शनिवार, 28 मई 2016

जिंदगी में मिठास घोलते सागर के दो बूंद

बद्रीनाथ वर्मा

133 ए, गली नंबर 21 बिपिन गार्डेन एक्सटेंशन निकट द्वारका मोड़ दिल्ली। यह एक महज पता नहीं है। बल्कि यह ऐसा पता है जहां आकर हर ओर से हारे थके लोगों को जीने की एक नई उम्मीद मिलती है। यहां रहते हैं सागर। इनकी दो बूंद की सलाह अब तक सैकड़ों जिंदगियों को रौशन कर चुकी है। जूनून की हद तक जनसेवा को अपना ध्येय मानने वाले सागर यूं तो शिक्षा मंत्रालय में कार्यरत हैं मगर उनकी इससे एक अलग पहचान भी है। वह पहचान है लाइलाज बीमारियों से लोगों को निजात दिलाने की। होम्योपैथिक औषधियों से असाध्य बीमारियों से पीड़ित लोगों को नवजीवन प्रदान करने वाले सागर का बचपन बिहार के मधेपुरा जिले के सिंहेश्वर में बीता है। स्कूली शिक्षा भी उन्होंने यहीं से पाई है। ज्ञात हो कि सिंहेश्वर सबसे बड़े महादेव मंदिर के लिए देश भर में ख्यात है। पिता से विरासत में मिले होम्योपैथी ज्ञान को उन्होंने स्वाध्याय व व्यापक रिसर्च के सहारे कई सारे ऐसे केसों में जहां बड़े बड़े अस्पतालों व डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए थे ऐसे लोगों को भी उन्होंने नवजीवन प्रदान किया है। सागर के पास होम्योपैथी या किसी भी मेडिकल पद्धति की कोई डिग्री नहीं है लेकिन स्वाध्याय से अर्जित ज्ञान के बलबूते निस्पृह भाव से मानव समाज की भलाई के लिए कार्य किये जा रहे हैं। सरकारी नौकरी में होने की वजह से वैसे तो दवा देने से कतराते हैं लेकिन रोग से पीड़ित लोगों की व्यथा से विचलित होकर अंतत: उनका इलाज करने को राजी हो जाते हैं। हालांकि सागर काफी व्यस्त रहते हैं बावजूद इसके चूंकि शनिवार व रविवार को दफ्तर में छुट्टी रहती है सो उस दिन उनके आवास पर दूर दूर से लोग उनके हाथों से दवाइयों की दो बूंद लेने आते हैं। सागर के इलाज से लाभान्वित हुए लोग एक सुर में बताते हैं कि उनके हाथों में जादू है। रोगों को डायग्नोस कर दवाओं का कंपोजिशन वे खुद तैयार करते हैं। जब कोई हर ओर से हारा थका एक उम्मीद लेकर उनके यहां आता है तो वे अपनी पूरी ऊर्जा उसे रोगमुक्त करने में लगा देते हैं। उनकी इसी जूनून का नतीजा है कि जिन रोगों को बड़े बड़े डाक्टरों ने लाइलाज घोषित कर दिया था वह इन्होंने अपनी दो बूंदों की बदौलत ठीक कर दिया। उनकी सलाह पर होम्योपैथी की दो बूंद लेकर आज सैकड़ों लोग असाध्य समझी जाने वाली बीमारियों से मुक्त होकर खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं। सागर के विभाग के सेक्शन आॅफिसर संतोष का चार वर्षीय बेटा सुगर से पीड़ित था। इंसुलिन उसके जीवन के रोजमर्रा का हिस्सा हो गया था। संतोष के मुताबिक जबसे सागर ने उसका इलाज शुरू किया है तबसे उनके बेटे के सुगर लेबल में सुधार की प्रक्रिया शुरू है। उन्हें विश्वास हो गया है कि जल्द ही उनका बेटा पूरी तरह से ठीक हो जाएगा और उसे इंसुलिन की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसी तरह उनकी सहकर्मी रश्मि बताती हैं कि उनकी बेटी दो-दो तीन-तीन दिन तक लैट्रिन नहीं जा पाती थी लेकिन सागर की दवा से उसे इस परेशानी से मुक्ति मिल गई है। सागर की  दो बूंद की सलाह से नवजीवन पाए ऐसे सैकड़ों लोगों की अपनी अपनी कहानियां हैं। निरोग हो चुके ऐसे लोग उनकी प्रशंसा करते नहीं थकते।