शुक्रवार, 24 मई 2013

जाते-जाते भी चिकोटी काट गये विनोद राय



                            बद्रीनाथ वर्मा

कैग के टीएन शेषन माने जाने वाले विनोद राय इसी 22 मई को रिटायर हो गये। पूर्वी उत्तर प्रदेश के सर्वाधिक पिछड़े जिले गाजीपुर के परसा के मूल निवासी विनोद राय जाते-जाते भी सरकार के मंत्रियों को चिकोटी काटना नहीं भूले। यह चिकोटी इतनी जबरदस्त थी कि सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी तिलमिला गये। दरअसल, अपने कार्यकाल के दौरान 2 जी और कोयला घोटालों का खुलासा कर यूपीए सरकार की नींव हिलाने वाले नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक कैग विनोद राय ने अपने रिटायरमेंट से एक दिन पहले दिए गये एक इंटरव्यू में सरकार के मंत्रियों पर जमकर ताना कसा । 2जी घोटाले में कोई नुकसान न होने की सरकार की दलील पर राय ने कहा कि उन्हें कपिल सिब्बल ऐंड कंपनी पर दया आती है। 2जी घोटाले पर कपिल सिब्बल की जीरो लॉस थिअरी पर उन्होंने कहा कि मैंने इससे पहले यह कभी नहीं कहा, लेकिन मुझे असल में उन पर तरस आता है। मैंने जेपीसी में कहा था कि इसमें भारी नुकसान हुआ है, जिससे इनकार नहीं किया जा सकता। नुकसान के आंकड़े पर बहस हो सकती है। मैंने कहा था कि आपकी अपनी एजेंसी सीबीआई ने भी कहा है कि इसमें 30 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। सीबीआई ने अपनी एफआईआर में भी यह बात कही है। मैंने उनसे पूछा था कि क्या आप 30 हजार करोड़ रुपये की बात को वापस लेने जा रहे हैं? अगर ऐसा है तो मैं भी 1,76, 000 करोड़ के आंकड़े को वापस लेने के लिए तैयार हूं। यही वजह है कि मुझे सिब्बल एंड कंपनी पर अफसोस होता है। क्या वाकई कोई यकीन करेगा कि नुकसान नहीं हुआ है?'
इसी के साथ 2जी की ऑडिट रिपोर्ट में 'अनुमानित घाटा' टर्म इस्तेमाल करने पर उठे सवालों पर जवाब देते हुए विनोद राय ने साफ कहा कि 'अनुमानित घाटा' या 'अनुमानित लाभ' टर्म का इस्तेमाल सरकार भी करती रही है। मैं आपको डायरेक्ट टैक्स कोड (डीटीसी) बिल की कॉपी दे सकता हूं। यह सरकार का बिल है, जिसमें इस टर्म का इस्तेमाल है। मैंने जेपीसी में भी यह बात रखी थी। खासकर मनीष तिवारी को बताया था कि आपके अपने बिल में 'अनुमानित इनकम' का कॉन्सेप्ट है। यह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से लिया गया है। दुनियाभर की ऑडिटिंग एजेंसियां इसका इस्तेमाल करती हैं। उन्होंने तब कहा था,'हां, लेकिन यह अनुमानित घाटे की बात नहीं करता है।' यह सही है कि घाटे पर टैक्स नहीं लगाया जा सकता। यह डायरेक्ट टैक्स कोड बिल है।' कैग की इन बातों से तिलमिलाए मनीष तिवारी ने विनोद राय को आमने सामने बहस की चुनौती दी। उन्होंने ट्वीट किया कि विनोद राय अपनी बात मीडिया में कहने के बजाय आमने सामने बैठ कर बहस करें।
पी. चिदंबरम पर सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ाने (विनोद राय की नियुक्ति करके) के आरोप पर विनोद राय ने हंसते हुए चुटकी ली। उन्होंने कहा, 'आप यह कैसे कह सकते हैं कि मैं चिदंबरम की पंसद था? महज इसलिए क्योंकि मैंने उनके साथ काम किया था? अगर सिंधुश्री खुल्लर की कैग के तौर पर नियुक्ति होती है तो क्या आप उन्हें मोंटेक सिंह अहलूवालिया की पंसद कहेंगे? इसी तरह एसके शर्मा की नियुक्ति पर क्या उन्हें एंटनी का आदमी का जाएगा। प्रक्रिया यह है कि जिसमें कैबिनेट सेक्रेटरी कुछ नाम रखते हैं, जिस पर बाद में पीएम और वित्त मंत्री विचार करते हैं। मेरा इंटरव्यू भी पीएम ने लिया था।' अपने पूर्व सहयोगी आरपी सिंह के दबाव में 'अनुमानित घाटे' का आकलन करने के आरोपों की टीस विनोद राय के दिल में अभी भी है। हालांकि उन्होंने आरपी सिंह को अच्छा साथी बताया। उन्होंने कहा, 'मैने आरपी सिंह के फेयरवेल में उनकी तारीफ की थी। 2जी का ऑडिट उन्होंने ही किया था। जेपीसी में जाने से पहले वह मुझसे मिले थे और मैंने उनसे कहा था, 'आरपी बस एक बात याद रखो, तथ्य की गलती मत करना। राय इधर-उधर हो सकती है, लेकिन फैक्ट्स पर टिके रहना।' लेकिन उन्होंने वहां कुछ गलतियां कीं। उदाहरण के तौर पर उन्होंने कहा कि हम घाटे का हिसाब नहीं लगाते, जबकि मैंने जेपीसी में उनकी एक रिपोर्ट रखी थी, जिसमें घाटे का हिसाब लगाया गया था। उन्होंने कहा कि वह आरपी सिंह के बयान से ठगा हुआ महसूस नहीं करते। आप ऐसा तब महसूस करते हैं, जब आप एक शख्स पर ही पूरा यकीन करते हैं। मैंने उनकी तारीफ की क्योंकि उन्होंने अच्छा ऑडिट किया था। मैंने उन्हें कभी अनमोल कलीग नहीं कहा।' अक्सर विनोद राय पर बीजेपी के हाथ में खेलने का आरोप कांग्रेस पार्टी की ओर से लगाया जाता रहा है। इस संबंध में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि पीएसी का चेयरमैन हमेशा विपक्षी पार्टी से होता है। संविधान में है कि कैग को पीएसी के साथ काम करना है। मीटिंग के बाद मुझे पीएसी चेयरमैन को ब्रीफ करना होता है। मेरे उनसे मुलाकातें होती हैं। यह घर पर भी होती हैं। सिर्फ मुरली मनोहर जोशी ही नहीं, वह कोई भी हो सकता है। यह मेरी ड्यूटी है कि चेयरमैन को ब्रीफ करूं। दरअसल जब लोग खुद को फंसा पाते हैं तो इस तरह के आरोप लगाते हैं। इसी के साथ राय ने कभी भी राजनीति में नहीं जाने की बात से साफ इनकार करते हुए विनोद राय ने कहा कि मैं आज साफ कर देना चाहता हूं कि मेरा जीवनभर राजनीति से लेना-देना नहीं रहा है। 65 साल बाद मैं क्यों बदलूंगा? मुझे इससे क्या फायदा होगा?  जब भी मुझसे राजनीति में जाने का सवाल किया जाता है मैं न हां कहता हूं न ना। यदि मैं कहूंगा कि मैं पॉलिटिक्स में नहीं जाऊंगा आप यकीन नहीं करेंगे। अगर मैं कहूंगा कि पॉलिटिक्स जॉइन करूंगा तो आप कहेंगे 'बोला था ना।' इसलिए मैं दोबारा स्पष्ट कर देता हूं कि मैं कभी भी राजनीति में नहीं जाऊंगा। इन सब बातों से इतर भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) रहे विनोद राय का मानना है कि सरकारी धन प्राप्त करने वाली सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) की सभी परियोजनाओं, पंचायती राज संस्थाओं तथा समितियों के बही खातों की लेखापरीक्षा का काम इस शीर्ष राष्ट्रीय अंकेक्षण संस्था के अधिकार क्षेत्र में लाया जाना चाहिए। अपना कार्यकाल पूरा कर सेवानिवृत्त होने से एक दिन पहले उन्होंने कहा कि मैंने अपनी जिम्मेदारी पूरी निष्ठा के साथ निभाई। हालांकि इस बीच कई बार आलोचनाएं भी हुईं। बावजूद इसके कभी भी मन में यह ख्याल नहीं आया कि अपने पद से इस्तीफा दे दूं। मैं अपने कार्यकाल में किये गये कार्यों से पूरी तरह संतुष्ट हूं। विनोद राय ने कैग के ऑडिट अधिकार को और व्यापक बनाने पर जोर देते हुए कहा कि सरकारी धन प्राप्त करने वाली सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) की सभी परियोजनाओं, पंचायती राज संस्थाओं तथा समितियों के बही खातों की लेखापरीक्षा का काम इस शीर्ष राष्ट्रीय अंकेक्षण संस्था के अधिकार क्षेत्र में लाया जाना चाहिए।
गौरतलब है कि कैग के रूप में एक अति घटना प्रधान संवैधानिक दायित्व पूरा कर अपनी पारी समाप्त करने वाले राय के कार्यकाल में खास कर 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन और 'कोलगेट' पर कैग की रिपोर्ट को लेकर संसद से सड़क तक अभूतपूर्व हंगामा हुआ और सरकारी हलकों से भी कैग को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। इन रिपोर्ट में उन्होंने ऑडिट में पहली बार 'संभाव्य हानि' की अवधारणा को शामिल किया। राय ने कैग की रिपोर्ट  को सही बताया और कहा कि विभिन्न दिशाओं से उनकी भले ही आलोचना हुई हो पर हंगामा भरे उन दिनों में कभी भी उनके मन में इस्तीफा देने का विचार नहीं आया। राय साढ़े पांच साल इस पद पर रहे।
राय ने भी कैग के चयन में कॉलेजियम जैसी व्यवस्था का पक्ष लिया है पर जहां तक कैग को निर्वाचन आयोग की तरह बहु सदस्यीय बनाने का सुझाव है, वह ऐसे बदलाव के अधिक प्रभावी होने या न होने के बारे में ज्यादा सुनिश्चित नहीं है। सरकार ने आलोचना की थी कि राय के कार्यकाल में कैग ने अपनी सीमाएं तोड़ कर नीति निर्माण पर सवाल खड़े किए। इसके जवाब में राय कहते हैं कि स्वाभाविक रूप से कैग का काम ही है कि वह सरकार के कामकाज की नुक्ताचीनी करे। कैग सरकार की नीतियों का गुणगान नहीं कर सकता।'

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